
राहुल गांधी की छवि राजनीतिक विरासत के राजकुमार से 'पप्पू' तक बन गई. अपनी इस छवि के कारण वो लगातार राजनीति में संघर्ष करते दिखे. उन्हें 'पप्पू' साबित करने के लिए लगातार कोशिशें की गईं और कई तरह के तर्क दिए जाते रहे हैं. लेकिन इसके पीछे एक बड़ा कारण कांग्रेस की सबसे बड़ी विरोधी भारतीय जनता पार्टी द्वारा इसे साबित करने के लिए लगातार कुछ ना कुछ तर्क देना और गांधी परिवार और उनकी टीम द्वारा इसका काउंटर करने में विफल होना है.
एक पहलू ऐसा है जिससे राहुल को लगातार कठघरे में खड़ा किया जा सकता है. वो ये कि राजनीति को उन्होंने अपने प्रोफेशन के रूप में अपनी रुचि के अनुसार नहीं चुना है बल्कि शायद थोपा गया है. यही कारण है कि राजनीति में उनकी गंभीरता की कमी दिखती है. कई अहम मौकों पर जब एक विपक्षी पार्टी के प्रमुख नेता के रूप में उनकी मौजूदगी अहम थी, तब वो छुट्टियां मनाने विदेश चले गए. ऐसे में कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है और कई नेता पार्टी छोड़ते जा रहे हैं. और राहुल इन परिस्थितियों को काबू करने में संघर्ष करते दिख रहे हैं.
भारत जोड़ो यात्रा के जरिए ऐसा लग रहा है कि चीजें बदल रही हैं. 52 साल के जीवन में पहली बार ऐसा लग रहा है कि एक राजनेता को जहां होना चाहिए वहां राहुल गांधी हैं यानि जनता के बीच. एक राजनेता को सफल होने के लिए जनता को समझना जरूरी है और अब यह राहुल कर रहे हैं. उनके बारे में लगातार कहा जाता रहा है कि उन्हें देश और जनता एवं उनकी समस्याओं को समझना होगा. अब वो उस पर अमल करते नजर आ रहे हैं.
हम यह नहीं जानते कि भारत के कई हिस्सों को कवर करने वाली महीनों लंबी पदयात्रा उनके ऊपर थोपे गए मुकुट की तरह है या उन्होंने इसे स्वेच्छा से शुरू किया है. हम यह भी नहीं जानते कि सोशल मीडिया के जमाने में उन्हें अपनी छवि सुधारने के लिए पदयात्रा के दौरान फोटो सेशन के जरिए मौके देने की सलाह दी गई है और वो उस पर अमल कर रहे हैं.
भारत जोड़ो यात्रा एक अवसर
राहुल गांधी केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और अब महाराष्ट्र की सड़कों पर चल रहे हैं और उन्हें अभी कई और राज्यों को कवर करना है. इस दौरान राहुल गांधी में कोई थकान नहीं दिख रही है. वह अभी तक एक भी विदेशी दौरे पर गायब नहीं हुए हैं. ऐसे में राहुल गांधी अपनी यात्रा को लेकर काफी प्रतिबद्ध दिख रहे हैं.
अब सबकुछ पटरी पर नजर आ रहा है. अब अहम ये है कि राहुल उस अवसर के साथ क्या करते हैं जो एक मेगा वॉकथॉन प्रदान कर रहा है. भारत जोड़ो यात्रा के जरिए राहुल हर रोज लोगों के सामने आ रहे हैं, जो उनके राजनीतिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं यानि भारत की जनता. राहुल उनके जीवन, उनकी कई समस्याओं और उनकी आकांक्षाओं को समझने की कोशिश कर रहे हैं. अब वह लोगों से लगातार रूबरू हो रहे हैं.
मास लीडर की छवि स्थापित कर पाएंगे राहुल?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह राहुल गांधी कभी भी अपने सीवी पर मास लीडर की छवि स्थापित नहीं कर पाए. लेकिन भारत जोड़ो यात्रा राहुल गांधी के पास आखिरकार लुटियन जोन में पालन-पोषण होने वाले और राजनीतिक विरासत के राजकुमार वाली छवि तोड़ने का मौका है.
इस यात्रा का क्या असर होता है यह देखा जाना बाकी है. क्या इस यात्रा के बाद राहुल गांधी की छवि में बदलाव आएगा. क्या वह जनता के बीच जाकर, महीनों सड़कों पर बितान के बाद उनकी समस्याओं को समझ कर उसे घोषणापत्र में शामिल कर उन्हें लुभा पाएंगे ताकि यह वोट के रूप में बदल सके. यह भविष्य के गर्भ में है. मतदान के वक्त जनता बटन दबाने से पहले सोचती है कि कौन सी पार्टी उन्हें क्या देने जा रही है.
तो क्या भारत जोड़ो यात्रा राहुल गांधी की छवि बदल देगी? क्या इसका परिणाम राहुल के सफल नेता के रूप में होगा जो जनता के मूड को पढ़ सकता है, लोगों की आकांक्षाओं को समझ सकता है और मतदाताओं की समस्याओं का समाधान कर सकता है? यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि राहुल गांधी अपने द्वारा बिताए गए कई महीनों की पदयात्रा में जो समझते हैं और महसूस करते हैं उसे जमीन पर उतारने में सफल हो पाते हैं कि नहीं. इसके लिए हमें अभी इंतजार करना होगा.