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'जितनी आबादी, उतना हक'; ये नारा है बहुजन या फिर पिछड़ों की राजनीति करने वाली किसी पोलिटिकल पार्टी का नहीं, बल्कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का. शब्दावली इसकी थोड़ी नई ज़रूर है लेकिन बहुजन राजनीति को जानने, समझने वाले और उसके लिए जीने, मरने वाले दशकों तक इसे 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' के तौर पर दोहराते रहे हैं. कांग्रेस का नया नारा 'जितनी आबादी, उतना हक'; कुछ इसी तर्ज़ पर देश की बहुजन आबादी को अपने साथ जोड़ने की कोशिश शुरू कर रहा है. इस नारे के आसरे राहुल गांधी कर्नाटक की हर रैली में आरक्षण और कास्ट बेस्ड सेंसस की बात कर रहे हैं. रविवार को कर्नाटक के कोलार में और कल फिर हुमनाबाद में जब कांग्रेस के लिए वोट मांगने वे पहुंचे तो उनकी ज़ुबान पर तीन बातें थीं.
राहुल ने कहा कि सरकार की रीढ़ की हड्डी हैं सेक्रेटरी और वहां ओबीसी, एससी, एसटी का पर्याप्त प्रतिनिधित्व ही नहीं. ऐसे में, राहुल ने जातिगत जनगणना के समर्थन की बात की. मोदी सरकार से, यूपीए के समय में कराए गए 2011 की जातिगत जनगणना को सार्वजनिक करने की अपील की. साथ ही, एससी और एसटी के आरक्षण का कोटा उनकी जनसंख्या केअनुपात में हो और आरक्षण पर से 50 प्रतिशत की सीमा हटाने की वकालत की. तो क्या ये समझा जाए कि राहुल गांधी इन मुद्दों के आसरे 2024 चुनाव का एजेंडा सेट कर रहे हैं, इन तीन/चार प्रमुख मुद्दों के पीछे की महीन राजनीति क्या है? क्या ये कांग्रेस पार्टी की जो पुरानी समझ है, उसी की एक कड़ी है या आप उसमें कुछ अंतर पाते हैं? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
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सेम सेक्स मैरेज यानी समलैंगिक विवाह को मान्यता दिया जाना चाहिए या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ आज से एक अहम सुनवाई करेगी. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, पीएस नरसिम्हा और हिमा कोहली इस कन्स्टीच्यूशनल बेंच के हिस्सा होंगे. मगर आज होने वाली सुनवाई के बजाय कल ही से उन बातों की चर्चा कहीं ज़्यादा है, जो केंद्र सरकार ने इस मसले पर कोर्ट में कही हैं. असल में हुआ ये की सरकार ने काफ़ी कड़ा रुख़ अपनाते हुए कल एक हलफनामा कोर्ट में दायर किया. वैसे तो सरकार इस मांग के विरोध में पहले भी थी; एक एफिडेविट ऑलरेडी दाखिल कर चुकी थी. पर कल सबमिट किये गए दूसरे एफिडेविट में सरकार ने एक कदम आगे बढ़ कहा कि सेम सेक्स मैरिज की बात एक तो शहरी एलीट कॉन्सेप्ट है; यानी समाज का जो अभिजात्य वर्ग है, वो इस तरह की शादियों का हिमायती हैं, आम लोगों का इससे कोई सरोकार नहीं. दूसरा, मोदी सरकार का कहना था कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देना, यह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला है.
आप पूछेंगे की इन समलैंगिक जोड़ियों को शादी की मान्यता चाहिए ही क्यों? जबकि कोर्ट ने IPC की धारा 377 को पहले ही डीक्रिमिनलाइज किया हुआ है, और समलैंगिक सम्बन्ध कोई अपराध तो है नहीं. वजह है दरअसल वो अधिकार जो शादीशुदा लोगों को सहज ही हासिल है. लेकिन सेम सेक्स कपल उनसे वंचित हैं. सरोगेसी से लेकर, एडॉप्शन और टैक्स बैनिफिट जैसी कई सुविधाएं सिर्फ शादीशुदा लोगों को ही मिलती हैं. समलैंगिक जोड़ियों का मानना है कि उन्हें भी एक कपल के तौर पर मान्यता मिले और साथ ही साथ ये अधिकार भी. सवाल है केंद्र सरकार सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने के विरोध में इतने पुरजोर तरीके से क्यों खड़ी नज़र आती है? अधिकार क्षेत्र के अलावा, सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने इसके ख़िलाफ़ और कौन-कौन सी दलीलें रखी हैं और याचिकाकर्ताओं की दलीलें इसी के बरक्स क्या हैं? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
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कल थोक महंगाई दर यानी WPI के मार्च महीने के आंकड़ें आए. मार्च में थोक महंगाई घटकर 1.34% पर आ गई है. ये 29 महीने का सबसे निचला स्तर है. फरवरी में थोक महंगाई दर 3.85% रही थी.वहीं, जनवरी में थोक महंगाई दर 4.73% थी. यानी हम देख सकते हैं, की ये लगातार ढलान पर है. ये लगातार 10वां महीना है जब होल-सेल महंगाई गिरी है. लेकिन इस बीच अगर आप देखें तो ख़ुदरा महंगाई में उस तरह की गिरावट नहीं देखी गई, थोक महंगाई में आई कमी के कारण क्या हैं और ये रिटेल कस्टमर्स को क्यों पास ऑन नहीं हो पा रही और क्या आरबीआई का इंटरेस्ट रेट को नहीं बढ़ाने का फैसला भी इसमें अहम रहा? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
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