
कई साल के बाद शुक्रवार को सार्वजनिक रूप से शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे एक साथ दिखे. मौका था भांजे की सगाई का. आज दादर में राज ठाकरे की बहन जयवंती और अभय देशपांडे के बेटे यश देशपांडे की सगाई समारोह हुआ. इस दौरान राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अपने पूरे परिवार के साथ एक साथ अगल-बगल खड़े देखे गए.
दोनों के चेहरे पर इस पारिवारिक कार्यक्रम के दौरान खुशी भी साफ दिख रही थी. हालांकि, इन तस्वीरों को देखकर यह कहना तो गलत होगा कि दोनों भाइयों के रास्ते फिर से एक हो सकते हैं. मगर, शिवसेना को लेकर राजठाकरे का प्रेम लगता नहीं है कि उनके दिल से कभी निकला हो.
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शिवसेना की टूट के लिए उद्धव को ठहराया जिम्मेदार
पिछले साल जब शिवसेना टूटी, तो राज ठाकरे से रहा नहीं गया और उन्होंने इसके लिए उद्धव ठाकरे को जिम्मेदार ठहराया. इसी साल यानी मार्च 2023 में मुंबई के शिवाजी पार्क में अपनी पार्टी की एक रैली को संबोधित करते हुए राज ठाकरे ने शिवसेना के कई नेताओं के पार्टी छोड़ने के लिए अपने चचेरे भाई और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को जिम्मेदार ठहराया था. तब उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे कोरोना काल के दौरान किसी से भी मिलने को तैयार नहीं थे.
राज ठाकरे ने रैली में कहा कि शिवसेना से एकनाथ शिंदे और उनका समर्थन करने वाले 39 विधायकों सहित कई नेताओं के अलग होने के लिए उद्धव जिम्मेदार थे. गौरतलब है कि शिंदे ने पिछले जून 2022 में पार्टी में बगावत कर दी थी. इसके बाद उद्धव सरकार गिर गई थी. शिवसेना के बागी विधायकों को साथ लेकर शिंदे ने बीजेपी के समर्थन से सरकार बना ली थी. इसके बाद से उद्धव ठाकरे गुट के कई नेता शिंदे गुट में शामिल हो चुके हैं.
2006 में अलग हो गए थे राज और उद्धव के रास्ते
बताते चलें कि साल 2006 में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के रास्ते अलग हो गए थे. तब राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी एमएनएस का गठन किया था. 2009 विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी ने 13 सीटों जीतीं और 24 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही. हालांकि, 2009 आम चुनाव में एमएनएस को कोई कामयाबी नहीं मिली.
साल 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ एक सीट पर ही जीत हासिल कर सकी. वहीं, बात करें शिवसेना की, तो साल 2019 विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से गठबंधन किया और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने. उनके शपथ ग्रहण समारोह में राज ठाकरे भी शामिल हुए थे. हालांकि, बाद में पार्टी दो धड़ों में टूट गई और एक नाथ शिंडे के नेतृत्व में भाजपा के समर्थन से वहां सरकार चल रही है.
1995 से 2005 तक बढ़ती गई दोनों भाइयों में दरार
बताते चलें कि एक दौर था शिवसेना में बाल ठाकरे के सबसे करीबी राज ठाकरे हुआ करते थे. बाल ठाकरे के ही तेवर, वैसे ही खुल कर बोलने का माद्दा और वह हर खूबी, जो उन्हें बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी बना सकती थी. तब तक उद्धव ठाकरे राजनीति में उतने एक्टिव नहीं थे. फिर साल 1995 में पार्टी का काम उद्धव देखने लगे. बाल ठाकरे भी कार्यकर्ताओं को उनके पास भेजने लगे.
इसके बाद 1997 में हुए बीएमसी के चुनाव में राज ठाकरे की नाराजगी को दरकिनार कर ज्यादातर टिकट उद्धव ठाकरे के कहने पर बांटे गए. शिवसेना के बीएमसी चुनाव जीतने से उद्धव का दबदबा पार्टी पर मजबूत होता चला गया और राज ठाकरे साइड लाइन होते चले गए.
धीरे-धीरे दोनों भाइयों के बीच दरार बढ़ती चली गई. इसके बाद साल 2003 में राज ठाकरे ने महाबलेश्वर में उद्धव ठाकरे को अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव दिया. यह कई लोगों के लिए चौंकाने वाला फैसला था. हालांकि, इस प्रस्ताव को हर किसी ने स्वीकार कर लिया और शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए उद्धव ठाकरे. आखिर में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर 2006 में अपनी पार्टी बना ली.