
पश्चिम बंगाल (West Bengal) के राज्यपाल सीवी आनंद बोस के खिलाफ लगे यौन उत्पीड़न का आरोप को लेकर बड़ी जानकारी सामने आई है. राजभवन ने बंगाल के राज्यपाल के खिलाफ छेड़छाड़ के आरोपों की एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के माध्यम से जांच कराई थी. जांच की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पाया गया कि सीवी आनंद बोस के खिलाफ शिकायतकर्ता के आरोप निराधार हैं.
दरअसल, यह जांच सुप्रीम कोर्ट में गवर्नर के खिलाफ दायर याचिका के बाद कराई गई है. याचिका पीड़िता द्वारा संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत किसी भी तरह के आपराधिक मुकदमे से पूरी तरह छूट के खिलाफ दायर की गई है. वहीं इस जांच पर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं.
दरअसल, रिटायर्ड जज द्वारा की गई जांच के निष्कर्ष में कहा गया कि कथित घटना की जगहों पर मौजूद और प्रत्यक्षदर्शी व्यक्तियों की गवाही के विश्लेषण से एक ही निष्कर्ष निकलता है कि शिकायतकर्ता का आचरण, समय और चुनी गई रणनीति संदेह पैदा करती है और ऐसा प्रतीत होता है कि वे निष्पक्ष नहीं है.
'आरोप संदेह के घेरे में'
रिपोर्ट में कहा गया है, "आरोप और उनके निष्पादन का तरीका संदेह के घेरे में है. कथित घटनास्थल के आसपास के इलाकों में जिन गवाहों की जांच की गई, उनकी मौजूदगी केवल संयोगवश ही हो सकती है. इसलिए, उनकी गवाही सुनी-सुनाई बातों और केवल आरोपों पर आधारित होने की तुलना में अधिक विश्वसनीय है, जैसा कि इस मामले में प्रेस मीडिया द्वारा किया गया है, जो खबरों को सनसनीखेज बनाने की कोशिश करता है."
यह भी सुझाव दिया कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध और दर्ज की गई गवाही, सनसनीखेज, असत्यापित प्रेस रिपोर्टों और प्रकरणों के बजाय इस तरह की गवाही पर अधिक विश्वास करने के लिए पर्याप्त रूप से पुष्टि करती है और दबाव बढ़ाती है.
कथित घटना को खारिज करते हैं: रिपोर्ट
रिपोर्ट में कहा गया है, "यह विशेष रूप से सच है क्योंकि जांच किए गए गवाहों में से कोई भी शिकायतकर्ता के प्रति शत्रुतापूर्ण नहीं है. कार्यस्थल की सुविधा के बारे में शिकायतकर्ता की महिला सहकर्मियों की गवाही, विशेष रूप से यौन शोषण के नजरिए से देखे जाने पर, और शीर्ष-श्रेणी के अधिकारियों से लेकर निचले कर्मचारियों तक के सामान्य व्यवहार के साथ उनके अनुभव, कथित घटना की संभावना को प्रभावी रूप से खारिज करते हैं."
रिपोर्ट रिटायर्ड जज डी. रामबाथिरन द्वारा तैयार की गई है. उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि राजभवन में 24-04-2024 और 02-05-2024 को कथित घटना की संभावना, जैसा कि राजभवन के शिकायतकर्ता संविदा कर्मचारी ने कहा है, निराधार आरोपों के रूप में खारिज की जाती है.
टीएमसी ने रिपोर्ट को बताया कॉमेडी
वहीं तृणमूल कांग्रेस ने रिपोर्ट को कॉमेडी बताया. कुणाल घोष ने कहा कि राज्यपाल इस मामले में खुद ही जांच कर रहे हैं जो कि विचाराधीन है. घोष ने कहा, "क्या यह कॉमेडी है? वह पांडिचेरी से एक जज को लाते हैं और उन्हें छेड़छाड़ के मामले में क्लीन चिट दे रहे हैं? वह अनुच्छेद 351 का फायदा उठा रहे हैं."
ये है पूरा मामला
बता दें कि राजभवन की संविदा महिला कर्मचारी ने कोलकाता पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने 24 अप्रैल और 2 मई को गवर्नर हाउस में उसके साथ छेड़छाड़ की थी. उसने बोस पर अपने कृत्यों से ध्यान भटकाने के लिए हथकंडे अपनाने का आरोप लगाया है और इस बात पर जोर दिया कि उन्हें जांच की शुरुआत में राजभवन परिसर से पुलिस को सीसीटीवी फुटेज लेने देना चाहिए था. 2 मई को शाम 5.32 बजे से शाम 6.41 बजे तक मुख्य (उत्तरी) गेट पर लगे दो सीसीटीवी कैमरों की फुटेज राजभवन के भूतल पर सेंट्रल मार्बल हॉल में चुनिंदा लोगों और पत्रकारों को दिखाई गई थी.
पहले फुटेज में, जीन्स और टॉप पहने महिला कर्मचारी को बड़ी संख्या में तैनात पुलिस कर्मियों के बीच से राज्यपाल के घर के भीतर स्थित पुलिस चौकी की ओर भागते देखा गया, जो उस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निर्धारित यात्रा के लिए राजभवन परिसर में तैनात थे. दूसरे फुटेज में राजभवन के उत्तरी द्वार पर फायर टेंडर सहित विभिन्न वाहन और पुलिसकर्मी अपनी नियमित ड्यूटी के लिए कतार में खड़े दिखाई दे रहे थे. हालांकि, आरोप लगाने वाली महिला कर्मचारी इस सीसीटीवी फुटेज में नहीं दिखी.