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'अच्छा बर्ताव, जेल में रहकर पढ़ाई', जानिए राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्या क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड में नलिनी, रविचंद्रन, मुरुगन, संथन, जयकुमार और रॉबर्ट पॉयस को रिहा करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि दोषी तीन दशक से ज्यादा समय से जेल में बंद है. इस दौरान उनका बर्ताव भी अच्छा रहा है. अदालत ने जेल में रहकर दोषियों का पढ़ाई करना, डिग्री हासिल करना और उनके बीमार होने का जिक्र भी किया.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:33 PM IST

राजीव गांधी हत्याकांड के सभी दोषी जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया है. इस हत्याकांड में कुल 7 दोषी थे, जिनमें से एक एजी पेरारिवलन को इसी साल मई में रिहा कर दिया गया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने बाकी बचे 6 दोषियों की रिहाई का आदेश भी दे दिया है. 

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने ये आदेश दिया है. अदालत ने कहा कि पेरारिवलन की रिहाई को लेकर जो आदेश जारी किया था, वही इन 6 दोषियों पर भी लागू होता है. बेंच ने कहा कि अगर इन दोषियों पर कोई दूसरा मामला न चल रहा हो, तो उन्हें रिहा कर दिया जाए.

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कोर्ट ने अपने फैसले में क्या क्या कहा? 

सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड में नलिनी, रविचंद्रन, मुरुगन, संथन, जयकुमार और रॉबर्ट पॉयस को रिहा करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि दोषी तीन दशक से ज्यादा समय से जेल में बंद है. इस दौरान उनका बर्ताव भी अच्छा रहा है. अदालत ने जेल में रहकर दोषियों का पढ़ाई करना, डिग्री हासिल करना और उनके बीमार होने का जिक्र भी किया.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 18 मई को इस मामले में 7वें दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया था. पेरारिवलन पहले ही इस मामले में रिहा हो चुके हैं. जेल में अच्छे बर्ताव के कारण कोर्ट ने पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था. जस्टिस एल नागेश्वर की बेंच ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए यह आदेश दिया था.

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नलिनी, रविचंद्रन ने की थी अपील

दरअसल, नलिनी और रविचंद्रन ने अपनी रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. दोनों ने मद्रास हाईकोर्ट के 17 जून के फैसले को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने दोनों की रिहाई की मांग की याचिका को खारिज कर दिया था. 

1991 में हुई थी राजीव गांधी की हत्या

राजीव गांधी 21 मई 1991 को तमिलनाडु में एक चुनावी रैली को संबोधित करने पहुंचे थे. इस दौरान एक आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई थी. इस हादसे में 18 लोगों की मौत हुई थी. इस मामले में कुल 41 लोगों को आरोपी बनाया गया था. 12 लोगों की मौत हो चुकी थी और तीन फरार हो गए थे. बाकी 26 पकड़े गए थे. इसमें श्रीलंकाई और भारतीय नागरिक थे. 

फरार आरोपियों में प्रभाकरण, पोट्टू ओम्मान और अकीला थे. आरोपियों पर टाडा कानून के तहत कार्रवाई की गई. सात साल तक चली कानूनी कार्यवाही के बाद 28 जनवरी 1998 को टाडा कोर्ट ने हजार पन्नों का फैसला सुनाया. इसमें सभी 26 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई गई. 19 दोषी पहले हो चुके रिहा ये फैसला टाडा कोर्ट का था, इसलिए इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. टाडा कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी. एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने इस पूरे फैसले को ही पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 26 में से 19 दोषियों को रिहा कर दिया. सिर्फ 7 दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा गया था. बाद में इसे बदलकर उम्रकैद किया गया. 
 

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