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मूर्ति, वस्त्र और आभूषण... अयोध्या में विराजमान रामलला का भव्य और दिव्य स्वरूप कैसे हुआ तैयार

अयोध्या के राममंदिर के गर्भगृह से प्राण प्रतिष्ठा के बाद जब भगवान रामलला की झलक सामने आई तो श्रद्धालु उसे देखते ही रह गए. सिर पर मुकुट, चेहरे पर सौम्यता, शरीर पर दिव्य आभूषण और पीतांबर वस्त्र. ये स्वरूप बिल्कुल ऐसा था जैसा कि पुराणों में वर्णन हुआ है. इस स्वरूप को सामने लाने में काफी बारीकियों का ध्यान रखा गया है.

श्रीरामलला का भव्य-दिव्य विग्रह श्रीरामलला का भव्य-दिव्य विग्रह
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 22 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 12:02 AM IST

अयोध्या के राम मंदिर में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है. गर्भगृह में अब भगवान के दर्शन किए जा सकते हैं और इस तरह 500 साल का इंतजार पूरा हुआ. सोमवार को प्राण प्रतिष्ठा के बाद जब गर्भगृह से रामलला की झलकियां सामने आईं तो रामलला के दिव्य-भव्य दर्शन ने सभी को मंत्रमुग्ध कर लिया. हालांकि विग्रह की पहली झलक तो लोग पहले भी देख चुके थे, लेकिन आज जब श्रीविग्रह को भव्य शृंगार के साथ देखा गया तो इसकी छटा अलग ही थी. रामलला की प्रतिमा निर्माण की कारीगरी, शृंगार में की गई बारीकियों और वस्त्रों की दिव्यता में बहुत ही शोधपरक तथ्यों का ध्यान रखा गया है.

मैंने किया है गिलहरी प्रयासः डिजाइनर मनीष त्रिपाठी 
श्रीराम के वस्त्र भी पौराणिक आधारों पर ही बनाए गए हैं. कैसे बने रामलला के खास वस्त्र, आजतक ने दिल्ली के डिजाइनर मनीष त्रिपाठी से खास बातचीत की. मनीष त्रिपाठी, वैसे तो इंडियन क्रिकेट टीम के फॉर्मल से लेकर भारतीय सुरक्षा बलों, भारतीय सेना के बुलेट प्रूफ जैकेट तक डिजाइन करते हैं. लेकिन इस बार इनका काम बिल्कुल अलग था.

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मनीष ने कहा कि, यह सौभाग्य है कि ऐसा काम करने का मौका मिला. मैंने तो साल 2021 में भी यूपी खादी के सहयोग से रामलला के लिए वस्त्र डिजाइन किए थे. तब से मैं ट्रस्ट के संपर्क में रहा. बकौल मनीष उन्होंने, इस कार्य के लिए कोई पैसे, फीस नहीं ली. बल्कि मैंने तो इस कार्य में गिलहरी प्रयास ही किया है. जहां रामलला को अपने गर्भगृह में स्थापित होने में 500 साल लग गए, तो इस काम के लिए मेरे 50 दिनों का क्या ही महत्व है. यह तो कुछ भी नहीं है. 

जिम्मेदारी भरा काम था रामलला का वस्त्र निर्माण
मनीष त्रिपाठी ने कहा कि, रामलला के वस्त्र बनाने हैं तो यह वाकई एक जिम्मेदारी भरा काम था, क्योंकि यह ऐसा होना चाहिए कि सभी के मन को मोह ले. सबसे बड़ी बात ये कि कहते हैं न कि, हुइहें वही जो राम रचि राखा... तो मैं इसमें बहुत विश्वास करता हूं. मेरे मन में सिर्फ एक बात थी कि यह महज पोशाक नहीं है, बल्कि ये करोड़ों लोगों की आस्था का विषय है. सबने मन में एक परिकल्पना कर रखी है कि भगवान आएंगे तो ऐसे देखेंगे तो ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी. चिंता इतनी थी कि जो लोगों की इमैजिनेशन है क्या हम उसपर खरे उतर पाएंगे?

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आप किसी सेलिब्रिटी के कपड़े बनाइये तो वो अपनी पसंद-नापसंद बता सकता है, लेकिन यहां सच में ऐसा करना भगवान से कम्यूनिकेट करने जैसा था. जहां जरूरत पड़ती थी, मैं सच में मन ही मन भगवान से पूछता था, वार्तालाप करने की कोशिश करता था और सोचता था कि उन्हें क्या पसंद है. फिर इसी आधार पर डिजाइनिंग होती थी. 

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किन खास नियमों का किया गया पालन?
क्या वस्त्र डिजाइन करते हुए कुछ खास नियमों का पालन भी करना होता था. जैसे धोती वगैरह पहनना? इस सवाल का जवाब देते हुए मनीष त्रिपाठी ने कहा कि, हम सब भगवान के चरणों में बैठकर काम कर रहे थे तो हमने नंगे पांव ही काम किया. धोती वगैरह पहनना भी मैंने मेंटेन किया. रामलला का बेसिक कॉन्सेप्ट ये था कि वह पांच वर्षीय बालक हैं, राजा दशरथ के पुत्र हैं तो भगवान हैं, तो उनके वस्त्र कैसे होंगे. क्या पसंद हो सकता है. कपड़ा मुलायम होना चाहिए. इन सब बारीकियों पर ध्यान दिया. रिसर्च की और ये कपड़े ऑथेंटिक लगें इनका ध्यान रखा. इसके अलावा जो ट्रस्ट और मंदिर से मानक मिले थे, उनपर काम किया. इस तरह भगवान के वस्त्र तैयार हुए. 

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ऐसे हुआ दिव्य आभूषणों का निर्माण
अयोध्या के श्रीराम मंदिर में भगवान की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है. रामलला अपने दिव्य-भव्य स्वरूप के साथ सभी के सामने हैं और उनके दर्शन अब सभी कर रहे हैं. भगवान का श्रीविग्रह रामलला के बालस्वरूप को कई दिव्य आभूषणों और पौराणिक कथाओं में वर्णित उनके स्वरूप के आधार पर वस्त्रों से सुसज्जित किया गया है.

इन दिव्य आभूषणों का निर्माण अध्यात्म रामायण, श्रीमद्वाल्मीकि रामायण, श्रीरामचरिमानस तथा आलवन्दार स्तोत्र के अध्ययन और उनमें वर्णित श्रीराम की शास्त्रसम्मत शोभा के अनुरूप शोध और अध्ययन के बाद किया गया है. अयोध्या निवासी मशहूर लेखक यतींद्र मिश्र ने इससे संबंधित जरूरी शोध के साथ परिकल्पना और निर्देशन दिया, और इसी आधार पर इन आभूषणों का निर्माण अंकुर आनन्द के संस्थान हरसहायमल श्यामलाल ज्वैलर्स, लखनऊ ने किया है.

रामलला के लिए बनाए गए 14 आभूषण
रामलला के आभूषण, हरसहायमल सियामलाल ज्वैलर्स ने तैयार किए हैं. उन्होंने राम लला का रत्न जड़ित मुकुट और पूरे 14 जेवरात गढ़े हैं. करीब 15 दिन पहले श्री राम मंदिर ट्रस्ट ने ज्वेलर्स से संपर्क किया था. भगवान राम के जेवरात में 15 किलो सोना और करीब 18000 हीरे और पन्ना जड़ित जेवरात तैयार किए गए हैं. इनमें भगवान राम का तिलक, मुकुट, 4 हार, कमरबंद, दो जोड़ी पायल, विजय माला, दो अंगूठियां शामिल हैं.

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मुकुट मेें सूर्य चिह्न, मछली और मोर भी शामिल
भगवान राम के मुकुट में सबसे पहले भगवान सूर्य का चिन्ह बनाया गया क्योंकि भगवान राम सूर्यवंशी थे. राजसी शक्ति का प्रतीक पन्ना को लगाया जिसमे एक बड़ा पन्ना मुकुट के केंद्र में लगाया गया. भगवान राम के मुकुट को राजा के बजाए एक 5 साल के बालक की पगड़ी के तौर पर बनाया गया है. मुकुट में उत्तर प्रदेश के राजकीय चिह्न मछली को भी बनाया गया है. इसके साथ राष्ट्रीय पक्षी मोर भी इसमें शामिल है. जब ज्वेलर्स को ट्रस्ट के पास भगवान राम का मुकुट बनाने के लिए आमंत्रित किया गया तो उनसे ट्रस्ट ने शर्त रखी थी कि मुकुट बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि भगवान राम एक 5 वर्ष के बालक हैं. जैसे 5 साल तक के बालक की वेशभूषा और आभूषण होते हैं वैसा ही मुकुट होना चाहिए. 

वस्त्र निर्माण में शुद्ध सोनी की जरी का काम
भगवान रामलला पर बनारसी वस्त्र के पीताम्बर धोती तथा लाल रंग के पटुके / अंगवस्त्रम में सुशोभित हैं. इन वस्त्रों पर शुद्ध स्वर्ण की ज़री और तारों से काम किया गया है, जिनमें वैष्णव मंगल चिन्ह- शंख, पद्म, चक्र और मयूर अंकित हैं. इन वस्त्रों का निर्माण श्रीअयोध्या धाम में रहकर दिल्ली के वस्त्र निर्माता मनीष त्रिपाठी ने किया है. 

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अरुण योगिराज ने बनाया श्रीरामलला का विग्रह
श्रीरामलला का विग्रह मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगिराज ने बनाया है. ब्लैक स्टोन से रामलला की मूर्ति को तैयार किया गया है. इस पत्थर की खास बात ये है कि दूध के अभिषेक से इस पत्थर पर किसी तरह का असर नहीं पड़ेगा. किसी भी तरह के एसिड या अन्य पदार्थ से ये पत्थर खराब नहीं होगा और हजारों सालों तक ऐसे ही बना रहेगा. रामलला 5 वर्षीय बाल स्वरूप में भव्य राम मंदिर के गर्भगृह में विराजमान हैं. मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच है. कमल के फूल के साथ मूर्ति की लंबाई 8 फीट है. प्रतिमा का वजन 200 किलोग्राम है.

क्यों रखी गई प्रतिमा की ऊंचाई 51 इंच?
रामलला की मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच बहुत सोच समझकर रखी गई है. अमूमन भारत में एक 5 वर्षीय बच्चे की लंबाई 51 इंच के आसपास होती है. साथ ही 51 शुभ अंक माना जाता है, इसे ध्यान में रखते हुए गर्भगृह में स्थापित होने वाली मूर्ति का आकार भी 51 इंच रखा गया है. मूर्ति का निर्माण शालीग्राम पत्थर को तराशकर हुआ है.

हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां अक्सर इसी पत्थर से बनाई जाती हैं, क्योंकि इसे पवित्र माना जाता है. शालीग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जो आमतौर पर नदियों की तलहटी में पाया जाता है. श्याम शिला की आयु हजारों साल होती है, ये जल रोधी होती है, चंदन-रोली से मूर्ति की चमक प्रभावित नहीं होती है.

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10 अवतारों का चित्रण, हनुमानजी और गरुण की भी मौजूदगी
रामलला के विग्रह से आस्था और अध्यात्म की झलक साफ तौर पर दिखाई दे रही है. जो पहली ही नजर में रामभक्तों को आकर्षित करती है. भगवान राम के मस्तक पर लगा तिलक सनातन धर्म की विराटता को दर्शाता है. मूर्ति में सूर्य, ऊं, गणेश, चक्र, शंख, गदा, स्वास्तिक और हनुमानजी की आकृति बनी हुई है.

रामलला की मूर्ति में उत्तर और दक्षिण भारत का समावेश दिखाई देता है. इसमें भगवान विष्णु के 10 अवतार 1-मत्स्य, 2- कूर्म, 3- वराह, 4- नरसिंह, 5-वामन, 6- परशुराम, 7- राम, 8- कृष्ण, 9- बुद्ध और 10वां कल्कि अवतार का वर्णन है. साथ ही सभी 10 अवतारों की आकृतियां भी बनाई गई हैं. मूर्ति में हनुमानजी और गरुण की आकृतियां भी हैं.

मूर्ति की चौड़ाई 3 फीट है. मूर्ति का वजन करीब 150 से 200 किलो है. मूर्ति के ऊपर मुकुट सुशोभित है. श्रीराम की भुजाएं घुटनों तक लंबी हैं. मस्तक सुंदर और आंखें बड़ी हैं. ललाट भव्य है. मूर्ति कमलदल पर खड़ी मुद्रा में है. रामलला के हाथ में तीर और धनुष हैं, मूर्ति में 5 साल के बच्चे की बालसुलभ कोमलता झलक रही है.

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श्रीराम मंदिर की खास बातें और निर्माण शैली
भव्य श्री राम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण पारंपरिक नागर शैली में किया गया है. इसकी लंबाई (पूर्व-पश्चिम) 380 फीट है; चौड़ाई 250 फीट और ऊंचाई 161 फीट है; और यह कुल 392 स्तंभों और 44 दरवाजों द्वारा समर्थित है. मंदिर के स्तंभों और दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं और देवियों के जटिल चित्रण प्रदर्शित हैं. भूतल पर मुख्य गर्भगृह में भगवान श्री राम के बाल स्वरूप (श्री रामलला की मूर्ति) को रखा गया है. मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्वी दिशा में स्थित है, जहाँ सिंह द्वार के माध्यम से 32 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचा जा सकता है. 

मंदिर में पांच मंडप
मंदिर में कुल पांच मंडप (हॉल) हैं - नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप. मंदिर के पास एक ऐतिहासिक कुआं (सीता कूप) है, जो प्राचीन काल का है. मंदिर परिसर के दक्षिण-पश्चिमी भाग में, कुबेर टीला में, भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है, साथ ही जटायु की एक मूर्ति भी स्थापित की गई है. मंदिर की नींव का निर्माण रोलर-कॉम्पैक्ट कंक्रीट (आरसीसी) की 14 मीटर मोटी परत से किया गया है, जो इसे कृत्रिम चट्टान का रूप देता है.

मंदिर में कहीं भी लोहे का प्रयोग नहीं किया गया है. जमीन की नमी से सुरक्षा के लिए ग्रेनाइट का उपयोग करके 21 फुट ऊंचे चबूतरे का निर्माण किया गया है. मंदिर परिसर में एक सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र, वाटर ट्रीटमेंट संयंत्र, अग्नि सुरक्षा के लिए जल आपूर्ति और एक स्वतंत्र बिजली स्टेशन है. मंदिर का निर्माण देश की पारंपरिक और स्वदेशी तकनीक से किया गया है.

रामलला के आभूषण भी पौराणिक, जानिए खासियत
रामलला पौराणिक वर्णनों के अनुसार ही शीश पर मुकुट, गले में कंठा, हृदय में कौस्तुभमणि, वैजयन्ती या विजयमाल, कमर में कांची या करधनी पहन रखी है.उनके हर आभूषण की एक खासियत है. 

शीष पर मुकुट या किरीटः यह उत्तर भारतीय परम्परा के अनुसार स्वर्ण निर्मित है, जिसमें माणिक्य, पन्ना और हीरों सजाए गए हैं. मुकुट के ठीक बीच में भगवान सूर्य अंकित हैं. मुकुट के दायीं ओर मोतियों की लड़ियाँ पिरोई गयी हैं.

कुण्डलः मुकुट या किरीट के अनुसार ही और उसी डिजाईन के क्रम में भगवान के कर्ण-आभूषण बनाये गये हैं, जिनमें मयूर आकृतियां बनी हैं और यह भी सोने, हीरे, माणिक्य और पन्ने से सुशोभित है.

कंठा: गले में अर्द्धचन्द्राकार रत्नों से जड़ित कण्ठा सुशोभित है, जिसमें मांगलिक पुष्प बने हैं और मध्य में सूर्य देव बने हैं. सोने से बना हुआ यह कण्ठा हीरे, माणिक्य और पन्नों से जड़ा है. कण्ठे के नीचे पन्ने की लड़ियां लगाई गयी हैं.

कौस्तुभमणिः भगवान के हृदय में कौस्तुभमणि धारण कराया गया है, जिसे एक बड़े माणिक्य और हीरों से सजाया गया है. यह शास्त्र विधान है कि भगवान विष्णु तथा उनके अवतार हृदय में कौस्तुभमणि धारण करते हैं. इसलिए इसे धारण कराया गया है.

वैजयन्ती या विजयमालः यह भगवान को पहनाया जाने वाला तीसरा और सबसे लम्बा और स्वर्ण से निर्मित हार है. जिसमें कहीं-कहीं माणिक्य लगाये गये हैं, इसे विजय के प्रतीक के रूप में पहनाया जाता है, जिसमें वैष्णव परम्परा के समस्त मंगल-चिन्ह सुदर्शन चक्र, पद्मपुष्प, शंख और मंगल-कलश दर्शाया गया है. इसमें पांच प्रकार के देवताओं को प्रिय पुष्पों का भी अलंकरण किया गया है, जो क्रमशः कमल, चम्पा, पारिजात, कुन्द और तुलसी हैं.

कमर में कांची या करधनी: भगवान के कमर में करधनी धारण करायी गयी है, जिसे रत्नजडित बनाया गया है. स्वर्ण पर निर्मित इसमें प्राकृतिक सुषमा का अंकन है, और हीरे, माणिक्य, मोतियों और पन्ने यह अलंकृत है. पवित्रता का बोध कराने वाली छोटी-छोटी पाँच घण्टियों को भी इसमें लगाया गया है. इन घण्टियों से मोती, माणिक्य और पन्ने की लड़ियों भी लटक रही हैं.

भुजबन्ध या अंगदः भगवान की दोनों भुजाओं में स्वर्ण और रत्नों से जड़ित मुजबन्ध पहनाये गये हैं.

कंकण/कंगनः दोनों ही हाथों में रत्नजडित सुन्दर कंगन पहनाये गये हैं.

मुद्रिकाः बाएं और दाएं दोनों हाथों की मुद्रिकाओं में रत्नजड़ित मुद्रिकाएं सुशोभित हैं, जिनमें से मोतियां लटक रही हैं.

पैरों में छड़ा और पैजनियां: पैरों में छड़ा पहनाये गये हैं. साथ ही स्वर्ण की पैजनियाँ पहनायी गयी हैं.

बाएं हाथ में स्वर्ण धनुष और गले में वनमाला
भगवान के बाएं हाथ में स्वर्ण का धनुष है, जिनमें मोती, माणिक्य और पन्ने की लटकने लगी हैं, इसी तरह दाहिने हाथ में स्वर्ण का बाण धारण कराया गया है. भगवान के गले में रंग-बिरंगे फूलों की आकृतियों वाली वनमाला धारण कराई गई है, जिसका निर्माण हस्तशिल्प के लिए समर्पित शिल्पमंजरी संस्था ने किया है. भगवान के मस्तक पर उनके पारम्परिक मंगल-तिलक को हीरे और माणिक्य से रचा गया है. भगवान के चरणों के नीचे जो कमल सुसज्जित है, उसके नीचे एक स्वर्णमाला सजाई गई है.
 

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