
41 आदमियों के चक्कर में एक आदमी चला भी जाए तो दिक्कत नहीं होती. 41 लोगों के पीछे बहुत लोग होते हैं, मां-बहन-बच्चे सबको देखना होता है... रेट माइनर मुन्ना कुरैशी के ये शब्द काम और इंसानियत के प्रति उनकी भावना बताने के लिए काफी हैं.
दिल्ली के खजूरी खास में रहने वाले रेट माइनर मुन्ना कुरैशी और उनके बाकी साथियों की वजह से ही सुरंग में फंसे 41 मजदूर 17 दिन बाद बाहर आ पाए. रेट माइनर्स की ये टीम उन मजदूरों के लिए फरिश्ते से कम नहीं है. इन्होंने ही जान पर खेलकर, पाइप के अंदर घुसकर सुरंग का 10 मीटर से ज्यादा मलबा अपने हाथों से बाहर निकाला, जिसकी वजह से बचाव अभियान सफल हुआ.
उत्तरकाशी कैसे पहुंचे मुन्ना?
आजतक से बातचीत में मुन्ना ने बताया कि वकील हसन (रैट माइनर्स के सुपरवाइजर) का उनके पास फोन आया था. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में उनको बुलाया जा रहा है. मुन्ना ने बताया, 'वकील हसन भाई से बातचीत के बाद हमने गाड़ी मंगाई, पांच लोग वहां से चले और सुबह पांच बजे यहां पहुंच गए.'
मुन्ना ने आगे बताया कि वो लोग सुरंग के अंदर पहुंचे तो अमेरिका से आई ऑगर मशीन अपना काम कर रही थी. लेकिन उसे देखकर मुन्ना ने बोला कि ऑगर सरियों में फंस जाएगा. फिर बाद में ऐसा ही हुआ, ऑगर फंस गया.
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मुन्ना ने आगे कहा, 'फिर जब ऑगर फंस गया तो पहले उसके टुकड़ों को निकाला गया. इसमें तीन दिन लग गए. फिर हमें बुलाकर बोला कि आप अपना काम कीजिए. हमें 24 घंटे में सुरंग खोदकर मजदूरों को निकाल लिया.'
क्या आपको कोई डर था? इस सवाल के जवाब में मुन्ना ने कहा, 'नहीं मुझे कोई डर नहीं था. मुझे पता था कि 41 भाइयों की जिंदगी का सवाल है. वकील भाई के भी हौसले बुलंद थे. उन्होंने भी कहा कि मुन्ना इसे करके ही हटेंगे. घर पर भी तब ही लौटेंगे, जब फंसे लोगों को निकाल लेंगे.'
घर वालों से क्या कहकर निकले थे? इसपर मुन्ना बोले, 'घर वालों ने कहा कि ध्यान से काम करना, जाओ. मेरे बेटे ने कहा कि आ जाना आप एक दो दिन में. फिर बाद में मेरे बेटे का फोन आया, वह बोला कि पापा उनको निकालकर ही बाहर आना, मैं आपका इंतजार करूंगा.'
'मजदूर को खतरे नहीं दिखते....'
परिवार का जिक्र करते हुए मुन्ना बोले, 'मजदूर को खतरे नहीं दिखते. वह अपने बच्चों और पेट को देखता है. जब बच्चे मायूस और भूखे होते हैं, तो मजदूर को लगता है कि मरूं या बचूं मुझे तो दो पैसे कमाकर लाने हैं.' बता दें कि दिल्ली के रैट माइनर आरिफ मुन्ना की पत्नी का कोरोनाकाल में निधन हो गया था. उनके तीन बच्चे हैं.
'मैं कभी रोता नहीं हूं लेकिन...'
रेस्क्यू के वक्त को याद करते हुए मुन्ना ने कहा, 'जो मजदूर फंसे हुए थे, जब मैं उनके पास गया तो उन्होंने मुझे सीने से लगाया, चॉकलेट दी.' वह आगे बोले, 'मैं कभी रोता नहीं हूं, लेकिन इस खुशी ने मुझे तीन बार रुला दिया.'
इसके बाद बातचीत में मुन्ना थोड़ा भावुक हो गए. वह बोले, 'मैं अपने बेटे से कहूंगा कि कभी ऐसा मौका आए तो किसी की भी जान बचाने जरूर जाना, किसी की जिंदगी बचाना पुण्य का काम होता है.'
फिर आंख में आंसू लिए मुन्ना ने कहा, '41 आदमियों के चक्कर में एक आदमी चला भी जाए तो दिक्कत नहीं होती. 41 लोगों के पीछे बहुत लोग होते हैं, मां-बहन-बच्चे...'
रैट माइनर्स के सुपरवाइजर क्या बोले?
आजतक ने आगे रैट माइनर्स के सुपरवाइजर वकील हसन ने भी बात की. वह बोले कि कंपनी के अशोक सोलंकी ने उनपर भरोसा जताकर वहां बुलाया था.
वकील हसन बोले कि टास्क बेहद कठिन था. हमने सोच लिया था कि हमें भी खुद को प्रूव करना है. 41 जिंदगियां दांव पर थीं, जिनको हमें निकालना था.
वकील हसन ने कहा कि हमारा काम काफी कठिन है. कई जगहों पर हमारे पैसे नहीं मिलते, कहीं लेट मिलते हैं, कहीं बेईमानी हो जाती है. गुजारा मुश्किल होता है. मैं पीएम से अपील करूंगा कि हमारे लिए भी कुछ किया जाए.