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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 2000 रुपये के नोटों को वापस लेने का फैसला किया है. हालांकि, 2000 रुपये के नोट का लीगल टेंडर जारी रहेगा. आरबीआई ने बैंकों को 30 सितंबर 2023 तक 2000 रुपये के नोट जमा करने और बदलने की सुविधा दी है. लेकिन सवाल ये है कि 2000 रुपये के इन नोटों को वापस क्यों लिया जा रहा है?
दरअसल आरबीआई ने 'क्लीन नोट पॉलिसी' के तहत 2000 रुपये के नोटों को वापस लेने का फैसला किया है. आरबीआई एक्ट 1934 की धारा 24(1) के तहत नवंबर 2016 को 2000 रुपये के नोटों को चलन में लाया गया था. उस समय 500 और 1000 रुपये के नोटों को सर्कुलेशन से बाहर करने के बाद इसे चलन में लाया गया था.
रिजर्व बैंक का मानना था कि 2000 रुपये का नोट उन नोट की वैल्यू की भरपाई आसानी से कर देगा, जिन्हें चलन से बाहर कर दिया गया था.
2018-2019 से 2000 रुपये के नोट छपना बंद
आरबीआई ने 2018-2019 से 2000 के नोटों को छापना बंद कर दिया था. आज जितने भी 2000 के नोट चलन में हैं, उनमें से अधिकतर मार्च 2017 से पहले जारी किए गए थे. एक तथ्य यह भी है कि 2000 रुपये के नोट का लेनदेन में अधिक इस्तेमाल भी नहीं हो रहा था. यही वजह रही कि आरबीआई ने 'क्लीन नोट पॉलिसी' के तहत 2000 रुपये के नोटों को सर्कुलेशन से वापस लेने का फैसला किया है.
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'क्लीन नोट पॉलिसी' क्या है?
आरबीआई ने आमजन तक अच्छी गुणवत्ता के नोट मुहैया कराने के लिए 1988 में 'क्लीन नोट पॉलिसी' लेकर आई थी. यह पॉलिसी देश में जाली नोटों के सर्कुलेशन पर लगाम लगाने के लिए पेश की गई थी. इस पॉलिसी का देश की अर्थव्यवस्था पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ा था क्योंकि इससे लोगों को पुराने नोट बैंकों में जमा करने और उसके बदले नए नोट लेने को मजबूर होना पड़ा था. इससे बाजार में नकदी का संकट भी खड़ा हो गया था, जिससे रियल एस्टेट, रिटेल और टूरिज्म जैसे कई सेक्टर प्रभावित हुए थे.
हालांकि, आरबीआई की क्लीन नोट पॉलिसी की आलोचना भी खूब हुई थी क्योंकि इसका देश की गरीब और ग्रामीण आबादी पर नकारात्मक असर पड़ा था.
क्लीन नोट पॉलिसी कैसे काम करती है?
नोटों को सर्कुलेशन में बनाए रखने के लिए आरबीआई की यह पॉलिसी काफी अहम थी. आरबीआई एक्ट 1934 की धारा 27 में कहा गया है कि कोई भी शख्स किसी भी तरीके से नोटों को ना तो नष्ट करेगा और ना ही उससे किसी तरह की छेड़छाड़ करेगा. इसका मकसद नोटों को सर्कुलेशन में बनाए रखने के साथ-साथ साफ-सुथरा रखना भी था.
डिजिटल पेमेंट को अधिक सुरक्षित बनाने के आरबीआई के प्रयासों के तहत नई क्लीन नोट पॉलिसी लाई गई थी. नई क्लीन नोट पॉलिसी एक अक्टूबर 2018 से लागू की गई थी.
बता दें कि नोटबंदी का चलन देश में पुराना रहा है. भारत की आजादी से पहले भी देश में नोटबंदी की गई थी. बात 1946 की है, देश में पहली बार नोटबंदी अंग्रेजी हुकूमत में हुई थी. 12 जनवरी, 1946 को भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल, सर आर्चीबाल्ड वेवेल ने उच्च मूल्य वाले बैंक नोट बंद करने का अध्यादेश प्रस्तावित किया था. इसके साथ ही 26 जनवरी रात 12 बजे के बाद से 500 रुपये, 1000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को अमान्य कर दिया गया था.
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2016 की नोटबंदी
केंद्र सरकार ने आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया था. इसके तहत 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट बैन कर दिए गए थे. इसके बदले आरबीआई 500 रुपये का नया नोट और 2000 रुपये का नोट चलन में लेकर आई थी.
देश में 2000 के नोट सबसे ज्यादा चलन में वर्ष 2017-18 के दौरान रहे. इस दौरान बाजार में 2000 के 33,630 लाख नोट चलन में थे. इनका कुल मूल्य 6.72 लाख करोड़ रुपये था. 2021 में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने लोकसभा में ये जानकारी दी थी कि पिछले दो साल से 2000 रुपये के एक भी नोट की छपाई नहीं हुई है. जवाब में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि ATM में 2000 रुपये के नोट भरने या न भरने के लिए बैंकों को कोई निर्देश नहीं दिया गया है. बैंक कैश वेंडिंग मशीनों को लोड करने के लिए अपनी पसंद खुद चुनते हैं. वो आवश्यकता का आकलन करते हैं. वित्त मंत्री ने कहा था कि RBI की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019-20 के बाद से 2000 रुपये के नोट की छपाई नहीं हुई है.
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1978 में भी हुई थी नोटबंदी
16 जनवरी 1978 को, जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने काले धन को खत्म करने के लिए 1,000 रुपये, 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था. अपने इस कदम के तहत, सरकार ने घोषणा की थी कि उस दिन बैंकिंग घंटों के बाद 1,000 रुपये, 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोटों को लीगल टेंडर नहीं माना जाएगा. इसके अगले दिन 17 जनवरी को लेनदेन के लिए सभी बैंकों और उनकी शाखाओं के अलावा सरकारों के खजाने को बंद रखने का भी फैसला किया गया. उस समय देसाई सरकार में वित्त मंत्री एच.एम. पटेल थे जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वित्त सचिव थे.