
बिहार में जेडीयू के अंदरखाने एक बार फिर उथल-पुथल की खबरें हैं. कहा जा रहा है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार के करीबी नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ना चाहते हैं. नीतीश और ललन के बीच दरार की अटकलों के कई कारण गिनाए जा रहे हैं. हालांकि, अगर ललन सिंह पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी छोड़ते हैं तो जेडीयू के इतिहास में यह पहली बार नहीं होगा. इससे पहले भी नीतीश के बेहद करीबी नेता उनसे दूर हुए हैं. यहां तक कि पार्टी छोड़कर अन्य दलों में शामिल हो गए हैं. जानिए उनके बारे में...
दरअसल, जेडीयू के सूत्र बता रहे हैं कि ललन सिंह की आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के साथ नजदीकियां बढ़ रही हैं और नीतीश कुमार को यह रास नहीं आ रहा है. नीतीश को राजनीति का सबसे माहिर खिलाड़ी माना जाता है. अगर बीच में जीतन राम मांझी के कार्यकाल को छोड़ दें तो पिछले 18 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हीं के पास है. बस सहयोगी और करीबी नेता बदलते रहते हैं. फिलहाल, जेडीयू ने 30 दिसंबर को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बड़ी बैठक बुलाई है. इस पर सभी की निगाहें टिकी हैं. इसमें नए अध्यक्ष पर फैसला हो सकता है. संभव है कि इस बार नीतीश कुमार खुद अपने पास पार्टी की कमान रख सकते हैं.
जीतनराम मांझी: नीतीश ने कभी मांझी को अपनी जगह बना दिया था सीएम
सबसे पहले बात जीतनराम मांझी की करते हैं. मांझी को एक समय नीतीश का सबसे पुराना और वफादार साथी माना जाता था. जीतन राम मांझी 20 मई 2014 को बिहार में सीएम की कुर्सी पर बैठे थे. वे राज्य के 23वें मुख्यमंत्री बने थे. मांझी को ये कुर्सी नीतीश ने खुद ही सौंपी थी. तब उन्हें नीतीश का सबसे भरोसेमंद माना जाता था. दरअसल, 2014 आम चुनाव में जेडीयू की हार के बाद नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद जेडीयू में नए नेता की तलाश शुरू हुई. उनकी तलाश जीतन राम मांझी पर आकर खत्म हुई. हालांकि, 9 महीने बाद ही नीतीश और मांझी के बीच अनबन हुई. उसके बाद मांझी को जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. वे विधानसभा में विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए और सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. बाद में मांझी ने खुद की पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा नाम से बनाई और एनडीए अलायंस में शामिल हो गए.
2019 में वो फिर नीतीश के महागठबंधन में शामिल हो गए. इसी साल नीतीश और मांझी के बीच फिर खुलकर मनमुटाव देखने को मिला और मांझी ने एनडीए का दामन थाम लिया. हाल ही में नीतीश ने विधानसभा में एक बयान में कहा, इसको हमने मुख्यमंत्री बना दिया था. दो महीने के अंदर ही मेरी पार्टी के लोग कहने लगे- इसको हटाइए. ये गड़बड़ है. फिर हम मुख्यमंत्री बने थे. कहता रहता है, ये मुख्यमंत्री था... ये क्या मुख्यमंत्री था. ये मेरी मूर्खता से सीएम बना.
प्रशांत किशोर: अचानक करीबी बने और विरोधी किया तो निकाले गए
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को एक समय नीतीश का बेहद करीबी माना जाता था. प्रशांत किशोर ने सितंबर 2018 में जनता दल यूनाइडेट को जॉइन किया था. उन्होंने नीतीश का भरोसा जीता तो उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया. फिर प्रशांत किशोर के बढ़ते कद की चर्चाएं आम हो गईं. कुछ ही समय बाद प्रशांत के बयानों से विवाद भी खूब बढ़ने लगा और डेढ़ साल बाद ही जनवरी 2020 में जेडीयू ने प्रशांत किशोर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. जानकार कहते हैं कि प्रशांत किशोर ने 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी और नरेंद्र मोदी की चुनाव रणनीति बनाई थी.
इस चुनाव में बीजेपी को जीत मिली. उसके बाद वो नीतीश के संपर्क में आए और 2015 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत ने नीतीश कुमार की चुनावी रणनीति बनाई. बिहार में भी प्रशांत की रणनीति सफल हुई और नीतीश सीएम बन गए. धीरे-धीरे प्रशांत, नीतीश के काफी करीबी हो गए. नीतीश ने प्रशांत को अपना सलाहकार बनाया . वे जदयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाए गए. कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया गया. लेकिन यह सब कुछ ज्यादा देर तक नहीं चला. प्रशांत ने खुलकर नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. फिलहाल, प्रशांत किशोर इन दिनों बिहार में राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटे हैं. वे राज्य में जनसुराज यात्रा निकाल रहे हैं.
उपेंद्र कुशवाहा: नीतीश के राजद में जाने से नाराज हो गए!
अन्य नेताओं की तरह उपेंद्र कुशवाहा भी एक समय नीतीश कुमार के बेहद करीबियों में शामिल थे. उनका कई बार नीतीश से मोहभंग हुआ और पार्टी छोड़कर चले गए. यहां तक उन्होंने खुद की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल (RLJP) भी बना ली. लेकिन बाद में फिर रिश्ते सहज हुए और नीतीश के साथ खड़े हो गए. हालांकि, इस साल परिस्थितियां कुछ अलग दिखीं. नीतीश से मनमुटाव के बाद उपेंद्र की पार्टी अब एनडीए अलायंस का हिस्सा बन गई है. उपेंद्र कुछ महीने पहले जब नीतीश से अलग हुए तो उन्होंने इसका कारण आरजेडी से अलायंस और एनडीए का साथ छोड़ने से दुखी होना बताया था.
उपेंद्र का कहना था कि जेडीयू के आरजेडी के साथ आने के बाद कार्यकर्ता दूर हो रहे हैं. नीतीश के पुराने सहयोगी भी आरजेडी के साथ जाने को तैयार नहीं हैं. उपेंद्र ने यह भी दावा किया था कि जेडीयू में भले एक बार में टूट ना हो. टुकड़ों-टुकड़ों में टूट हो. लेकिन टूट होना निश्चित है. इसमें कहीं कोई शंका नहीं है.
RCP सिंह: पहले करीब थे, फिर बढ़ गईं दूरियां
पूर्व केंद्रीय मंत्री राम चंद्र प्रसाद सिंह अगस्त 2022 में नीतीश से नाराज होने के बाद जेडीयू से बाहर हो गए थे. उन्होंने मई 2023 में बीजेपी जॉइन कर ली है. नौकरशाही से सियासत में आए आरसीपी को भी एक समय नीतीश का करीबी माना जाता था. वे केंद्र की मोदी सरकार में इस्पात मंत्रालय संभाल रहे थे. हालांकि, जब नीतीश से दूरियां बढ़ी तो उन्होंने आरसीपी को राज्यसभा से रिपीट नहीं किया. बाद में आरसीपी को जदयू छोड़नी पड़ी थी. उन्होंने बीजेपी जॉइन करते ही नीतीश को 'पलटी मार' कहा था. जानकार कहते हैं कि एक समय जेडीयू में आरसीपी सिंह की दूसरे नंबर की हैसियत थी, लेकिन मोदी कैबिनेट का हिस्सा बनने के बाद उनके रिश्ते में दरार आने लगी. आज जिस तरह ललन सिंह के बारे में कहा जा रहा है कि उनकी नजदीकियां आरजेडी से बढ़ रही हैं, ठीक वैसा ही आरसीपी को लेकर कहा जाता था कि वे बीजेपी की पसंद बनते जा रहे हैं.
नतीजा यह हुआ कि आरसीपी को तीसरी बार जेडीयू से राज्यसभा पहुंचने का मौका नहीं दिया गया, जिसके चलते उन्हें मोदी कैबिनेट छोड़ना पड़ा था. साल 2016 में जेडीयू ने शरद यादव की जगह आरसीपी को राज्यसभा में पार्टी का नेता मनोनीत किया था. इतना ही नहीं, नीतीश कुमार ने जब जेडीयू राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ा तो आरसीपी सिंह को ही पार्टी की कमान सौंपी थी. नीतीश कुमार अब आरसीपी सिंह का नाम तक नहीं सुनना चाहते हैं.
शरद यादव और जॉर्ज फर्नांडिस
नीतीश कुमार का राजनीतिक गुरु जॉर्ज फर्नांडिस को माना जाता है. नीतीश की सियासत की शुरुआत जयप्रकाश नारायण आंदोलन के समय हुई. बाद में वो जनता दल से जुड़े. साल 1994 में उन्होंने जनता दल से किनारा किया और जॉर्ज फर्नांडिस के साथ समता पार्टी बना ली. उसके बाद बिहार में लालू यादव बनाम नीतीश कुमार की सियासत शुरू हो गई. 1996 में नीतीश और जॉर्ज की पार्टी बीजेपी के साथ आ गई. साल 2003 में समता पार्टी का शरद यादव के नेतृत्व वाले जनता दल में विलय कर दिया और जनता दल यूनाइटेड अस्तित्व में आ गई. नीतीश, जॉर्ज और शरद यादव की तिकड़ी ने बिहार की सत्ता से लालू राज खत्म किया. 2005 में बिहार में नीतीश सरकार बनी. नीतीश की जॉर्ज फर्नांडिस के अंतिम दिनों में उनसे भी खटपट हुई. शरद यादव से भी अलग हो गए. शरद कभी नीतीश के काफी करीबी हुआ करते थे. वे जदयू के पूर्व अध्यक्ष भी रहे.
2017 में नीतीश ने महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी से हाथ मिलाया और एनडीए में शामिल होकर सरकार बना ली. नीतीश कुमार के पाला बदलने वाले रवैये से शरद यादव नाखुश थे. इससे पहले नीतीश ने 2013 में बीजेपी से नाता तोड़ने का फैसला किया था, तब शरद यादव साथ नहीं छोड़ना चाहते थे. इसके बाद दोनों के बीच खटास आना शुरू हो गई. लेकिन जब 2017 में नीतीश ने महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी से हाथ मिलाया और एनडीए में शामिल होकर सरकार बना ली. तब नीतीश कुमार के इस फैसले से शरद यादव का धैर्य टूट गया था.
अजय आलोक: आरसीपी के करीबी रहे, इसलिए हुआ एक्शन
बेबाक बयानों के लिए जाने जाते अजय आलोक अब बीजेपी के प्रवक्ता हैं. एक समय वो जदयू के चेहरा थे. जदयू के लिए मीडिया में पक्ष रखते थे. नीतीश कुमार की योजनाओं से लेकर कार्यशैली तक की जमकर तारीफ करते थे. फिर 2022 में एक समय ऐसा भी आया, जब अजय आलोक को नीतीश की पार्टी जदयू ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. अजय आलोक पर आरोप लगाया कि वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे. अजय लंबे समय तक जदयू के प्रवक्ता रहे. वे पेशे से डॉक्टर भी हैं. अजय को लेकर कहा जाता है कि वो आरसीपी सिंह के करीबी हैं. सूत्रों का कहना था कि आरसीपी सिंह से नजदीकियों के कारण ही अजय आलोक को जेडीयू ने निष्कासित किया था. जदयू ने पहले भी अजय को पार्टी से बाहर निकाला था, तब उन्होंने प्रशांत किशोर के खिलाफ टिप्पणी की थी. अजय के अलावा पार्टी ने प्रदेश महासचिव अनिल कुमार और विपिन कुमार यादव की भी प्राथमिक सदस्यता निलंबित कर दी थी.
ललन पासवान ने भी छोड़ दी थी जेडीयू
नीतीश से दूरियां या विवाद की वजह से पार्टी से निकाले जाने में कई और बड़े नेताओ के नाम शामिल हैं. इनमें एक नाम ललन पासवान का भी है. वे एक समय जदयू के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे. चेनारी से विधायक भी चुन गए. ललन पासवान को जदयू में बड़ा दलित चेहरा माना जाता था. ललन ने जब पार्टी छोड़ी तो उसकी वजह आरजेडी से गठबंधन किए जाने पर नाराजगी शामिल थी. ललन पासवान ने आरोप लगाया था कि जब से आरजेडी के साथ गठबंधन हुआ है, तब से बिहार में दलितों पर अत्याचार बढ़ा है.
इन दिग्गज नेताओं ने भी छोड़ा नीतीश का साथ
इसके अलावा, रणवीर नंदन, पवन वर्मा का नाम भी उन नेताओं में शामिल है, जिन्हें जदयू ने बाहर निकाल दिया था. पवन वर्मा को भी प्रशांत किशोर के साथ पार्टी ने 2020 में निकाल दिया था. तब पवन ने टीएमसी जॉइन कर ली थी. पवन भी नीतीश के करीबियों में शामिल थे. हालांकि, पिछले साल पवन की फिर से जेडीयू में वापसी हुई है. इसी तरह पूर्व एमएलसी रणवीर नंदन ने भी जदयू का साथ छोड़ दिया है. वो भी शीर्ष नेतृत्व से नाराज चल रहे थे. बाद में जेडीयू ने रणवीर नंदन ने निष्कासित करने का दावा किया था. पार्टी छोड़ने से पहले रणवीर नंदन ने कहा था कि नीतीश कुमार को फिर से पीएम मोदी के साथ आना चाहिए.
वहीं, सुनील सिंह पिंटू को लेकर भी कहा जा रहा है कि जेडीयू नेतृत्व उनसे नाखुश चल रहा है. हालांकि, अभी पार्टी ने पिंटू को लेकर कोई एक्शन नहीं लिया है. लेकिन, कहा जा रहा है कि वो भी बेगाने घूम रहे हैं. हाल ही में पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह ने संकेत दिया था कि पार्टी के खिलाफ बोलेंगे तो वो जाएंगे.
उदय नारायण चौधरी ने भी शरद यादव के साथ जदयू छोड़ दी थी. वे 2005 से 2015 तक बिहार विधानसभा के अध्यक्ष रहे. इसके अलावा, वृषिण पटेल भी जदयू छोड़कर HAM के संस्थापक सदस्य बने थे. हालांकि, 2019 के चुनाव से पहले वो रालोसपा में शामिल हो गए थे.