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15 राज्यों में रेड, टेरर फंडिंग से लेकर कई विवाद...जानिए क्या है PFI के बैन की असली कहानी

गृह मंत्रालय ने टेरर कनेक्शन सामने आने के बाद पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर बैन लगा दिया है. गृह मंत्रालय का कहना है कि PFI के कई पदाधिकारियों के टेरर फंडिंग में लिंक के चलते यह फैसला लिया गया. आइए जानते हैं कि पीएफआई क्या है और इस संगठन पर क्या-क्या आरोप है? जांच एजेंसियों के रडार पर पीएफआई क्यों है?

नवी मुंबई में PFI के दफ्तर के बाहर तैनात पुलिसकर्मी (फाइल फोटो-PTI) नवी मुंबई में PFI के दफ्तर के बाहर तैनात पुलिसकर्मी (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • दिल्ली,
  • 28 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 8:24 AM IST

पिछले कई दिनों से लगातार जारी छापेमारी के बाद गृह मंत्रालय ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर बैन लगा दिया है. कई राज्यों ने पीएफआई को प्रतिबंधित करने की मांग की थी. गृह मंत्रालय का कहना है कि PFI के कई पदाधिकारियों के टेरर फंडिंग में लिंक के चलते यह फैसला लिया गया. आइए जानते हैं कि पीएफआई क्या है और इस संगठन पर क्या-क्या आरोप है?

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पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI 22 नवंबर 2006 को तीन मुस्लिम संगठनों के मिलने से बना था. इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिता नीति पसरई साथ आए. PFI खुद को गैर-लाभकारी संगठन बताता है. PFI में कितने सदस्य हैं, इसकी जानकारी संगठन नहीं देता है. 

ओएमए सलाम है PFI के अध्यक्ष

हालांकि, PFI दावा करता है कि 20 राज्यों में उसकी यूनिट है. शुरुआत में PFI का हेडक्वार्टर केरल के कोझिकोड में था, लेकिन बाद में इसे दिल्ली शिफ्ट कर लिया गया. ओएमए सलाम इसके अध्यक्ष हैं और ईएम अब्दुल रहीमान उपाध्यक्ष.  PFI की अपनी यूनिफॉर्म भी है. हर साल 15 अगस्त को PFI फ्रीडम परेड का आयोजन करता है. 

देश के 15 राज्यों में PFI पिछले कई महीनों से सक्रिय है. गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि दिल्ली, आंध्र,प्रदेश, असम, बिहार, केरल, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा, तमिलनाडु, तेलंगाना, मध्य प्रदेश में PFI सक्रिय है. हाल ही में PFI से जुड़े कई मामले सामने आये है, जिसकी जां NIA कर रही है.

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15 राज्यों में NIA की छापेमारी में खुले कई राज?

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के टेरर कनेक्शन पर पुख्ता सबूत मिलने पर शहर-शहर से संदिग्ध उठाए गए. 22 सितंबर को 15 राज्यों में 106 जगहों पर एनआईए ने छापा मारा था. पांच दिन बाद मंगलवार को फिर छापेमारी हुई. यूपी के करीब 26 जिलों से 56 लोगों को उठाया गया, जिसमें लखनऊ, कानपुर गाजियाबाद, मेरठ और बुलंदशहर जिले शामिल हैं.

लखनऊ में एनआईए और एटीएस की टीम ने छापेमारी करके बख्शी तालाब के गांव से छह लोगों को हिरासत में लिया. मध्य प्रदेश के कई इलाकों में भी इस वक्त छापेमारी की गई. भोपाल में पीएफआई के 21 लोगों को हिरासत में लिया गया. मध्य प्रदेश के शाजापुर में 3 लोग पकड़े गए, जबकि इंदौर में पीएफआई के तीन कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है. 

सबसे बड़ी छापेमारी कर्नाटक में हुई, जहां पीएफआई और एसडीपीआई के करीब 45 लोगों को पकड़ा है. गुजरात के कई शहरों में पीएफआई के ठिकानों की तलाशी चल रही है. एटीएस की टीम ने अहमदाबाद,सूरत,नवसारी और बनासकांठा से 15 लोगों को हिरासत में लिया है. पकड़े गए लोगो के तार विदेशो में बैठे कुछ लोगों से है.

जांच एजेंसियों के रडार पर क्यों रहा है PFI?

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NIA महाराष्ट्र के नवी मुंबई औरंगाबाद, जालना, सोलापुर और परबनी में रेड किया. असम के 8 जिलों में भी पीएफआई के ठिकानों पर छापा मारकर 21 लोगों को पकड़ा गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि जांच एजेंसियों के रडार पर पीएफआई क्यों है? दरअसल PFI को अगर विवाद का दूसरा नाम कहा जाए, तो गलत नहीं होगा.

PFI के कार्यकर्ताओं पर आतंकी संगठनों से कनेक्शन से लेकर हत्याएं तक के आरोप लगते हैं. 2012 में केरल सरकार ने हाईकोर्ट में बताया था कि हत्या के 27 मामलों से PFI का सीधा-सीधा कनेक्शन है. इनमें से ज्यादातर मामले RSS और CPM के कार्यकर्ताओं की हत्या से जुड़े थे. 

जुलाई 2012 में कन्नूर में एक स्टूडेंट सचिन गोपाल और चेंगन्नूर में ABVP के नेता विशाल पर चाकू से हमला हुआ. इस हमले का आरोप PFI पर लगा. बाद में गोपाल और विशाल दोनों की ही मौत हो गई. 2010 में PFI के SIMI से कनेक्शन के आरोप भी लगे. उसकी वजह भी थी. दरअसल, उस समय PFI के चेयरमैन अब्दुल रहमान थे, जो SIMI के राष्ट्रीय सचिव रहे थे. जबकि, PFI के राज्य सचिव अब्दुल हमीद कभी SIMI के सचिव रहे थे. उस समय PFI के ज्यादातर नेता कभी SIMI के सदस्य रहे थे. हालांकि, PFI अक्सर SIMI से कनेक्शन के आरोपों को खारिज करता रहा है.

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SIMI का नया रूप है PFI: केरल सरकार

2012 में केरल सरकार ने हाईकोर्ट में बताया था कि PFI और कुछ नहीं, बल्कि प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) का ही नया रूप है. PFI के कार्यकर्ताओं के अलकायदा और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों से लिंक होने के आरोप भी लगते रहे हैं. हालांकि, PFI खुद को दलितों और मुसलमानों के हक में लड़ने वाला संगठन बताता है. 

अप्रैल 2013 में केरल पुलिस ने कुन्नूर के नराथ में छापा मारा और PFI से जुड़े 21 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया. छापेमारी में पुलिस ने दो देसी बम, एक तलवार, बम बनाने का कच्चा सामान और कुछ पर्चे बरामद किए थे. हालांकि, PFI ने दावा किया था कि ये केस संगठन की छवि खराब करने के लिए किया गया है. बाद में इस केस की जांच NIA को सौंप दी गई.

CAA आंदोलन के दौरान भी हिंसा भड़काने का आरोप

जनवरी 2020 में भी जब देशभर में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हिंसा हुई, तब तत्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसमें PFI की भूमिका होने का दावा किया था. हालांकि, PFI ने इन प्रदर्शनों में उसका हाथ होने की बात खारिज कर दी थी. हालांकि, PFI ने कहा था कि उनका संगठन कानूनी और लोकतांत्रिक तरीके से काम करता है.

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पिछले साल मार्च 2021 में यूपी एसटीएफ ने शाहीन बाग में स्थित PFI के दफ्तर की तलाशी ली थी. इससे पहले एक बार और भी PFI ऑफिस की तलाशी ली जा चुकी है. बता दें कि ED पीएफआई द्वारा कथित रूप से मनी लॉन्ड्रिंग और विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर दिल्ली और यूपी के दंगों में इसकी भूमिका की जांच कर रहा है. 

भारत को इस्लामिक स्टेट बनाना मकसद?

PFI पर अक्सर धर्मांतरण के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन वो इसे खारिज कर देता है. हालांकि, 2017 में 'इंडिया टुडे' के स्टिंग ऑपरेशन में PFI के संस्थापक सदस्यों में से एक अहमद शरीफ ने कबूल किया था कि उनका मकसद भारत को इस्लामिक स्टेट बनाना है.

जब शरीफ से पूछा गया कि क्या PFI और सत्या सारणी (PFI का संगठन) का छिपा मकसद भारत को इस्लामिक स्टेट बनाने का है? तो इस पर उसने कहा, 'पूरी दुनिया. सिर्फ भारत ही क्यों? भारत को इस्लामिक स्टेट के बनाने के बाद हम दूसरे देशों की तरफ जाएंगे.'

कहां से आता है PFI को पैसा?

इस स्टिंग ऑपरेशन में शरीफ ने ये भी कबूल किया था कि उसे मिडिल ईस्ट देशों से 5 साल में 10 लाख रुपये की फंडिंग हुई है. शरीफ ने कबूला था कि PFI और सत्य सारणी को 10 लाख रुपये से ज्यादा की फंडिंग मिडिल ईस्ट देशों से हुई थी और ये पैसा उसे हवाला के जरिए आया था.

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फरवरी 2021 में यूपी पुलिस की टास्क फोर्स ने दावा किया था कि PFI को दूसरे देशों की खुफिया एजेंसियों से फंडिंग होती है. हालांकि, उसने उन देशों का नाम नहीं बताया था. 

इससे पहले जनवरी 2020 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी जांच के बाद दावा किया था कि 4 दिसंबर 2019 से 6 जनवरी 2020 के बीच PFI से जुड़े 10 अकाउंट्स में 1.04 करोड़ रुपये आए हैं. इसी दौरान PFI ने अपने खातों से 1.34 करोड़ रुपये निकाले थे. 6 जनवरी के बाद CAA के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और तेज हो गए थे.

 

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