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जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच टकराव पर संसदीय समिति ने बड़ी टिप्पणी की है. पैनल ने कार्यपालिका और न्यायपालिका से हाईकोर्टों में खाली पदों को लेकर कहा है कि वे इस स्थाई समस्या से निपटने के लिए लीक से हटकर विचार करें और समस्या का समाधान निकालें.
कानून और कार्मिक पर विभाग से संबंधित स्थायी समिति ने गुरुवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि वह केंद्रीय कानून मंत्रालय में न्याय विभाग की टिप्पणियों से सहमत नहीं है कि हाई कोर्ट में जजों की रिक्तियों को भरने के लिए समय का संकेत नहीं दिया जा सकता है.
समय-सीमा का नहीं किया जा रहा है पालन
संसद की समिति ने अफसोस जताया और कहा- दूसरे जजों के मामले में और जजों की नियुक्ति के संबंध में मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) में भी समय-सीमा निर्धारित की गई है. लेकिन अफसोस की बात है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों द्वारा उन समय-सीमाओं का पालन नहीं किया जा रहा है, जिससे रिक्तियों को भरने में देरी हो रही है.
जजों के खाली पद होना चिंता का विषय
समिति ने आगे कहा कि सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 31 दिसंबर, 2021 तक तेलंगाना, पटना और दिल्ली के तीन हाई कोर्ट थे, जहां 50 प्रतिशत से ज्यादा पद खाली थे और 10 हाई कोर्ट में 40 प्रतिशत से ज्यादा सीटें खाली थीं. बीजेपी के सीनियर लीडर सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाले पैनल ने कहा- ये सभी बड़े राज्य हैं, जहां जजों और जनसंख्या का अनुपात पहले से ही कम है और इस तरह खाली पद होना गहरी चिंता का विषय हैं.
आम सहमति बनाने में विफल रही सरकार और कॉलेजियम
समिति ने कहा कि सरकार और न्यायपालिका को हाई कोर्ट में खाली पदों की इस स्थायी समस्या से निपटने के लिए कुछ लीक से हटकर सोचना चाहिए. समिति ने यह भी कहा कि यह जानकर 'आश्चर्य' हुआ कि सुप्रीम कोर्ट और सरकार मेमोरेंडम के संशोधन पर आम सहमति बनाने में विफल रहे हैं. हालांकि अब 'लगभग सात वर्षों' से दोनों के विचाराधीन है. समिति ने आगे कहा- हम उम्मीद करते हैं कि सरकार और न्यायपालिका संशोधित एमओपी को अंतिम रूप देगी, जो अधिक कुशल और पारदर्शी है.
देश में 25 हाई कोर्ट हैं. 5 दिसंबर तक 1,108 स्वीकृत पदों की बजाय सिर्फ 778 जज हाई कोर्ट में कार्यरत हैं. 25 नवंबर को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति से जुड़ी 20 फाइलों पर पुनर्विचार करने के लिए कहा था. सरकार ने अनुशंसा किए गए नामों के बारे में 'कड़ी आपत्ति' जताई थी.
सूत्रों के मुताबिक, सरकार का कहना था कि 20 फाइलों में से 11 एकदम नए मामले थे. जबकि 9 मामले ऐसे थे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने दोबारा विचार करने के लिए सरकार के पास भेजा था. केंद्र सरकार ने अलग-अलग हाई कोर्टों के सभी नए नामों पर अपनी आपत्ति दर्ज करते हुए लौटा दिया था.