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इलाहाबाद HC परिसर से मस्जिद हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात, जानिए क्या है मामला?

इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर से मस्जिद हटाया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद HC के 8 नवंबर 2017 के मस्जिद हटाने के आदेश को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि मस्जिद ऐसी जगह पर बनी हुई है, जिसकी लीज खत्म हो चुकी है.

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा है सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा है
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 11:03 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर में बनी मस्जिद को हटाने के आदेश को बरकरार रखा है, इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है. हाईकोर्ट ने 8 नवंबर 2017 को मस्जिद को हटाने का आदेश दिया था. इस आदेश में वक्फ बोर्ड को तीन महीने के अंदर मस्जिद को कोर्ट परिसर से बाहर ले जाने को कहा गया था. 

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इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि मस्जिद ऐसी जगह पर बनी हुई है, जिसकी लीज खत्म हो चुकी है. लिहाजा इसे अधिकार के रूप में उसी तरह रखे जाने  का दावा नहीं किया जा सकता. 

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि जमीन एक पट्टे की संपत्ति थी, जिसे खत्म कर दिया गया था. वे इसे जारी रखने के अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते.

बेंच ने कहा कि हम याचिकाकर्ताओं द्वारा विचाराधीन निर्माण को गिराने के लिए तीन महीने का समय देते हैं और यदि आज से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्माण नहीं हटाया जाता है, तो हाईकोर्ट समेत अधिकारियों के पास उसे हटाने या ध्वस्त करने का विकल्प रहेगा. 

मस्जिद की प्रबंधन समिति की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि मस्जिद 1950 के दशक से है और इसे यूं ही हटने के लिए नहीं कहा जा सकता. उन्होंने कहा कि 2017 में सरकार बदली और सब कुछ बदल गया. नई सरकार बनने के 10 दिन बाद एक जनहित याचिका दायर की जाती है. अगर वे (सरकार) हमें वैकल्पिक स्थान देते हैं तो हमें स्थानांतरित होने में कोई समस्या नहीं है.

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हाईकोर्ट की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह पूरी तरह से धोखाधड़ी का मामला है. क्योंकि दो बार नवीनीकरण के आवेदन आए थे और इस बात की कोई सुगबुगाहट नहीं थी कि मस्जिद का निर्माण किया गया था. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के बरामदे या हाईकोर्ट के बरामदे में नमाज की अनुमति दी जाती है, तो यह जगह फिर से मस्जिद नहीं बन जाएगी?

सुप्रीम कोर्ट ने पहले उत्तर प्रदेश सरकार से मस्जिद को स्थानांतरित करने के लिए जमीन देने की संभावना तलाशने को कहा था. हाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा था कि उसके पास मस्जिद को स्थानांतरित करने के लिए जमीन का कोई वैकल्पिक भूखंड नहीं है और राज्य इसे किसी अन्य क्षेत्र में स्थानांतरित करने पर विचार कर सकता है. साथ ही ये भी कहा गया था कि यहां तो पार्किंग के लिए भी जगह की कमी है. सुप्रीम कोर्ट ने पहले पक्षकारों को निर्देश दिया था कि वे इस बात पर आम सहमति बनाएं कि मस्जिद को कहां स्थानांतरित किया जाना चाहिए.

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