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'ये नीति संविधान के खिलाफ', आर्थिक आधार पर आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट में बोलीं याचिकाकर्ता की वकील

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी EWS के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज मंगलवार को सुनवाई हुई. CJI यूयू ललित की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है. याचिकाकर्ता की वकील ने कहा कि ये नीति संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:07 PM IST

सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी EWS के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज मंगलवार को सुनवाई हुई. CJI यूयू ललित की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है. इस दौरान इस नीति की आलोचना करते हुए याचिकाकर्ता की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई की अगुवाई वाली संविधान पीठ के सामने कहा कि ये नीति संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. आरक्षण का लक्ष्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को आगे की पंक्ति में बराबरी की भावना से लाना है. 

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उन्होंने कहा कि ये भावना वर्ग विशेष यानी पिछड़े वर्ग के लिए है. लेकिन आर्थिक आधार पर सभी वर्गों के लिए आरक्षण दिए जाने से आरक्षण की मूल भावना भी प्रभावित होगी. इस नीति में बुनियादी खामियों की ओर इशारा करते हुए अरोड़ा ने कोर्ट में कुछ मिसाल भी दी. उन्होंने कहा कि फर्ज करें कि किसी स्कूल या कॉलेज में मेरा दाखिला आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर हो गया. उसी दिन मेरी लॉटरी लग जाए या मेरे पिता को अच्छी जॉब मिल जाए तो मैं किस वर्ग में रहूंगी. क्योंकि मेरा दाखिला भी हो गया लेकिन मैं अब उस वर्ग में नहीं आती जिसके आधार पर मेरा दाखिला हुआ है.

उधर, प्रोफेसर मदन गोपाल ने कोर्ट में कहा कि ये प्रावधान सिर्फ अगड़े वर्ग के लिए है. ये संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है. एक तरह का हमला है. संविधान के दिल में छुरा घोंपने के समान है क्योंकि ये प्रावधान समाज के शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को आरक्षण लाभ से वंचित करता है. अब इस मामले में सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी.

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क्या है पूरा मामला

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने सामाजिक न्याय का हवाला देते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य श्रेणी के लोगों के 10 फीसदी आरक्षण देने का निर्णय लिया था. संसद के दोनों सदनों से इस संबंध में संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद राष्ट्रपति ने भी इस पर मुहर लगा दी थी. जिसके बाद 2019 में एनजीओ समेत 30 से अधिक याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. इन याचिकाओं में संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किए जाने को चुनौती दी गई है. 

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