
मणिपुर पिछले 45 दिन से हिंसा की आग में सुलग रहा है. डेढ़ महीने बाद भी मणिपुर में हिंसा का सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है. अब एक रिटायर्ड शीर्ष सैन्य अधिकारी ने अपने राज्य मणिपुर की तुलना युद्ध-ग्रस्त लीबिया, लेबनान और सीरिया से की है.
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एल निशिकांत सिंह ने ट्वीट किया कि मैं मणिपुर का एक साधारण भारतीय हूं, जो सेवानिवृत्त जीवन जी रहा है. राज्य अब 'स्टेटलेस' है. जीवन और संपत्ति किसी के द्वारा कभी भी नष्ट की जा सकती है. जैसे लीबिया, लेबनान, नाइजीरिया, सीरिया में होता है. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि मणिपुर को अपने ही रस में घुलने के लिए छोड़ दिया गया है. क्या कोई सुन रहा है? उनका यह ट्वीट जमकर वायरल हो रहा है.
वहीं, पूर्व सेना प्रमुख वेद प्रकाश मलिक ने एल निशिकांत सिंह के पोस्ट को रीट्वीट किया और कहा कि मणिपुर से एक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल का दर्द साफ झलक रहा है.
उन्होंने कहा कि मणिपुर में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है. मलिक ने अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को टैग किया है.
भीड़ ने केंद्रीय मंत्री के घर में तोड़फोड़ की
मणिपुर में कोई भी सुरक्षित नहीं है, यह तथ्य गुरुवार को एक केंद्रीय मंत्री के घर और एक दिन पहले एक राज्य मंत्री के घर पर हुए हमले से साफ तौर पर जाहिर हो रहा है. इंफाल में केंद्रीय मंत्री आरके रंजन सिंह के घर में गुरुवार रात भीड़ ने तोड़फोड़ की और आग लगा दी. गुरुवार की रात करीब 11 बजे भीड़ मंत्री रंजन सिंह के आवास में जबरदस्ती घुस गई और उनकी संपत्ति में आग लगाने का प्रयास किया. घर पर तैनात हाउसगार्ड भी भीड़ को रोक नहीं सके.
आरके रंजन सिंह ने कहा कि मैं स्तब्ध हूं. मणिपुर में कानून व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह फेल हो गई है. उन्होंने कहा कि यह देखकर बहुत दुख होता है कि मेरे गृह राज्य में क्या हो रहा है. मैं शांति की अपील करता रहूंगा. इस तरह की हिंसा में शामिल लोग बिल्कुल अमानवीय हैं.
क्यों हो रही है मणिपुर में हिंसा?
मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में तीन मई को पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के आयोजन के बाद पूर्वोत्तर राज्य में हिंसा भड़क उठी थी. एक महीने पहले जातीय हिंसा भड़कने के बाद से अब तक लगभग 100 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और 300 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं. आरक्षित वन भूमि से कूकी ग्रामीणों को बेदखल करने पर तनाव से पहले झड़पें हुईं, जिसके कारण कई छोटे-छोटे आंदोलन हुए.