
केरल देशभर में उच्च साक्षरता दर वाले राज्य के तौर पर जाना जाता है. राज्य में उच्चस्तरीय शिक्षा तक आसान पहुंच भी यहां की खासियत है. लेकिन कोविड-19 की वजह से राज्य में शिक्षा के प्रवाह पर असर पड़ा है. आजतक/इंडिया टुडे ने रियलिटी चेक के जरिए ये जानना चाहा कि केरल में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर शिक्षा के शिफ्ट होने से छात्रों को कैसे हालात का सामना करना पड़ रहा है.
वायनाड उत्तरी केरल में ऊंचाई पर स्थित जिलों में से एक है. सरकारी डेटा के मुताबिक इस जिले का 74.10 फीसदी क्षेत्र जंगल है. राज्य में आदिवासियों की सबसे ज्यादा आबादी इसी जिले में है. पर्यावरण की दृष्टि से ये क्षेत्र बेशक उत्तम हो लेकिन जब इंटरनेट कनेक्टिविटी की बात आती है तो यहां कई तरह की चुनौतियों का सामना है. खास तौर पर ऑनलाइन पढ़ाई करने वालों के लिए.
जैसे कि हम थिरूनेल्ली से पनावल्ली की ओर वन क्षेत्र से आगे बढ़े हमने देखा कि छात्र-छात्राएं ऊंचे पुल पर सड़क के दोनों किनारों पर बैठे हैं. ये छात्र-छात्राएं ऑनलाइन क्लासेज अटैंड करने के लिए यहां बैठे दिखे. पनावल्ली एक छोटी रिहाइशी बस्ती है जो चारों ओर से ऊंची पहाड़ियों से घिरी है. यहां पर मुश्किल से ही कोई मोबाइल नेटवर्क काम करता है. ऑनलाइन क्लासेज अटैंड करने के लिए इन छात्र-छात्राओं को ऐसा स्थान ढूंढने की मशक्कत करनी पड़ती है जहां सही कनेक्टिविटी मिल सके. ये ऊंचा पुल ऐसा ही एक स्थान है जहां वे अपने मोबाइल पर इंटरनेट कनेक्शन पा सकते हैं.
20 साल की अनुश्री बीए थर्ड इयर की छात्रा हैं. फाइनल इयर होने की वजह से ये अनुश्री के शिक्षा करियर का अहम पड़ाव है. अनुश्री कहती हैं, “पिछले एक साल से मैं क्लासेज अटैंड करने के लिए जूझ रही हूं. इसके लिए मुझे रोज सुबह यहां आना पड़ता है. हमारे घर पर कोई मोबाइल नेटवर्क पकड़ा नहीं जाता इसलिए हमारे सामने और कोई चारा नहीं है.”
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खराब नेटवर्क की वजह से छूट रहीं क्लास
अभिषेक की कहानी भी अनुश्री से अलग नहीं है. दसवीं कक्षा के छात्र अभिषेक को तपते सूरज के नीचे अपने मोबाइल पर क्लास अटैंड करते देखा जा सकता है. अभिषेक का कहना है, ऑनलाइन क्लासेज उन टीवी क्लासेज से कहीं बेहतर हैं जो पिछले साल हुई थी. हालांकि जो पढ़ाया जाता है उनके सही तरीके से नोट लेने में परेशानी होती है. क्योकि टेक्स्ट बुक, नोट बुक और फोन हाथ में रहता है. इसके अलावा खराब कनेक्टिविटी की वजह से कई क्लासेज मिस भी हो गईं.”
पुल से आगे जाने पर पहाड़ के दूसरी तरफ हालत और भी बदतर है. बीस से ज्यादा छात्र यहां ऐसे हैं जिनके घर पर किसी तरह की मोबाइल या इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है. इसलिए छात्रों को काफी के बागान के साथ हर दिन ऊंची चढ़ाई पर जाना पड़ता है. कुछ सौ फीट ऊपर जाकर उन्हें कामचलाऊ कनेक्टिविटी मिल पाती है. ऊंचे टीले पर स्टूडेंट्स ने बांस और पॉलिथिन शीटस का अस्थाई शेड बना रखा है. इस क्षेत्र में हाथी और तेंदुए जैसे जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है.
हाथियों का सताता है हमेशा डर
17 साल का बेनहेर तिरुवनंतपुरम में 12वीं क्लास का स्टूडेंट था. लॉकडाउन की वजह से उसे वायनाड स्थित गांव में माता पिता के पास वापस घर आना पड़ा. बेनहेर के मुताबिक उसे ऑनलाइन क्लास के लिए रोज मुश्किल ट्रैकिंग से ऊंचाई पर जाना पड़ता है. एक बार बैट्री चार्जिंग खत्म होने पर उसे फिर घर आकर बैट्री चार्ज करनी पड़ती है. बेनहेर ने बताया कि एक बार हाथियों ने उनका अस्थाई शेड भी उखाड़ फेंका था.
चुनौती सिर्फ स्कूली छात्रों के सामने ही नहीं है बल्कि प्रोफेशनल कोर्स कर रहे स्टूडेंट्स के सामने भी है. नाइसी बीएससी नर्सिग की चौथे साल की छात्रा हैं. पिछले डेढ साल से वो अपनी क्लासेज ठीक ढंग से नहीं कर पाईं. क्लासेज अलग अलग शिफ्ट में होती हैं. शेड्यूल में बदलाव होता है तो नाइसी को उसकी समय से सूचना भी नहीं मिल पाती. नाइसी को भी पढ़ाई के लिए हर दिन लंबी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है. कोविड-19 से जुड़े नियमों की वजह से प्रैक्टिकल क्लासेज भी बंद है.
मोबाइल नहीं, नेटवर्क से परेशान हैं छात्र
समस्या सिर्फ छात्रों से ही नहीं जुड़ी है. क्षेत्र में अधिकतर परिवार कृषि पर निर्भर हैं. उन्हें बच्चों की पढ़ाई के लिए काम छोड़कर उनके साथ आना पड़ता है. उन्हें हर वक्त बच्चों की सुरक्षा की चिंता रहती है. सरकार और अन्य संगठन बच्चों को पढ़ाई के लिए मोबाइल उपलब्ध कराने पर जोर दे रहे हैं. लेकिन यहां दिक्कत मोबाइल नहीं बल्कि कनेक्टिविटी है.