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'आदिवासियों का रिवाज समझें', यूनिफॉर्म सिविल कोड पर RSS से जुड़ी संस्था का लॉ कमीशन को सुझाव

RSS से जुड़े अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने आदिवासियों को समान नागरिक संहिता (UCC) के दायरे से बाहर रखने के संसदीय समिति के अध्यक्ष सुशील मोदी के सुझाव का रविवार को स्वागत किया है.

वनवासी कल्याण आश्रम ने यूसीसी पर संसदीय समिति के सुझाव का स्वागत किया वनवासी कल्याण आश्रम ने यूसीसी पर संसदीय समिति के सुझाव का स्वागत किया
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 8:48 AM IST

आरएसएस से जुड़े अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने संसदीय समिति के अध्यक्ष सुशील मोदी के उस सुझाव का स्वागत किया है जिसमें आदिवासियों को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के दायरे से बाहर रखने का सुझाव दिया गया है. एक बयान में, संगठन ने विधि आयोग से कहा कि वह जल्दबाजी में अपनी रिपोर्ट न सौंपे. संगठन ने आग्रह किया कि आयोग पहले अपने प्रमुख सदस्यों और संगठनों से आदिवासी समुदायों की प्रथागत प्रथाओं और परंपराओं को समझने को कहे.

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सुशील मोदी ने दिया था ये सुझाव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) निकाय ने अनुसूचित जनजातियों और उनके संगठनों के सदस्यों से आग्रह किया कि यदि उन्हें प्रस्तावित यूसीसी के संबंध में यदि उनकी कोई चिंता है तो वे सोशल मीडिया पर चर्चाओं से "गुमराह" होने के बजाय वह इस मुद्दे पर विधि आयोग के सामने अपने विचार रखें. कानून पर एक संसदीय पैनल के अध्यक्ष, भाजपा सांसद सुशील मोदी ने हाल ही में एक बैठक के दौरान पूर्वोत्तर सहित आदिवासियों को किसी भी संभावित यूसीसी के दायरे से बाहर रखने की वकालत की थी. जबकि कुछ विपक्षी सदस्यों ने परामर्श शुरू करने के लिए विधि आयोग के कदम के समय पर सवाल उठाया है.

वनवासी कल्याण आश्रम का बयान

वनवासी कल्याण आश्रम के उपाध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह ने एक बयान में कहा, 'अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से बाहर रखने में हम संसदीय समिति के प्रमुख सुशील कुमार मोदी की भूमिका का स्वागत करते हैं.' सिंह ने कहा कि इन दिनों यूसीसी को लेकर खासकर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा चल रही है, जिससे आम लोग भ्रमित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि  'आदिवासी समाज भी इससे अछूता नहीं है. निहित स्वार्थ वाले कुछ लोग आदिवासी समाज को भी गुमराह कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में वनवासी कल्याण आश्रम आदिवासी समाज, विशेषकर उनके सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों और शिक्षित वर्ग को सचेत करना चाहता है कि वे किसी के बहकावे में न आएं.'

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14 जुलाई तक का है समय

सत्येंद्र सिंह ने कहा,, 'अभी यह भी साफ नहीं है कि सरकार क्या करने जा रही है. अगर आदिवासी समाज के लोगों और उनके संगठन को लगता है कि इसके (यूसीसी) कारण उनकी प्रथागत प्रथाओं और प्रणालियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, तो उन्हें सीधे विधि आयोग के समक्ष अपनी चिंताओं को उठाना चाहिए. आप 14 जुलाई तक अपने विचार विधि आयोग को ऑनलाइन प्रस्तुत कर सकते हैं.' सिंह ने कहा कि विधि आयोग सभी हितधारकों से परामर्श के बाद केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा और उसके बाद ही सरकार संसद में विधेयक लाएगी. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई बिल आने पर कल्याण आश्रम भी अपना सुझाव या फीडबैक देगा.

कल्याण आश्रम विधि आयोग से यह भी अनुरोध किया है कि वह देश के विभिन्न आदिवासी क्षेत्रों का दौरा करें और आदिवासियों के प्रमुख लोगों और संगठनों के साथ चर्चा करके उनके समाज के माध्यमिक प्रणाली, विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे विषयों पर उनके विचारों को गहराई से समझने का प्रयास करें और आयोग को जल्दबाजी में अपनी रिपोर्ट ना दे.

क्या है समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता में सभी धर्मों के लिए एक कानून की व्यवस्था होगी. हर धर्म का पर्सनल लॉ है, जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियों के लिए अपने-अपने कानून हैं. UCC के लागू होने से सभी धर्मों में रहने वालों लोगों के मामले सिविल नियमों से ही निपटाए जाएंगे. UCC का अर्थ शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति का अधिकार से जुड़े कानूनों को सुव्यवस्थित करना होगा.

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क्या भारतीय संविधान का हिस्सा है UCC ? 
हां, समान नागरिक संहिता भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 का हिस्सा है. संविधान में इसे नीति निदेशक तत्व में शामिल किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है. अनुच्छेद 44 उत्तराधिकार, संपत्ति अधिकार, शादी, तलाक और बच्चे की कस्टडी के बारे में समान कानून की अवधारणा पर आधारित है.

 

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