
रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध कई महीने पुराना हो चुका है. जमीन पर स्थिति अभी भी विस्फोटक बनी हुई है, हालात ऐसे हैं कि एक बार फिर परमाणु हमले तक की चर्चा तेज हो गई है. इन अटकलों के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने बताया है कि किसी की विनती पर भारत की तरफ से रूस पर दबाव डाला गया था. जब जापोरिज्ज्या परमाणु ऊर्जा संयंत्र की सुरक्षा को लेकर पूरी दुनिया को चिंता थी, तब भारत से रूस पर दबाव बनाने की अपील हुई थी.
न्यूजीलैंड दौरे पर गए एस जयशंकर ने कहा है कि जब मैं संयुक्त राष्ट्र के दौरे पर था, जापोरिज्ज्या परमाणु ऊर्जा संयंत्र की सुरक्षा को लेकर सबसे ज्यादा चिंता चल रही थी. असल में उसके करीब ही क्योंकि रूस-यूक्रेन का युद्ध जारी था, ऐसे में पूरी दुनिया ही चिंतित थी. तब हमसे अनुरोध किया गया था कि हम रूस पर दबाव डालें. हमने ऐसा किया भी. कई दूसरे मुद्दों को लेकर भी कभी दूसरे देशों ने भारत से अपील की तो कभी खुद यूएन ने भी मंथन किया. हमसे से जो कुछ भी हो पाएगा, हम वो करने को तैयार हैं. यूक्रेन को लेकर दूसरे देशों के स्टैंड पर भी विदेश मंत्री ने विस्तार से बात की है.
जोर देकर कहा गया है कि सभी देशों के स्टैंड का सम्मान करना जरूरी है. ये समझने की जरूरत है कि कई दूसरे देशों को कोई ना कोई खतरा है, उनकी अपनी चिंताएं हैं, यूक्रेन में उनकी इक्विटी है. जयशंकर ने ये भी साफ कर दिया कि भारत इस युद्ध पर पैनी नजर बनाए हुए है और अपनी तरफ हर संभव कोशिश करेगा, वो कोशिश भारत के हित में तो होगी ही, दुनिया की बेहतरी को भी ध्यान में रखा जाएगा.
बातचीत के दौरान भारत के स्टैंड पर भी विदेश मंत्री ने विस्तार से बात की. उन्होंने बताया कि अगर भारत कोई स्टैंड लेता भी है, अगर वो अपने विचार रखता भी है तो दूसरे देश उसकी अवहेलना नहीं करेंगे. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात हुई थी, तब ये साबित भी हो चुका है. अब जानकारी के लिए बता दें कि रूस और यूक्रेन युद्ध में भारत ने अब तक एक न्यूट्रल स्टैंड लिया हुआ है. उसकी तरफ से हर बार युद्ध रोकने की अपील जरूर हुई है, लेकिन किसी एक देश का खुलकर समर्थन नहीं किया गया है.
वैसे रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा न्यूजीलैंड की धरती से एस जयशंकर ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि भारत यूएन काउंसिल का परमानेंट सदस्य बनना चाहता है. उनके मुताबिक वर्तमान में दुनिया की कोई भी समस्या सिर्फ दो, तीन या कह लीजिए पांच देशों द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती है. ऐसे में भारत का भी एक सक्रिय भूमिका निभाना जरूरी है.