
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय के जरिए किसान आंदोलन के मसले पर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को घेरा है. सामना के संपादकीय में कहा गया है कि किसानों ने सर्वशक्तिमान मोदी सरकार को हिलाकर देशभर में क्रांति का बिगुल बजाने का काम किया है. सरकार पर हमला करते हुए सामना में सवाल किया गया है कि देश का किसान खूनी है क्या?
सामना के संपादकीय में सवाल किया गया है कि देश के किसान खूनी, हमलावर, नक्सलवादी और आतंकवादी हैं क्या? केंद्र सरकार के तीन कृषि कानून रद्द करने के लिए किया जानेवाला आंदोलन अपराध है क्या? केंद्र सरकार और सत्ताधारी पार्टी के नेता दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर किसानों को अपराधी साबित करने में लगे हैं. आंदोलन को बदनाम करने की सारी सरकारी करतूत किसानों ने मिट्टी में मिला दिया है. पैर के नीचे की जमीन हिल जाने से सत्ताधीशों ने अब आंदोलनकारी किसानों को अपराधी साबित करने की तानाशाही शुरू कर दी है.
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सामना के संपादकीय में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का काफिला अंबाला में रोके जाने और काले झंडे दिखाने के मामले में 13 किसानों के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किए जाने को बदले की भावना से की गई कार्रवाई बताया है. इन किसानों के खिलाफ दंगा भड़काने और कई अन्य गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया गया है. सामना के संपादकीय में सवाल किया गया है कि किसानों को खूनी और दंगाई साबित करनेवाले इस लक्षण को क्या कहेंगे? यह लोकप्रियता घटने के बाद उनकी ह्वास की ओर की यात्रा है. हत्या के प्रयास और दंगे के झूठे अपराध के मामले दर्ज करके किसानों के संघर्ष को दबाया नहीं जा सकता.
हमलावर और दंगाई नहीं हो सकता किसान
सामना के संपादकीय में कहा गया है कि इस देश का किसान हमलावर और दंगाई नहीं हो सकता. वह अन्नदाता है. आपदा और विपदा से दो-दो हाथ करते हुए किसान कई साल से संघर्षरत हैं. हमारे लाखों किसान बंधुओं ने आत्महत्या कर ली लेकिन कभी हाथों में हथियार उठाने का विचार नहीं किया. कठिनाइयों का पहाड़ और कर्ज के तनाव से परेशान होकर उन्होंने फांसी लगा ली, जहर पी लिया लेकिन कभी किसी की जान नहीं ली. किसान चाहें तो सत्ताधीशों को पल में झुका दें लेकिन किसानों ने अब भी संयम बनाए रखा है.
सामना के संपादकीय में कहा गया किसानों की सीधी मांग है कि किसानों के लिए घातक केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करो. कम से कम आधारभूत कीमत यानी समर्थन मूल्य को लेकर कॉन्ट्रैक्ट खेती के माध्यम से कृषि भूमि को बड़े उद्योग समूहों का ग्रास बनानेवाले और किसानों को गुलामी की ओर धकेलनेवाले कानून को रद्द किए बिना राजधानी के द्वार पर शुरू आंदोलन नहीं थमेगा आंदोलनकारी किसान अगर ऐसी चेतावनी दे रहे हैं, तो इसमें गलत क्या है?
बिन बड़े चेहरे के पूरी जिद से चल रहा आंदोलन
सामना के संपादकीय में बीजेपी को घेरते हुए लिखा है कि ऐसे आंदोलन करके ही एक समय का विरोधी दल आज सत्ता के फल का रसास्वादन कर रहा है. इसे कैसे भुलाया जा सकता है? साथ ही सवाल किया गया है कि सत्ता मिलने के बाद आंदोलनकारी किसानों को खूनी और दंगाई साबित करना लोकतंत्र की किस व्याख्या के अंतर्गत आता है? किसानों को खालिस्तानी साबित करने का प्रयास किया गया, किसानों के आंदोलन के पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ होने की बात कही गई, आंदोलन में फूट डालने का प्रयास किया गया. किसानों का आंदोलन किसी राजनीतिक दल के बगैर सहयोग और बिना किसी बड़े चेहरे के भी पूरी जिद के साथ चल रहा है.