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CAA और वन नेशन-वन इलेक्शन के समर्थन में खुलकर बोले सद्गुरु, पढ़ें- क्या-क्या कहा

CAA को लागू करने को लेकर केंद्र सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन पर सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने कहा कि इसमें विवाद की कोई बात ही नहीं है. अगर मुझसे पूछेंगे तो मेरी नजरों में सीएए की परिभाषा है- 'यह बहुत ही कम सहानुभूति है जो बहुत देर से आ रही है.'

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में अपनी बात रखते हुए सद्गुरु जग्गी वासुदेव इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में अपनी बात रखते हुए सद्गुरु जग्गी वासुदेव
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 1:22 PM IST

India Today Conclave 2024: इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दो दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन ईशा फाउंडेशन के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA और वन नेशन-वन इलेक्शन के समर्थन में खुलकर बात की.

CAA को लागू करने को लेकर केंद्र सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन पर उन्होंने कहा कि इसमें विवाद की कोई बात ही नहीं है. अगर मुझसे पूछेंगे तो मेरी नजरों में सीएए की परिभाषा है- 'यह बहुत ही कम सहानुभूति  है जो बहुत देर से आ रही है.'वहीं, वन नेशन-वन इलेक्शन पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से वन नेशन-वन इलेक्शन राम राज्य की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है. लोगों का तर्क है कि अभी बीजेपी जीत रही है इसलिए वह वन नेशन वन इलेक्शन के पक्ष में है. लेकिन यह एक महत्वपूर्ण बात है कि चुनाव में जीत तब तक जीत नहीं होती है जब तक कि आप उसे जीत ना लें.

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हमें शर्म आनी चाहिएः सद्गुरु

कॉन्क्लेव के दौरान सद्गुरु से जब CAA को लेकर पूछा गया तो उन्होंने कहा, " सीएए का किसी भी धर्म पर कोई असर नहीं पड़ेगा. अगर मुझसे पूछेंगे तो मेरी नजरों में सीएए की परिभाषा है- यह बहुत ही कम सहानुभूति है जो बहुत देर से आ रही है. क्योंकि विभाजन के बाद जब हम लोगों को बॉर्डर के उस पार छोड़ें तो यह उम्मीद थी कि उनकी सही से देखभाल होगी. और हमारा राजनीतिक वादा भी था कि अगर अगर वहां उनके साथ कोई दिक्कत होती है तो हम उन्हें वापस अपने देश में रहने के लिए जगह देंगे.

पिछले 75 वर्षों में उनलोगों ने बुरा से बुरा सहा. कई लोग 30-40 वर्ष पहले उधर से इधर आ गए. लेकिन वो अभी तक इस देश में शरणार्थी ही हैं. क्या हमें शर्म नहीं आनी चाहिए? ऐतिहासिक भूल के कारण जब देश बंटा. इस दौरान कई लोग गलत साइड में रह गए. बाद में उन्होंने कोशिश की कि हम सही देश में चले जाएं. वह 30-40 साल पहले इधर आ गए. लेकिन उन्हें अभी तक नागरिकता नहीं मिली. उन्हें हमारे देश में कोई अधिकार नहीं मिला. हमें शर्म आनी चाहिए. यह कोई विवाद है ही नहीं. यह शर्म की बात है."

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सद्गुरु से जब पूछा गया कि क्या इस कानून में किसी के साथ भेदभाव किया जा रहा है? इस पर उन्होंने कहा, "हमारे समाज में कई तरह के भेदभाव हैं. हमारे पास कोई परफेक्ट समाज नहीं है. हमारे समाज में हजार तरह के भेदभाव हैं. लेकिन कानून की नजर में इस देश में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया गया है. लेकिन पड़ोसी देशों में कानूनन भेदभाव किया गया है. इन देशों में ईश-निंदा कानून लागू है.

वन नेशन-वन इलेक्शन के समर्थन में खुलकर बोले सद्गुरु

सद्गुरु से जब पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि राम राज्य में वन नेशन वन इलेक्शन होना चाहिए? इस पर उन्होंने कहा, "मेरे हिसाब से वन नेशन-वन इलेक्शन राम राज्य की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है. कुछ लोगों का तर्क है कि अभी बीजेपी जीत रही है इसलिए वह वन नेशन वन इलेक्शन के पक्ष में है. लेकिन यह एक महत्वपूर्ण बात है कि चुनाव में जीत तब तक जीत नहीं होती है जब तक कि आप उसे जीत ना लें.

अगर कोई यह सोचता है कि बीजेपी जीत रही है इसलिए वह वन नेशन-वन इलेक्शन की बात कर रही है तो वह खुद को ही मूर्ख बना रहा है. लोग यह क्यों सोच रहे हैं कि वह पार्टी जीत रही है और इसका फायदा उसको मिलेगा. जबकि समस्या यह है कि हमने वैसी राजनीतिक पार्टी को बनाया है जिसमें लोगों की जरूरत डेली बेसिस पर है. किसी भी लोकतंत्र में यह जरूरी नहीं है. चुनाव के समय में राजनीतिक वर्कर और सपोर्टर जुटते हैं और चुनाव के लिए कैंपेन करते हैं.अगले 5 साल भी कैंपेन करते हैं और उसका मेहनताना मांगते हैं. किसी भी देश को चलाने का यह सही तरीका नहीं है. निश्चित रूप से हम सब पांच साल में एक बार चुनाव को अफोर्ड कर सकते हैं."

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उन्होंने आगे कहा, "चुनाव के बाद एक ब्रेक होना चाहिए जिससे समाज में महत्वपूर्ण विकास हो सके. अगर कोई पॉलिसी लाई जाती है तो उतना समय हो कि अंतिम व्यक्ति तक वह पॉलिसी पहुंच सके. और इसमें 6 से 8 साल का वक्त लगेगा. लेकिन जब तक यह योजना उस तक पहुंचेगा, बीच में फिर कोई चुनाव आ जाता है और उसकी शुरुआत फिर से हो जाती है. इस तरीके से देश को नहीं चलाया जा सकता है. अगर आप सिर्फ राजनीति से मतलब रखते हैं तब अलग मैटर है. अन्यथा राजनीति लोगों के हित के लिए हैं. लोग राजनीति के लिए बलि का बकरा नहीं हैं. यह समझना बहुत जरूरी है.
 

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