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'पति कौन-पत्नी कौन...बच्चे की कस्टडी किसे', सेम सेक्स मैरिज के पक्ष-विपक्ष में SC में रखी गईं ये 10 दलीलें

सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश तुषार मेहता ने कहा, ''मौजूदा कानून में पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है, लेकिन समलैंगिक शादियों में क्या होगा? इस पर जस्टिस कोहली ने कहा, हमारे पास याचिकाएं आती हैं कि पति भी भरण-पोषण का दावा कर सकता है. इस पर तुषार मेहता ने कहा, कपल कोर्ट को कैसे बताएगा कि पत्नी कौन है? यह कैसे स्पष्ट होगा?''

दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान LGBTQIA समुदाय के लोग (फाइल फोटो- पीटीआई) दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान LGBTQIA समुदाय के लोग (फाइल फोटो- पीटीआई)
अनीषा माथुर/कनु सारदा/संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 27 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 3:05 PM IST

समलैंगिक शादियों को मंजूरी देने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गुरुवार को लगातार दूसरे दिन याचिकाकर्ताओं की दलीलों का जवाब दिया. इस दौरान उन्होंने कहा कि समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के मामले में व्यवहारिक और कानूनी समेत तमाम अड़चन हैं. इतना ही नहीं उन्होंने याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए पति और पत्नी की जगह जीवनसाथी यानी स्पाउस शब्द के इस्तेमाल वाले सुझाव का भी विरोध किया. इस दौरान उन्होंने तलाक, घरेलू हिंसा, भरण पोषण प्रावधानों में आने वाली अड़चनों का भी जिक्र किया. आइए जानते हैं कि सेम सेक्स मैरिज के पक्ष-विपक्ष में SC में किसने क्या कहा?

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1- पति कौन, पत्नी कौन...ये कोर्ट में कैसे स्पष्ट होगा?
 

सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ''आपका कहना है कि पति या पत्नी के लिए जीवनसाथी (स्पाउस) शब्द का इस्तेमाल करने से कोई फायदा नहीं होगा.'' दरअसल, समलैंगिक शादियों की मांग को लेकर याचिकाएं दाखिल करने वालों की ओर पेश वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था, कानूनी अड़चनों के मद्देनजर कानून में पति और पत्नी की जगह जीवनसाथी यानी स्पाउस शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 14 के मुताबिक समानता के अधिकार की भी रक्षा होती रहेगी.

इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ''तलाक से संबंधित अनुभाग को देखें, क्या इस विशेष वर्ग में तलाक का कानून भी सभी लोगों के लिए एक बन सकता है? ट्रांस मैरिज में कौन पत्नी होगा, गे मैरिज में कौन पत्नी होगा? इसका दूरगामी प्रभाव होगा. यह देश भर में बहुत से लोगों को प्रभावित करता है.''

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तुषार मेहता ने कहा, ''मौजूदा कानून में पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है, लेकिन समलैंगिक शादियों में क्या होगा? इस पर जस्टिस कोहली ने कहा, लेकिन यह दूसरे पर भी लागू होता है. हमारे पास याचिकाएं आती हैं कि पति भी भरण-पोषण का दावा कर सकता है. इस पर तुषार मेहता ने कहा, कपल कोर्ट को कैसे बताएगा कि पत्नी कौन है? यह कैसे स्पष्ट होगा?''

2- मैरिज रजिस्ट्रेशन पर हुई चर्चा

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ''शादी का रजिस्ट्रेशन कभी अनिवार्य नहीं रहा.'' वहीं, इस पर सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है, लेकिन रजिस्ट्रेशन नहीं कराने से विवाह शून्य नहीं होता. अगर मैं गलत हूं, तो बताएं. वहीं, इस पर मेहता ने कहा, हममें से कई लोगों ने अपनी शादी का पंजीकरण नहीं कराया है, क्योंकि विवाह अधिनियम के तहत यह अनिवार्य नहीं है. इस पर जस्टिस भट्ट ने कहा, तमिलनाडु में इसे अनिवार्य कर दिया गया है. वहीं, सीजेआई ने कहा, वीजा के लिए शादी के रजिस्ट्रेशन की जरूरत पड़ती है. 

3- रेप, घरेलू हिंसा का भी उठा मुद्दा 

कोर्ट में सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने घरेलू हिंसा, भरण पोषण प्रावधानों का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, ''इन मामलों में महिलाओं के लिए विशिष्ट प्रावधान किए गए हैं. तुषार मेहता ने रेप की परीभाषा का मुद्दा भी उठाया.उन्होंने कहा कि इसके मुताबिक, एक पुरुष ही महिला का रेप कर सकता है.'' 

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इस पर जस्टिस भट्ट ने कहा, ''क्या आप ये कह रहे हैं कि अगर कोई व्यक्ति किसी गे व्यक्ति का रेप करता है, तो ये रेप नहीं होगा?'' सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ''यह 377 के तहत आता था, जो अब खत्म हो गई है.'' 

तुषार मेहता ने दहेज हत्या या घरेलू हिंसा के मामले में गिरफ्तारी की प्रक्रिया का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने कहा, ''अगर कानून में पति और पत्नी की जगह सिर्फ स्पाउस या पर्सन कर दिया जाए, तो महिलाओं को सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार न करने जैसे प्रावधान कैसे लागू होंगे.''

4- मामले में व्यवहारिक और कानूनी अड़चनें- तुषार मेहता

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ''इस मामले में व्यवहारिक, कानूनी और बच्चा गोद लेने, मेंटेनेंस, डोमिसाइल  समेत कई अड़चनें हैं.'' तुषार मेहता ने कहा, ''याचिकाकर्ता का मौलिक तर्क है कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन को चुनना सही है. इस पर सीजेआई ने कहा, ऐसा नहीं है. उनका कहना है कि उन्हें सेक्सुअल ओरिएंटेशन का अधिकार दिया जाए.''

तुषार मेहता ने कहा, क्या होगा अगर समलैंगिक जोड़े में से एक साथी की मृत्यु हो जाए और दूसरा साथी परिवार से यह दावा करे कि मैं इस रिश्ते में बहू हूं. इस रिश्ते का फैसला कौन कैसे करेगा? कोई अदालत नहीं है जो इस पर फैसला ले सके? 

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जस्टिस संजय किशन कौल ने पूछा, ''तो क्या यह कहा जा सकता है कि इन सभी प्रावधानों में समलैंगिक विवाह को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से इन सभी कानूनों में व्यक्ति के जैविक लिंग को ध्यान में रखा गया है?''

तुषार मेहता ने जवाब दिया कि यह व्यावहारिक नहीं होगा. क्योंकि मान लीजिए कि एक ही लिंग के जोड़े में यह कहा जाता है कि विरासत उसे मिलेगी, जो विधवा होगी. यह हरेक मामले में अलग अलग यानी मामला दर मामला के आधार पर नहीं हो सकता. नियम और कानून तो एक ही तय होगा. 

5-  मां कौन होगी, इसका फैसला कैसे होगा- तुषार मेहता

एक और हवाला देते हुए मेहता ने कहा कि अगर गोद लिए बच्चे की कस्टडी एक मां के पास जाती है, तो देखना होगा कि मां कौन है! मां वह होगी जिसे हम समझते हैं और विधायिका ने भी वही समझा है. लेकिन इन मामलों में यह कैसे तय होगा?

6- 'कोर्ट इस मुद्दे को संसद पर छोड़ दे'

केंद्र सरकार का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखते हुए सॉलिसीटर जनरल ने कहा, ''ये एक सामाजिक मुद्दा है. अदालत को इसे विचार करने के लिए संसद पर छोड़ देना चाहिए. कोर्ट एक जटिल मुद्दे को देख रहा है. इस मुद्दे का गहरा सामाजिक प्रभाव है. मूल प्रश्न ये है कि इस बारे में कौन फैसला करेगा कि विवाह क्या होता है और किनके बीच होता है? ऐसे में संभव है कि एक राज्य इसके पक्ष में कानून बना दे और दूसरा इसके खिलाफ. ऐसे में अदालत को इससे दूर रहना चाहिए. ''

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7- राज्यों को बाध्य न किया जाए- केंद्र

सॉलिसीटर जनरल मेहता ने कहा, ''शादी के अधिकार में यह शामिल नहीं है कि राज्य को बाध्य किया जाए कि वह शादी की नई परीभाषा तय करें.''

8- इस मामले में सकारात्मक सोच जरूरी- याचिकाकर्ता

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील करुणा नंदी ने कहा, ''हेट्रो सेक्सुअल को जो अधिकार पहले से हैं, उसके लिए समलैंगिक कपल अब आगे आए हैं. सेम सेक्स कपल अलग नहीं हैं, बल्कि हेट्रो की तरह ही हैं. वे जो अधिकार मांग रहे हैं, वे अलग नहीं हैं. इस बारे में सकारात्मक सोच की जरूरत है.''

9- सेम सेक्स कपल अलग अलग धर्म के होंगे, तो और दिक्कत होगी- जस्टिस रवींद्र भट्ट

सुनवाई के दौरान जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा, ''अगर सेम सेक्स कपल अलग अलग धर्म के होंगे, तो और दिक्कत होगी.''

इस पर याचिकाकर्ता के वकील अरुंधति काटजू ने कहा, ''केंद्र का कहना है कि ऐसे कपल की शादी से पर्सनल लॉ के लिए खिलवाड़ हो जाएगा. लेकिन हमारा तर्क है कि ऐसे कपल जो शादी करना चाहते हैं, वे भी समाज का हिस्सा हैं. उनके माता पिता भी चाहते हैं कि उनके बच्चे शादी करें और वे आशीर्वाद दे सकें. बच्चों के गोद लेने की बात है तो हेट्रो कपल को इसका अधिकार है. लेकिन सेम सेक्स कपल को नहीं है. सेक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए.''

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10- 'सभी धर्मों में विपरीत जेंडर के बीच विवाह को मान्यता'

 सॉलिसीटर जनरल मेहता ने कहा,  ''सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने से अन्य कानूनों पर इसका असर पड़ेगा, जिस पर समाज में चर्चा की जरूरत होगी.''

उन्होंने अमेरिका के डॉब्स बनाम जैक्सन मामले का भी जिक्र किया, जो गर्भपात के अधिकार से जुड़ा हुआ था. इस बीच एक बार फिर दोहराया गया कि समलैंगिक विवाह एलीट वर्ग की सोच है.मेहता ने कहा कि सभी धर्म विपरीत जेंडर के बीच विवाह को मान्यता देते हैं. अदालत के पास एक ही संवैधानिक विकल्प है कि इस मामले को संसद के ऊपर छोड़ दिया जाए. इस पर सीजेआई ने कहा क सरकार को किस डेटा से पता चला है कि देश में समलैंगिक शादियां शहरी एलीट वर्ग के बीच की सोच है.

क्या है मामला?

दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर हुई थीं. इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश जारी करने की मांग की गई थी. पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग दो याचिकाओं को ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था. 

इससे पहले 25 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी की था. इन जोड़ों ने अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी. इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक कर अपने पास ट्रांसफर कर लिया था.इस मामले में सुप्रीम कोर्ट पिछले 6 दिन से हर रोज सुनवाई कर रहा है. 

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याचिकाओं में क्या है मांग? 

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया था. यानी भारत में अब समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं. लेकिन अभी भारत में समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं मिली है. ऐसे में इन याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत विवाह से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की मांग की गई है.
 


 

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