
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को लगातार छठे दिन भी सुनवाई हुई. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक जोड़ों के लिए बैंकिंग, बीमा और दाखिले जैसी सामाजिक जरूरतों पर भी ध्यान देना होगा. केंद्र सरकार को इस पर भी गौर करना चाहिए.
इस दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ और केंद्र की ओर से मामले की पैरवी कर रहे तुषार मेहता के बीच नोकझोक हुई. केंद्र ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देने का समाज पर खतरनाक असर हो सकता है.
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा कि इससे सगे भाई-बहनों के बीच यौन संबंधों को भी वैध बनाने के लिए याचिकाएं और दलीलें आ सकती हैं.
इस पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि फिलहाल ये तो दूर की कौड़ी है क्योंकि यह तो नैतिक रूप से भी उचित प्रतिबंध में आता है. क्योंकि कोई भी अदालत अनाचार को वैध नहीं करेगी.
मेहता ने कहा कि हमारे देश में भी कई राज्य, प्रदेश और क्षेत्र ऐसे हैं, जहां प्राचीन काल से मामा-भांजी या फिर मामा की बेटी से भी शादी की प्रथा है यानी ममेरे फुफेरे भाई बहन के बीच भी शादी ब्याह होते हैं. इस पर तपाक से सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि सरकार भी तो यही कह रही है.
पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा दिए बगैर उनके लिए बुनियादी सामाजिक लाभ देने का तरीका खोजा जाए. इसके लिए केंद्र सरकार को तीन मई तक का समय दिया गया है.
क्या है मामला?
दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर हुई थीं. इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश जारी करने की मांग की गई थी. पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग दो याचिकाओं को ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था.
इससे पहले 25 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी की था. इन जोड़ों ने अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी. इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक कर अपने पास ट्रांसफर कर लिया था.
याचिकाओं में क्या है मांग?
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया था. यानी भारत में अब समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं. लेकिन अभी भारत में समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं मिली है. ऐसे में इन याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत विवाह से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की मांग की गई है.
- समलैंगिकों की मांग है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQ (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में दिया जाए. एक याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की गई थी, ताकि किसी व्यक्ति के साथ उसके सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से भेदभाव न किया जाए.