
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सनातन पर विवादास्पद टिप्पणी करने संबंधी मामले को लेकर सुनवाई हुई. दरअसल ये सुनवाई मामले के आरोपी उदयनिधि स्टालिन की एक याचिका को लेकर हुई, जिसमें उन्होंने कई राज्यों में खुद के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को एक साथ जोड़ने की अपील की थी. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सवाल उठाया कि तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म पर अपनी विवादास्पद टिप्पणियों से संबंधित कई एफआईआर को एक साथ जोड़ने के लिए रिट क्षेत्राधिकार के तहत अदालत का दरवाजा कैसे खटखटाया है.
कोर्ट ने दिया ये सुझाव
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने स्टालिन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि उनके मुवक्किल के मामले की तुलना मीडियाकर्मियों से नहीं की जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि, "आपने भाषण दिया है, हमें नहीं पता कि यह पब्लिक डोमेन में है या नहीं, लेकिन अब जब समन जारी हो गया है तो आप 32 दाखिल करके यहां नहीं आ सकते." पीठ ने स्टालिन के सीनियर वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी को यह जांचने का सुझाव दिया कि क्या संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत राहत मांगने के बजाय, स्टालिन सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 406 के तहत मामलों को क्लब करने के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं.
मीडिया से तुलना नहीं हो सकतीः कोर्ट
इसके बाद सिंघवी ने इसी तरह की दलीलों पर अर्नब गोस्वामी, मोहम्मद जुबैर, अमीश देवगन और राजनेता नूपुर शर्मा जैसे पत्रकारों के मामलों का हवाला दिया, लेकिन पीठ ने उनसे असहमति जताई और कहा, "आपने स्वेच्छा से बयान दिया है और वे मीडिया के लोग थे जो टीआरपी पाने के लिए अपने मालिकों के आदेश के अनुसार काम कर रहे थे. आप मीडिया से तुलना नहीं कर सकते." इस पर सिंघवी ने कहा कि नूपुर शर्मा की एफआईआर को भी राज्य में ले जाया गया है और कहा, ''नूपुर शर्मा तो विशुद्ध रूप से राजनीतिज्ञ हैं.''
6 मई को होगी मामले की सुनवाई
इस पर जस्टिस दत्ता ने जवाब दिया, "वह एक पॉलिटिकल लीडर हो सकती हैं, लेकिन आपके मुवक्किल जैसी महत्वपूर्ण नहीं." पीठ ने अब मामले की अगली सुनवाई 6 मई को तय की है ताकि स्टालिन और उनके वकील याचिका में संशोधन कर सकें और कानूनी मुद्दों की जांच कर सकें. बता दें कि, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने पिछले साल 2 सितंबर को सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया से करने के बाद विवाद खड़ा कर दिया था और कहा था कि इसका सिर्फ विरोध नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे खत्म किया जाना चाहिए. 'सनातन उन्मूलन सम्मेलन' में बोलते हुए उदयनिधि स्टालिन ने कहा कि सनातन धर्म सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है.