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एक व्यक्ति के एक ही सीट से चुनाव लड़ने के कानून की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में खारिज

चुनाव के लिए एक व्यक्ति एक सीट का कानून बनाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम में सुनवाई हुई याचिकाकर्ता ने कहा कि 1996 तक एक व्यक्ति कई सीटों पर चुनाव लड़ सकता था लेकिन अब दो पर लड़ सकता है.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 02 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 1:15 PM IST

दो निर्वाचन क्षेत्र से एक साथ चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का आदेश पारित करने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. सीजेआई की अगुआई वाली पीठ ने इस टिप्पणी के साथ यह जनहित याचिका खारिज कर दी कि जन प्रतिनिधित्व कानून भारतीय नागरिकों को इसकी छूट और अधिकार देता है. ऐसे में कानून में अगर आप बदलाव चाहते हैं तो संसद के पास जाएं. इसका अधिकार संसद का ही है. 

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एक व्यक्ति को एक ही सीट पर चुनाव लड़ने ( एक व्यक्ति एक सीट) का कानून बनाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि 1996 तक एक व्यक्ति कई सीटों पर चुनाव लड़ सकता था. लेकिन अब सिर्फ दो पर ही लड़ सकता है. कई देशों मे सिर्फ एक सीट से ही चुनाव लड़ने का प्रावधान है. याचिकाकर्ता ने दलील दी कि ये संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है.

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह इसलिए गलत है, क्योंकि दो जगह से जीत के बाद जिस एक सीट को छोड़ा जाता है. वहां पर दोबारा चुनाव कराना होता है. सभी खर्चों के साथ-साथ वोटर को भी दोबारा पोलिंग बूथ तक जाना पड़ता है. इसलिए यह अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है.

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सीजेआई ने इस दलील पर दोटूक कहा कि ये सब देखना विधायिका का काम है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका में कोई हस्तक्षेप करने से साफ इंकार करते हुए कहा कि संसद ने 1996 मे ऐसे कानून में संशोधन किया है इसलिए ये याचिका खारिज की जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 33(7) को रद्द करने से इंकार करते हुए कहा कि यह तो उम्मीदवारों को दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति देता है. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, "यह एक नीतिगत मामला है. राजनीतिक लोकतंत्र का मुद्दा है. इस पर संसद को फैसला करना है.

पहले कितनी भी सीटों पर लड़ सकते थे चुनाव 

बता दें कि 1996 के पहले तक चुनाव में कोई उम्मीदवार एक साथ कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ सकता था. इसकी अधिकतम सीटों की संख्या तय नहीं थी. बस केवल यही नियम था कि जनप्रतिनिधि केवल ही एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है. 1996 में रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 में संशोधन किया गया और यह तय किया गया कि अधिकतम सीटों की संख्या दो हो गई.

रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 के सेक्शन 33 में यह व्यवस्था दी गई थी कि व्यक्ति एक से अधिक जगह से चुनाव लड़ सकता है, जबकि इसी अधिनियम के सेक्शन 70 में कहा गया है कि वह एक बार में केवल एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है. ऐसे में साफ है कि एक से ज्यादा जगहों से चुनाव लड़ने के बावजूद प्रत्याशी को जीत के बाद एक ही सीट से प्रतिनिधित्व स्वीकार करना होता है.
 

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