
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद एक लेख लिखकर अपनी राय व्यक्त की. उन्होंने लिखा,'जम्मू-कश्मीर की प्रगति की राह में आर्टिकल 370 और 35 ए राह के रोड़े बने हुए थे, जिन्हें हमने हटा दिया है.' उन्होंने आगे लिखा,' यह हमेशा मेरा दृढ़ विश्वास था कि जम्मू-कश्मीर में जो हुआ, वह हमारे राष्ट्र और इसमें रहने वाले लोगों के साथ बड़ा विश्वासघात था. इस धब्बे को दूर करने के लिए जो कुछ भी मैं कर सकता हूं, वह करने की मेरी मजबूत इच्छा थी. यह अन्याय लोगों के साथ किया गया था. मैं हमेशा जम्मू और कश्मीर के लोगों की पीड़ा को कम करने के लिए काम करना चाहता था.'
बुनियादी शब्दों में कहें तो आर्टिकल 370 और 35 (ए) मुख्य बाधाओं की तरह थे. यह एक अटूट दीवार की तरह लग रहा था. इससे गरीब और दलित पीड़ित थे. आर्टिकल 370 और 35 (ए) की आड़ में यह सुनिश्चित किया गया कि जम्मू और कश्मीर के लोगों को कभी भी उनके अधिकार और वैसा विकास ना मिले, जो उनके साथी भारतीयों को मिला.
इन आर्टिकल के कारण एक ही राष्ट्र से संबंधित लोगों के बीच एक दूरी बन गई थी. इस दूरी के कारण, हमारे राष्ट्र के कई लोग जो जम्मू-कश्मीर की समस्याओं को हल करने के लिए काम करना चाहते थे, वो ऐसा करने में असमर्थ थे. भले ही वे स्पष्ट रूप से वहां के लोगों के दर्द को महसूस करते हों.
जम्मू और कश्मीर के लोगों की सेवा करते हुए, हमने तीन स्तंभों को प्रधानता दी. जैसे नागरिकों की चिंताओं को समझना, सहायक कार्यों के माध्यम से विश्वास का निर्माण और विकास को प्राथमिकता देना. 11 दिसंबर को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना को मजबूत किया है. इसने हमें याद दिलाया है कि जो हमें परिभाषित करता है, वह एकता के बंधन और सुशासन के लिए एक साझा प्रतिबद्धता है.
आज जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पैदा होने वाला हर बच्चा एक साफ कैनवास के साथ पैदा हुआ है, जहां वह भविष्य में जीवंत आकांक्षाओं से भरा रंग भर सकता है. आज, लोगों के सपने अतीत में कैद नहीं हैं, वो भविष्य में संभावनाएं देख रहे हैं. आखिरकार, विकास और लोकतंत्र ने मोहभंग और निराशा को बदल दिया है.
दुर्भाग्य से, सदियों के औपनिवेशीकरण के कारण विशेष रूप से आर्थिक और मानसिक अधीनता के कारण हम एक प्रकार का एक भ्रमित समाज बन गए थे. बुनियादी चीजों पर एक स्पष्ट रुख लेने के बजाय, हम द्वंद्व में फंसे रहे. जिससे हम भ्रमित होते रहे. अफसोस की बात है कि जम्मू-कश्मीर इस तरह की मानसिकता का एक बड़ा शिकार बन गया था.
स्वतंत्रता के समय, हमारे पास राष्ट्रीय एकीकरण के लिए एक नई शुरुआत करने का विकल्प था. इसके बजाय, हमने भ्रमित समाज के दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ना जारी रखा. भले ही इसका मतलब था कि लंबे समय तक राष्ट्रीय हितों की अनदेखी की गई.
मैं एक वैचारिक ढांचे से संबंधित हूं, जहां जम्मू-कश्मीर केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं था. लेकिन, यह समाज की आकांक्षाओं को संबोधित करने के बारे में था. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नेहरू कैबिनेट में एक महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो रहा. वह लंबे समय तक सरकार में रह सकते थे. फिर भी, उन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर कैबिनेट को छोड़ दिया और आगे के कठिन रास्ते का चुनाव किया.
बाद में, अटलजी ने श्रीनगर में एक सार्वजनिक बैठक में, इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत का शक्तिशाली संदेश दिया, जो हमेशा महान प्रेरणा का स्रोत रहा है.