
मणिपुर में कुकी और मैतैई समुदायों का विवाद जारी है. पहाड़ी राज्य में 3 मई से हिंसा जारी है. इसी बीच सेना, असम राइफल्स, सीएपीएफ और मणिपुर पुलिस की एक संयुक्त टीम ने खुफिया सूचना पर चुराचांदपुर के ग्राम खोडांग में एक अभियान चलाया. सुरक्षाबलों ने यहां भारी मात्रा में हथियार, गोला-बारूद और युद्ध जैसे भंडार बरामद किया.
जानकारी के मुताबिक सुरक्षाबलों ने 14 इम्प्रोवाइज्ड मोर्टार, 01 सिंगल बैरल हथियार और 15 अन्य हथियार बरामद किए गए. थौबल में भी इसी तरह के एक ऑपरेशन में असम राइफल्स और थौबल पुलिस की एक संयुक्त टीम ने 15 सितंबर को क्वारोक मारिंग में एक तलाशी अभियान शुरू किया था. संदिग्ध स्थान की व्यापक तलाशी के दौरान टीमों ने एक 9 मिमी कार्बाइन और अन्य युद्ध जैसे भंडार बरामद किए. बरामद सामान पुलिस को सौंप दिया गया है.
मणिपुर में 3 मई को सबसे पहले जातीय हिंसा की शुरुआत हुई थी. मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल किए जाने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किया था. तब पहली बार मणिपुर में जातीय झड़पें हुईं. हिंसा में अब तक 150 लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए. मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. कुकी और नागा समुदाय की आबादी 40 प्रतिशत से ज्यादा है. ये लोग पहाड़ी जिलों में रहते हैं.
मणिपुर में क्या है हिंसा की असली वजह?
कुकी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है, लेकिन मैतेई अनूसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं. नागा और कुकी का साफ मानना है कि सारी विकास की मलाई मूल निवासी मैतेई ले लेते हैं. कुकी ज्यादातर म्यांमार से आए हैं. मणिपुर के चीफ मिनिस्टर ने मौजूदा हालात के लिए म्यांमार से घुसपैठ और अवैध हथियारों को ही जिम्मेदार ठहराया है. करीब 200 सालों से कुकी को स्टेट का संरक्षण मिला. कई इतिहासकारों का मानना है कि अंग्रेज नागाओं के खिलाफ कुकी को लाए थे. नागा अंग्रेजों पर हमले करते तो उसका बचाव यही कुकी करते थे. बाद में अधिकतर ने इसाई धर्म स्वीकार कर लिया जिसका फायदा मिला और एसटी स्टेटस भी मिला.