
72वें गणतंत्र दिवस पर भारत ने दिलेरी के साथ स्वीकार किया है कि लद्दाख में चीन की साजिश का जवाब देने के लिए एक सीक्रेट फोर्स काम कर रही है. इस सीक्रेट यूनिट का नाम स्पेशल फ्रंटियर फोर्स है. इस बार इस यूनिट के एक जवान को लद्दाख में चीन के खिलाफ ऑपरेशन के लिए वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. खास बात यह है कि इस यूनिट में वैसे तिब्बती शामिल हैं जो अपने देश से निर्वासित हैं और भारत में रहते हैं.
इस यूनिट के जवान शेरिंग नोरबू को ऑपरेशन स्नो लेपर्ड में अहम योगदान के लिए विशेष रूप से याद किया गया है. बता दें कि अभी पूर्वी लद्दाख में चीन के खिलाफ जारी भारत के ऑपरेशन को ऑपरेशन स्नो लेपर्ड (Operation Snow Leopard) नाम दिया गया है.
शेरिंग नोरबू उन 54 जवानों में शामिल हैं, जिन्हें ऑपरेशन स्नो लेपर्ड के लिए सम्मानित किया गया है. खास बात यह है कि लद्दाख की ताजा घटना से पहले भारत इस ऑपरेशन को गुपचुप तरीके से करता था, लेकिन भारत ने अब इस यूनिट के अस्तित्व को गर्व के साथ स्वीकार किया है.
भारत ने 1962 में चीन युद्ध के बाद सीक्रेट स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का गठन किया था. भारत में रह रहे तिब्बती इस यूनिट के सदस्य हैं. इसके बाद ये यूनिट 1971 युद्ध, करगिल युद्ध समेत कई ऑपरेशन में हिस्सा ले रही है.
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) अभी चीन की चालबाजियों और साजिशों के खिलाफ लद्दाख में मुस्तैदी से तैनात है. इसी यूनिट के सूबेदार नइमा तेंजिंग दक्षिणी पैंगोंग झील में एक लैंडमाइन की चपेट में आकर घायल हो गए थे, बाद में उनकी मौत हो गई थी.
जब सूबेदार नइमा तेंजिंग का अंतिम संस्कार किया गया था उस वक्त तब्बती समुदाय के अलावा भारतीय सेना के ऑफिसर इसमें शामिल हुए थे. शायद ये पहला मौका था जब भारत ने इस यूनिट की मौजूदगी को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था.
SFF के एक और जवान तेंजिंग लांडेन भी चुसुल में एक लैंड माइन की चपेट में आकर घायल हो गए थे, हालांकि बाद में वह स्वस्थ हो गए.
बता दें कि भारत पहले स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की ज्यादा चर्चा नहीं करता था, लेकिन लद्दाख में हाल में बॉर्डर विवाद के बाद इस यूनिट के शौर्य की चर्चा भारत सार्वजनिक रूप से करने लगा है.