
देश की नए संसद भवन के उद्घाटन में सिर्फ कुछ दिन दिन बचे हैं. रविवार 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे विधि विधान से संसद की नई इमारत का उद्घाटन करेंगे. इस खास मौके पर प्रधानमंत्री ऐतिहासिक रूप से अहम 'सेंगोल' की स्थापना भी करेंगे. संसद भवन की नई इमारत में इसके लिए एक खास जगह तय की गई है. इसकी प्रतीकात्मक तस्वीर भी जारी की गई है, जिसमें दिखाया गया है कि 5 फीट लंबा चांदी का सेंगोल को संसद में कहा रखा जाएगा.
दरअसल, सेंगोल को संसद भवन में स्पीकर के पोडियम पर रखा जाएगा. इस चांदी के सेंगोल पर सोने की परत है. इसके ऊपर नंदी विराजमान हैं और ये पांच फ़ीट लंबा है. इस पर झंडे बने हुए हैं और तमिल में कुछ लाइनें भी लिखी हुई हैं. इस सेंगोल का आजाद भारत में भी बड़ा महत्व है.
कारण, 14 अगस्त 1947 में आजादी के समय जब लॉर्ड माउंट बेटन ने पंडित नेहरू से पूछा कि सत्ता हस्तांतरण के दौरान क्या आयोजन होना चाहिए तो नेहरूजी ने अपने सहयोगियों से चर्चा की तो स्वतंत्रता सेनानसी सी गोपालाचारी ने सेंगोल प्रक्रिया के बारे में उन्हें बताया था. इसके बाद इसे तमिलनाडु से मंगाया गया और आधी रात को पंडित नेहरु ने मांउंट बेटन से इसे स्वीकार किया. इसका अर्थ था पारंपरिक तरीके से भारत की सत्ता अंग्रेजों के हाथों से हमारे पास आई.
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प्रयागराज के म्यूजियम से मंगाया गया सेंगोल
बता दें कि प्रयागराज के एक म्यूजियम में दुर्लभ कला संग्रह के तौर पर एक गोल्डन स्टिक रखी हुई है. अब तक इसे नेहरू की सोने की छड़ी के रूप में जाना जाता रहा है. लेकिन हाल में ही चेन्नई की एक गोल्डन कोटिंग कंपनी ने म्यूजियम प्रशासन को इस स्टिक के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी थी. कंपनी का दावा है कि यह कोई स्टिक नहीं बल्कि सत्ता हस्तांतरण का दंड है. गोल्डन ज्वेलरी कंपनी वीबीजे (वूम्मीदी बंगारू ज्वैलर्स) का दावा है कि 1947 में उनके वंशजों ने ही इस राजदंड को अंतिम वायसराय यानी माउंट बेटन के आग्रह पर बनाया था. अब मोदी सरकार इसी राजदंड यानी सेंगोल को संसद भवन की नई इमारत में रखने जा रही है.
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पीएम मोदी ने किया था सेंगोल का जिक्र
14 अगस्त 1947 को नेहरू जी को सेंगोल मिलने के बाद इसे प्रयागराज के आनंद भवन में रख दिया गया था. ये नेहरू खानदान का पैतृक निवास है. 1960 के दशक में इसे वहीं के म्यूजियम में शिफ्ट कर दिया गया. 1975 में शंकराचार्य ने भी अपनी पुस्तक में इसका जिक्र किया है. पीएम नरेंद्र मोदी को करीब डेढ़ साल पहले सेंगोल के बारे में 1947 की इस ऐतिहासिक घटना के बारे में बताया गया था. इसके बाद 3 महीने तक इसकी खोजबीन होती रही और देश के हर म्यूजियम में में इसे ढूंढा गया. फिर ये प्रयागराज के म्यूजियम में मिला. 1947 में जिन्होंने इसे बनाया था, उन्होंने इसकी सत्यता की पुष्टि की.
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निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन का प्रतीक है सेंगोल
सेंगोल तमिलनाडु का ऐतिहासिक राजदंड सेंगोल निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन का प्रतीक माना जाता है. सेंगोल को राजा महाराजाओं के समय से सत्ता हस्तांतरण के वक्त इस्तेमाल किया जाता था. सेंगोल संस्कृत शब्द "संकु" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "शंख". शंख हिंदू धर्म में एक पवित्र वस्तु थी और इसे अक्सर संप्रभुता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक था. यह सोने या चांदी से बना था और इसे अक्सर कीमती पत्थरों से सजाया जाता था.
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चोल साम्राज्य से होता आ रहा इस्तेमाल
बता दें कि सेंगोल को हिंदी में राजदंड कहा जाता है और इसका इस्तेमाल चोल साम्राज्य से होता आ रहा है. इस साम्राज्य का जब कोई राजा अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता था तो उसे सत्ता हस्तांतरण के रूप में सेंगोल देता था. सेंगोल देने की परंपरा चोल साम्राज्य से ही चली आ रही है. तभी से तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन का प्रतीक माना जाता है. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि मौर्य और गुप्त वंश में भी सेंगोल का इस्तेमाल हुआ करता था.