Advertisement

जीतन राम मांझी, RCP, PK और अब उपेंद्र कुशवाहा... नीतीश कुमार के अपने जो बन गए मुसीबत

उपेंद्र कुशवाहा का नीतीश कुमार से मोहभंग माना जा रहा है. वे लगातार नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं. उन्होंने नीतीश कुमार को कमजोर तक बता दिया. तो वहीं नीतीश कुमार भी उन्हें साइड लाइन करने का मन बना चुके हैं. उन्होंने साफ कर दिया है कि उपेंद्र कुशवाहा को जदयू में रहना है तो रहें, नहीं तो जा सकते हैं.

उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी, नीतीश कुमार, पीके और आरसीपी सिंह (फाइल फोटो) उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी, नीतीश कुमार, पीके और आरसीपी सिंह (फाइल फोटो)
प्रभंजन भदौरिया
  • पटना,
  • 27 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 2:39 PM IST

बिहार की सत्ताधारी पार्टी जदयू के नेता उपेंद्र कुशवाहा लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं. उनकी बयानबाजी नीतीश कुमार और महागठबंधन सरकार के लिए मुसीबत बनती जा रही है. उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार और जदयू को 'कमजोर' तक बता दिया. तो वहीं कुशवाहा के पार्टी छोड़ने के कयास पर पूछे गए सवाल के जवाब में नीतीश कुमार ने तो यहां तक कह दिया कि उन्हें जदयू में रहना है तो रहें, जाना हो तो भी बहुत अच्छा है. नीतीश कुमार लगातार उपेंद्र कुशवाहा के बयानों पर पलटवार कर रहे हैं. 

Advertisement

इन सबके बीच उपेंद्र कुशवाहा ने शुक्रवार को मीडिया से बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि सीएम नीतीश कुमार उन्हें मिलने का समय तक नहीं देते. कुशवाहा की पिछले दिनों की बयानबाजी देखकर कयास लगाए जा रहे हैं कि उनका नीतीश कुमार से पूरी तरह से मन भर चुका है. उपेंद्र कुशवाहा पहले नेता नहीं हैं, जिनका इस तरह से नीतीश कुमार से मोहभंग हुआ हो, इससे पहले शरद यादव, जीतनराम मांझी, आरसीपी सिंह, प्रशांत किशोर जैसे बड़े नेता उनका साथ छोड़ चुके हैं. ये नेता समय समय 

उपेंद्र कुशवाहा को लेकर अटकलें तेज
 
उपेंद्र की नाराजगी की खबरें तब से आ रही हैं, जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद कुशवाहा को कोई मंत्री पद नहीं मिला था. माना जा रहा है कि कुशवाहा को उम्मीद थी की कैबिनेट विस्तार में उन्हें डिप्टी सीएम बनाया जाएगा, लेकिन नीतीश कुमार ने साफ कर दिया कि कोई दूसरा डिप्टी सीएम नहीं होगा. अब अटकलों के बाजार में चर्चा है कि जदयू से इस्तीफा देकर उपेंद्र कुशवाहा या तो बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. या अपनी पार्टी को भी दोबारा खड़ा कर सकते हैं. उपेंद्र 17 साल में तीन बार जेडीयू का साथ छोड़ चुके हैं और पलट कर फिर वापस लौटे हैं. हालांकि, शुक्रवार को उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि वे आए गए वाले नेताओं में से नहीं हैं. 

Advertisement

कब छोड़ा साथ, कब आए साथ ?

उपेंद्र कुशवाहा ने राजनीतिक सफर समता पार्टी से शुरू किया था. इसी पार्टी में जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार जैसे नेता थे. 2000 विधानसभा चुनाव में हार के बाद लालू की पार्टी का सामना करने के लिए समता पार्टी और जदयू का विलय किया गया. 2003 में उपेंद्र कुशवाहा को जदयू ने नेता प्रतिपक्ष बनाया. साल 2005 में जब बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जदयू की अगुआई वाली एनडीए बिहार की सत्ता में आई तब कुशवाहा अपनी ही सीट से चुनाव हार गए. इसके बाद कुशवाहा और नीतीश के बीच दूरियां आ गईं थीं. उन्होंने जदयू को अलविदा भी कह अपनी नई पार्टी बनाई और नाम रखा था राष्ट्रीय समता पार्टी.

हालांकि साल 2010 में एक बार फिर बदलाव की बयार चली और नीतीश के न्योता पर कुशवाहा ने घर वापसी की. उपेंद्र एक बार फिर जेडीयू में आ गए. लेकिन साल 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मार्च 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) बना ली. और 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को अपना समर्थन भी दे दिया. बिहार की तीन लोकसभा सीट पर उनकी पार्टी ने चुनाव लड़ा और उस दौर में मोदी लहर का जादू ऐसा चला कि ये तीनों सीट कुशवाहा के पाले में जा गिरीं. और इसके इनाम में उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह मिली और वो मानव संसाधन राज्य मंत्री बने. 

Advertisement

कुशवाहा की ये पार्टी 5 साल में ही बिखर गई. साल 2018 आते आते कुशवाहा की पार्टी एक झटके में ढह गई. जिसके बाद उन्हें तेजस्वी यादव का साथ मिला. वे 2019 लोकसभा चुनाव में विपक्षी महागठबंधन में शामिल हुए. उन्हें 5 सीटें मिलीं, दो पर वे खुद चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. इसके बाद उन्होंने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया. बिहार में 2020 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो उपेंद्र कुशवाहा ने मायावती की बीएसपी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन बनाया. लेकिन उनकी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. इसके बाद उपेंद्र कुशवाहा ने एक बार फिर जेडीयू का रुख किया. और अपनी पार्टी रालोसपा का जेडीयू में विलय करा दिया. लेकिन अब फिर उनका मोहभंग हो गया है. 

जदयू के नंबर 2 माने जाने वाले आरसीपी सिंह ने छोड़ा साथ

इससे पहले नीतीश कुमार के काफी करीबी रहे और जेडीयू के राष्ट्रीय पूर्व अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने पिछले साल अगस्त में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. नौकरशाही से सियासत में आए रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) को नीतीश के बाद नंबर दो माना जाता था. वे नीतीश कुमार की उंगली पकड़कर राजनीति में आगे बढ़े और जदयू की कमान तक संभाली. यहां तक की दो बार राज्यसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री भी रहे. लेकिन आरसीपी सिंह पर बीजेपी से मिलकर जदयू को तोड़ने की साजिश का आरोप लगा था. इसके बाद नीतीश कुमार ने उन्हें साइडलाइन कर दिया था. यहां तक कि इसके बाद नीतीश ने बीजेपी का साथ छोड़कर महागठबंधन में शामिल होकर सरकार बना ली. 

Advertisement

आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार एक ही जिले नालंदा और एक ही जाती कुर्मी समुदाय से आते हैं. ऐसे में दोनों ही नेताओं की दोस्ती काफी गहरी थी और आरसीपी देखते ही देखते नीतीश के आंख-नाक-कान बन गए थे. वो एक समय नीतीश के बाद जेडीयू में नंबर दो की हैसियत रखते थे.  नीतीश ने जब जेडीयू की कमान छोड़ी तो आरसीपी ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे.  2010 में आरसीपी ने आईएएस से इस्तीफा दिया और नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा भेजा. 2016 में वे पार्टी की ओर से दोबारा राज्यसभा पहुंचे और शरद यादव की जगह उच्च सदन में नेता मनोनीत किया था. लेकिन तीसरी बार राज्यसभा न भेजे जाने के चलते उन्हें केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद से वे नाराज चल रहे थे. उन्होंने जदयू से इस्तीफा दे दिया था. 

जीतनराम मांझी

आरसीपी सिंह की तरह ही जीतनराम मांझी को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता था. जब नीतीश कुमार ने 2014 के लोकसभा में मिली हार की जिम्मदारी लेते हुए सीएम पद से इस्तीफा दिया था, तब उन्होंने सीएम पद के लिए मांझी के नाम को आगे बढ़ाया था. मांझी जदयू में रहते हुए 20 मई 2014 से 20 फरवरी 2015 तक राज्य के सीएम भी रहे. लेकिन 2015 में उन्होंने सीएम के पद से हटने से इनकार कर दिया. इसके बाद उन्हें जदयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. वे विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए. उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. बाद में हिंदुस्तान आवाम मोर्चा का गठन किया था. इसके बाद वे एनडीए में शामिल हो गए. 2020 विधानसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश की पार्टी के साथ गठबंधन किया था. जब नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ा और महागठबंधन के साथ सरकार बनाई, जीतन राम मांझी महागठबंधन में आ गए.  

Advertisement

प्रशांत किशोर (पीके)

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इन दिनों बिहार में राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटे हैं. वे इन दिनों राज्य में जनसुराज यात्रा निकाल रहे हैं. कभी नीतीश के करीबी रहे प्रशांत इन दिनों खुलकर उनके खिलाफ बयानबाजी भी कर रहे हैं. वे लगातार कई मुद्दों पर नीतीश को घेरते नजर आ रहे हैं.  प्रशांत किशोर ने 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की चुनाव रणनीति बनाई थी. इस चुनाव में बीजेपी को जीत मिली. इसके बाद  प्रशांत किशोर ने बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुनावी रणनीति बनाई. बिहार में चुनाव जिताने में मदद करने के बाद पीके नीतीश कुमार के काफी करीबी हो गए. नीतीश ने किशोर को अपना सलाहकार बनाया था . वे जदयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी थे. उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिला था. हालांकि, बाद में प्रशांत किशोर को जदयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. 

शरद यादव 

शरद यादव का 12 जनवरी को निधन हो गया था. शरद यादव कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी हुआ करते थे. वे जदयू के पूर्व अध्यक्ष भी रहे. 7 बार लोकसभा के सांसद चुने गए. इसके साथ ही वे केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे. नीतीश कुमार के पाला बदलने वाले रवैये से शरद यादव नाखुश थे. नीतीश ने 2013 में बीजेपी से नाता तोड़ने का फैसला किया, तब शरद यादव साथ नहीं छोड़ना चाहते थे. इसके बाद दोनों के बीच खटास आना शुरू हो गई. लेकिन जब 2017 में नीतीश ने महागठबंधन से अलग होकर भाजपा से हाथ मिलाया और एनडीए में शामिल होकर सरकार बना ली. तब नीतीश कुमार के इस फैसले ने शरद यादव का धैर्य तोड़ दिया.

Advertisement

शरद यादव ने विपक्षी खेमे में रहने का फैसला किया और 2018 में लोकतांत्रिक जनता दल नाम की नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया. हालांकि बाद में उन्होंने मार्च 2022 में अपनी पार्टी का राजद में विलय कर दिया.
 


 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement