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पहले देशद्रोह का चार्ज, अब राहतों की बौछार... कैसे पलट गई शहला राशिद और हार्दिक पटेल की कहानी!

जेएनयू की पूर्व छात्र नेता शहला राशिद और पाटीदार आंदोलन के कर्ताधर्ता हार्दिक पटेल. दोनों की राजनीति में 360 डिग्री का टर्न आया है. मुखर बीजेपी विरोध, आंदोलन और अभियान के बाद ये दोनों ही युवा नेता अब केंद्र की नीतियों से हामी रखते हैं, हार्दिक तो बीजेपी विधायक भी है. इस बीच दो बीजेपी शासित सरकारों ने इनके खिलाफ चल रहे देशद्रोह के मुकदमों को वापस ले लिया है.

शहला राशिद और हार्दिक पटेल से वापस लिए गए देशद्रोह के केस. (फोटो डिजाइन-आजतक) शहला राशिद और हार्दिक पटेल से वापस लिए गए देशद्रोह के केस. (फोटो डिजाइन-आजतक)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 04 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 10:26 AM IST

देश की अदालतों के गलियारे से पिछले एक सप्ताह में दो अहम खबरें सामने आई हैं. कभी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ मुखर और विरोध की तीव्र आवाजों में शुमार शहला राशिद और हार्दिक पटेल से देशद्रोह के मुकदमे वापस ले लिए गए हैं. 

शहला राशिद जेएनयू की पूर्व छात्र नेता रही हैं और देश की राजनीति में नरेंद्र मोदी के उभार के दौरान उनके नीतियों, कार्यों की प्रखर आलोचक रही हैं. हालांकि पिछले कुछ सालों के दौरान उनके रुख में बदलाव आया है और अब वे केंद्र की नीतियों की सराहना करती हैं. खासकर जम्मू-कश्मीर से जुड़े फैसलों के संदर्भ में. 

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2015 में गुजरात के हिंसक पाटीदार आंदोलन के चेहरे रहे हार्दिक पटेल की राजनीति में 360 डिग्री का टर्न आया. हार्दिक पटेल ने जिस बीजेपी सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. अब उसी बीजेपी के नेता बन गए हैं. हार्दिक पटेल अभी गुजरात के वीरगाम से बीजेपी के विधायक हैं. 

आइए अब समझते हैं कि शहला राशिद और हार्दिक पटेल पर देशद्रोह के आरोप थे क्या, ये आरोप किस वजह से और कब लगे थे और इसे कैसे वापस लिया गया था. 

शहला राशिद, JNU और विवाद

शहला राशिद का नाम देश की राजनीति में तब सुर्खियों में आया जब वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में छात्र राजनीति में सक्रिय हुईं. वे 2015-16 में JNU छात्र संघ (JNUSU) की उपाध्यक्ष चुनी गईं थीं. इस दौरान शहला वामपंथी छात्र संगठन AISA की सदस्य थीं. 

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JNU में  9 फरवरी 2016 को एक घटना हुई. यहां यूनिवर्सिटी कैंपस में कथित तौर पर "देश विरोधी नारे" लगाए गए. इस घटना में छात्र नेता कन्हैया कुमार, उमर खालिद को गिरफ्तार किया गया था. शहला ने इन छात्रों की रिहाई के लिए न सिर्फ आंदोलन किया बल्कि इसका नेतृत्व भी किया. इस दौरान वे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आईं. 

साम्प्रदायिकता, देश में दक्षिणपंथ की राजनीति के उभार, छात्र राजनीति, बीजेपी की तीखी आलोचना पर शहला के विचार युवाओं में लोकप्रिय हुए. उन्हें टीवी चैनलों में बुलाया जाने लगा. 

गौरतलब है कि शहला से देशद्रोह के जो मामले वापस लिए गए हैं उनका JNU के किसी मामले से लेना-देना नहीं है. 

शहला पर क्यों दर्ज हुआ देशद्रोह का केस

शहला तब जम्मू-कश्मीर की नीतियों को लेकर भी केंद्र की आलोचना करती थीं. 5 अगस्त 2019 को जब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाया तो घाटी की राजनीति सुलग उठी. इसी दौरान शहला ने एक्स पर पोस्ट कर (तब ट्विटर) भारतीय सेना पर कश्मीर की जनता पर अत्याचार करने का आरोप लगाया था. उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट किए थे.

18 अगस्त 2019 को शेहला ने सेना को लेकर एक के बाद एक कई विवादास्पद और आपत्तिजनक ट्वीट किए थे. शेहला ने भारतीय सेना पर कश्मीर के लोगों के प्रति अत्याचार करने का आरोप लगाया था.

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एक ट्वीट में उन्होंने कहा, 'सशस्त्र बल रात में घरों में घुस रहे हैं, लड़कों को उठा रहे हैं, घरों में तोड़फोड़ कर रहे हैं, जानबूझकर फर्श पर राशन गिरा रहे हैं, चावल के साथ तेल मिला रहे हैं.' 

शिकायत के मुताबिक दूसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा, 'शोपियां में 4 लोगों को आर्मी कैंप में बुलाया गया और 'पूछताछ' (यातना) की गई. उनके पास एक माइक रखा गया था, ताकि पूरा इलाका उनकी चीखें सुन सके और आतंकित हो सके. इससे पूरे क्षेत्र में भय का माहौल बन गया

तब सेना ने शेहला के आरोपों का खंडन करते हुए इसे झूठ करार दिया था. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आईपीसी (IPC) की धारा 124A, 153A, 153, 504 और 505 के तहत मामला दर्ज किया था.

बता दें कि IPC के तहत 124A देशद्रोह की धाराएं हैं. देश में लागू नए अपराध कानून के तहत के ये धाराएं बदल गई हैं. जुलाई 2024 में IPC की जगह पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) लाया गया. अब ऐसे मामले BNS के सेक्शन 196 के तहत दर्ज होते हैं. 

इसके बाद अलख आलोक श्रीवास्तव नाम के एक वकील ने शेहला के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी. शेहला पर कई और धाराएं भी लगाई गई थीं. 

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चार साल बाद LG ने दी केस चलाने की अनुमति

इस घटना के चार साल बीतने के बाद, अगस्त 2023 में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने शेहला के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी थी. उपराज्यपाल के ऑफिस कहा कि, "JNUSU पूर्व उपाध्यक्ष और AISA की सदस्य शेहला राशिद के खिलाफ मामला चलाने की मंजूरी दी जाती है. उपराज्यपाल ने सेना के बारे में उनके दो ट्वीट को लेकर केस चलाने की अनुमति दी है. इन ट्वीट्स का उद्देश्य समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना था."

2023 में ही शहला ने की केंद्र सरकार की तारीफ

गौरतलब है कि 2023 ही वो साल था जब शहला की नीतियों में बदलाव देखा गया. अनु्च्छेद 370 को लेकर केंद्र की आलोचना करने वाली शहला ने 15 अगस्त 2023 को उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट में लिखा, "यह स्वीकार करना असुविधाजनक हो सकता है, लेकिन कश्मीर में मानवाधिकार रिकॉर्ड में सुधार हुआ है." 

इस पोस्ट में उन्होंने केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के प्रयासों को श्रेय दिया. 

यह भी पढ़ें: 'कश्मीर आज गाजा नहीं है...', JNU कांड से चर्चा में आईं शहला ने फिर की मोदी सरकार की तारीफ

नवंबर 2023 में एक साक्षात्कार में उन्होंने कश्मीर में शांति और सकारात्मक बदलावों के लिए पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की नीतियों की खुलकर प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि "कश्मीर के बदले हालात के लिए मैं वर्तमान सरकार, खासकर प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को श्रेय देना चाहूंगी. यह एक रक्तहीन राजनीतिक समाधान था." 

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इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर गाजा जैसा नहीं है, और इसके लिए केंद्र की नीतियों को धन्यवाद दिया. 

देशद्रोह के केस वापस लेने की इजाजत

अब दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने शहला के खिलाफ दर्ज देशद्रोह मामले में दर्ज केस वापस लेने की अनुमति दे दी है. 

मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अनुज कुमार सिंह ने 27 फरवरी को यह आदेश जारी. अदालत में अभियोजन पक्ष ने एक अर्जी दाखिल कर बताया कि दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने शहला के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी वापस ले ली है. रिपोर्ट है कि ये फैसला एक स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिश पर लिया गया है. LG ने स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिश को मंजूरी दी है.

हार्दिक पटेल की कहानी

ठीक शहला राशिद के केस जैसी कहानी गुजरात में भी हुई. यहां पर देशद्रोह का मुकदमा झेल रहे बीजेपी विधायक हार्दिक पटेल के खिलाफ केस को वापस लेने की गुजरात सरकार की अपील को अहमदाबाद की सेशन कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. 

हार्दिक पटेल के अलावा चार अन्य लोग दिनेश बमभानिया, चिराग पटेल, केतन पटेल और अल्पेश कठारिया पर 2015 के पाटीदार आंदोलन मामले में देशद्रोह का केस चल रहा था. 

शनिवार को पारित अपने आदेश में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एमपी पुरोहित की अदालत ने विशेष लोक अभियोजक सुधीर ब्रह्मभट्ट द्वारा देशद्रोह के मामलों की सुनवाई को वापस लेने के लिए दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया. 

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अदालत ने पांचों आरोपियों को  (सीआरपीसी) की धारा 321 (ए) के तहत अभियोजन से वापस लिए गए सभी आरोपों से मुक्त कर दिया. 

बता दें कि गुजरात सरकार ने पिछले महीने 2015 के पाटीदार आरक्षण आंदोलन के संबंध में दर्ज नौ मामलों को वापस लेने का फैसला किया था, जिसमें दो राजद्रोह के मामले भी शामिल थे.

क्या था आरोप, कब हुआ था केस 

25 अगस्त 2015 को अहमदाबाद के GMDC मैदान में एक विशाल रैली हुई. नाम था "महाक्रांति रैली". इसमें लाखों लोग जुटे. इस रैली का कर्ता-धर्ता था मात्र 22 साल का एक लड़का. नाम था हार्दिक पटेल. 

मध्यमवर्गीय पाटीदार (पटेल) परिवार में जन्मे हार्दिक पटेल ने पाटीदार समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल करने और सरकारी नौकरियों व शिक्षा में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया और गुजरात के समाज और सियासत में उथल-पुथ मचा दिया. 

हार्दिक के जोशीले भाषणों और नारों जैसे "जय सरदार, जय पाटीदार" ने इस रैली से युवाओं को जोड़ा. रैली के बाद गुजरात में हिंसा भड़की, जिसमें सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा और लगभग 10 लोगों की जान गई. 

इसके चलते हार्दिक पर देशद्रोह और हिंसा भड़काने के आरोप लगे. 

इस रैली के बाद शहर की अपराध शाखा ने हार्दिक पटेल और उनके तीन सहयोगियों को गिरफ्तार किया और उन पर आईपीसी की धारा 124 ए (देशद्रोह) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज किया.  सूरत पुलिस ने हार्दिक पटेल के खिलाफ अपने समुदाय के युवाओं को आत्महत्या करने के बजाय पुलिस कर्मियों को मारने के लिए उकसाने के आरोप में एक और देशद्रोह का मामला दर्ज किया. 

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इस आंदोलन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल की कुर्सी हिला दी, और 2016 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. 

हार्दिक ने बीजेपी पर पटेल समुदाय की उपेक्षा और "विकास के झूठे वादों" का आरोप लगाया. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोला और कांग्रेस को समर्थन दिया. 2017 में बीजेपी जीत तो गई लेकिन उसकी सीटें 182 में से 99 पर सिमट गई. 

विवादित सीडी और छवि पर असर

 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक कथित सेक्स सीडी सामने आई. इसके बारे में कई तरह की बातें की गई. लेकिन इतना जरूर हुआ कि इससे पाटीदार आंदोलन प्रभावित हुआ और इसे हार्दिक पटेल की छवि से भी जोड़ा गया. तब हार्दिक ने इस सीडी को फर्जी करार दिया था और इसे "बीजेपी की साजिश" बताया था.

कांग्रेस से करीबी, मोहभंग और बीजेपी का साथ

इस दौरान वे कांग्रेस के करीब आए और 2019 में पार्टी में शामिल हो गए. कांग्रेस ने 2020 में उन्हें गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया. 
हालांकि कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया. उन्होंने अंदरूनी कलह और नेतृत्व से मतभेद का हवाला देकर मई 2022 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. 

2 जून 2022 को हार्दिक बीजेपी में शामिल हो गए. उन्होंने कहा कि "बीजेपी निर्णायक नेतृत्व देती है और वे कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने, राम मंदिर जैसे फैसलों से प्रभावित हैं. 

गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने उन्हें वीरमगाम सीट से टिकट दिया, जहां उन्होंने कांग्रेस के लाखा भरवाड़ को 50,000 से अधिक वोटों से हराया. 
 

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