
दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच मुख्यमंत्री आवास को लेकर रस्साकशी चल रही है. AAP ने एलजी वीके सक्सेना पर आरोप लगाया है कि उन्होंने बीजेपी के इशारे पर दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी से सिविल लाइंस स्थित 6, फ्लैगस्टाफ रोड बंगले को 'जबरन खाली' करवाया है. बता दें कि अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले इसी बंगले में रहते थे. वहीं, बीजेपी ने आरोप लगाया है कि अरविंद केजरीवाल ने बंगला छोड़ने के बाद इसका हैंडओवर पीडब्ल्यूडी को नहीं दिया और आतिशी बिना अलॉटमेंट के ही इसमें रहने आ गईं.
भाजपा का कहना है कि सरकारी आवास खाली होने पर PWD उसका कब्जा लेता है, उसकी इन्वेन्ट्री (सामान का लेखा-जोखा) बनाता है. उसके बाद ही आवास किसी और को आवंटित किया जा सकता है. आतिशी को पहले से ही 17 AB मथुरा रोड का आवास आवंटित हुआ है. अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या कोई मुख्यमंत्री कुर्सी से हटने के बाद, दूसरे मुख्यमंत्री को अपनी मर्जी से अपना आधिकारिक आवास सौंप सकता है? क्योंकि मुख्यमंत्री आवास किसी की निजी संपत्ति नहीं बल्कि सरकारी संपत्ति होती है. आइए जानते हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री को सरकारी आवास के आवंटन की प्रक्रिया क्या होती है...
दिल्ली में सीएम का कोई आधिकारिक आवास नहीं
दरअसल, दिल्ली में मुख्यमंत्री का कोई आधिकारिक आवास नहीं है. अरविंद केजरीवाल से पहले जाे भी दिल्ली के CM हुए, वे अलग-अलग बंगलों में रह चुके हैं. जैसे 1993 में मदनलाल खुराना को 33 शामनाथ मार्ग स्थित आवास आवंटित हुआ था. उनके बाद साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री बने तो उन्हें 9 शामनाथ मार्ग स्थित बंगला आवंटित हुआ था. दिल्ली की 15 साल तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित अपने पहले कार्यकाल में 1998 से 2004 तक एबी-17 मथुरा रोड स्थित आवास में रहीं. इसके बाद दूसरे और तीसरे कार्यकाल में 3 मोतीलाल नेहरू मार्ग स्थित बंगले में रहीं. उनके मुख्यमंत्री नहीं रहने के बाद यह बंगला पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आवंटित हो गया था.
दिल्ली का जो भी मुख्यमंत्री बनता है वह अपनी सहूलियत के हिसाब से बंगला चुनता है. मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उसे अपने निजी या किराए के मकान में रहना पड़ता है. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री को अलग से कोई आवास भत्ता भी नहीं दिया जाता. प्रतिमाह मिलने वाली राशि में ही आवास भत्ता शामिल होता है. जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने तो उनके पास घर नहीं था. सिविल लाइंस स्थित जिस 6, फ्लैगस्टाफ रोग बंगले में वह रहने आए, वह मूल रूप से मुख्य सचिव का आवास था, जो उस समय खाली पड़ा था, इसलिए यह उन्हें आवंटित किया गया था.
दो घरों को मिलाकर बना 6 फ्लैगस्टाफ रोड बंगला
यह बंगला तीन साल पहले तब विवादों में आया था, जब 45 करोड़ रुपये की लागत से इसका रेनोवेशन कराया गया था. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने आरोप लगाए कि जो अरविंद केजरीवाल कभी कहते थे कि उन्हें दो कमरों से बड़े घर की जरूरत नहीं है, वही जब देश कोरोना महामारी से जूझ रहा था, उस समय करोड़ों रुपये खर्च करके अपने बंगले का रेनोवेशन करा रहे थे. दिल्ली के बीजेपी सांसद रामवीर सिंह बिधूड़ी ने आरोप लगाया कि अरविंद केजरीवाल के बगल में डीडीए वाइस चेयरमैन का घर था और दिल्ली के होम सेक्रेटरी की कोठी थी, उन्होंने उन दोनों कोठियों को तुड़वाकर अपने ‘शीश महल’ का हिस्सा बना लिया. फिलहाल इस बंगले की विजिलेंस जांच चल रही है.
नए CM को बंगले के लिए करना पड़ता है आवेदन
दिल्ली पूर्व मुख्य सचिव आलोक सहगल के मुताबिक उपराज्यपाल के आधिकारिक आवास 'राज निवास' को छोड़कर दिल्ली में किसी भी विधायक के लिए कोई भी आधिकारिक आवास निर्धारित नहीं है. सहगल ने एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में बताया कि जब कोई नया मंत्री पदभार ग्रहण करता है तो बंगले पुनः आवंटित किये जाते हैं. इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि मुख्यमंत्री, मंत्री या विधायक पद से हटने के बाद जो बंगला छोड़ता है, उसकी जगह लेने वाले व्यक्ति को वही पुराना आवास आवंटित हो. सरकारी बंगले के आवंटन के लिए प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री, जैसे शीला दीक्षित और मदन लाल खुराना भी अलग-अलग बंगलों में रहे थे.
प्रक्रिया का पालन किए बिना आवास में रहना अवैध
उन्होंने बताया कि आवास आवंटित करने की प्रक्रिया में कई चरण शामिल हैं, जिसमें उचित आदेश और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों जैसे अवर सचिव या उप सचिव द्वारा औपचारिक प्रमाणीकरण शामिल है. चाहे मुख्यमंत्री ही क्यों न हो, किसी सरकारी बंगले में रहने के लिए उसे पीडब्ल्यूडी से मंजूरी लेनी पड़ती है. उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना, सरकारी आवास में रहना अवैध है. उन्होंने यह भी बताया कि सरकारी नियमों के तहत कोई भी व्यक्ति एक साथ दो सरकारी आवास नहीं रख सकता है. दिल्ली सीएम को उस आवास के लिए आवेदन करना होता है जिसमें वह रहना चाहते या चाहती हैं. बंगला या तो सेंट्रल पूल या सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) पूल का होता है या आवेदन के बाद रिक्तता के आधार पर आवंटित किया जाता है.
सीएम पद छोड़ने वाले को खाली करना पड़ता है घर
जब कोई सीएम इस्तीफा दे देता है, तो उसे उचित अवधि के भीतर आवंटित घर खाली करना होता है, जो लगभग दो-तीन सप्ताह होता है. तय समय में बंगला खाली नहीं करने पर हर्जाना भरना पड़ता है. सेंट्रल पूल और जीएडी पूल के बंगलों के लिए नियम एक समान हैं. जानकारी के अनुसार, PWD ने इस बंगले को सील कर दिया है और दिल्ली के विजिलेंस डिपार्टमेंट ने PWD के दो सेक्शन ऑफिसर और दिल्ली के मुख्यमंत्री के स्पेशल सेक्रेटरी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. इस मामले पर एलजी हाउस के सूत्रों का कहना है कि पहले इस बंगले की इन्वेंट्री तैयार की जाएगी और उसके बाद ही आवंटित किया जाएगा.