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ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी विवाद: वो दलीलें, जिनसे मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट हुआ तैयार

वाराणसी जिला अदालत ने श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मस्जिद मामले को सुनवाई के योग्य मान लिया है. कोर्ट ने अपने 26 पेज के फैसले में मान लिया है कि यह मामला उपासना स्थल कानून 1991 के दायरे से बाहर है. कोर्ट में सुनवाई के दौरान हिंदू महिलाओं की याचिका पर उनकी ओर से वकील हरिशंकर जैन ने दलीलें रखी थीं.

ज्ञानवापी मस्जिद (फाइल फोटो) ज्ञानवापी मस्जिद (फाइल फोटो)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 5:18 AM IST

वाराणसी के श्रंगार गौरी-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में जिला जज की अदालत ने याचिका को सुनवाई योग्य माना है. कोर्ट ने अपने 26 पेज के फैसले में मान लिया कि याचिकाकर्ता महिलाओं का दावा उपासना स्थल कानून 1991 के दायरे से बाहर है. तभी तो इस कानून से जुड़े आईसीसी यानी इंडियन सिविल कोड के नियम 7 (11) के दायरे में ये नहीं आता. अब इस मामले में 22 सितंबर को सुनवाई होगी.

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हिंदू महिलाओं की याचिका पर उनकी ओर से हरिशंकर जैन ने दलील रखी कि ये मामला कानून में वर्णित अयोध्या मामले की छूट वाले दायरे में नहीं है, लेकिन अपनी प्रकृति और प्रमाणिक सत्यता की वजह से ये इस कानून के दायरे से बाहर है क्योंकि यहां 15 अगस्त 1947 की बात तो छोड़ ही दी जाए 1993 तक श्रृंगार गौरी की पूजा होती रही है. श्रृंगार गौरी, काशी विश्वनाथ के चारों ओर मौजूद शक्ति की प्रतीक नौ गौरियों में से एक हैं. इनका स्थान वहीं है जहां ज्ञानवापी मस्जिद की दीवार का एक कोना है. 

ज्ञानवापी के तहखाने में होती थी पूजा 

अदालत के सवाल पर याचिकाकर्ताओं ने ये प्रमाण भी प्रस्तुत कर दिया कि 2021 तक साल में एक दिन चैत्र नवरात्र की चतुर्थी को माता श्रृंगार गौरी की पूजा का अधिकार हिंदुओं को है. इसके अलावा ये भी दावा किया गया कि पिछली सदी के अंतिम दशक तक व्यास परिवार का ज्ञानवापी के तहखाने में स्थित देव प्रतिमाओं की पूजा के लिए आना जाना था.  

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मेरिट पर होगी मुकदमे की सुनवाई 

कोर्ट ने अपने फैसले में इन दावों का जिक्र करते हुए उनकी सत्यता पर भरोसा भी किया है. अब इस फैसले से ये तो तय हो गया कि सदियों पुराने इस विवाद पर सुनवाई जारी रहेगी यानी अब मेरिट पर मुकदमा सुना जाएगा.  

5 महिलाओं ने मांगी थी पूजा की अनुमति 

अगस्त 2021 में 5 महिलाओं ने श्रृंगार गौरी में पूजन और विग्रहों की सुरक्षा को लेकर याचिका डाली थी. इस पर सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर ज्ञानवापी का सर्वे कराने का आदेश दिया था. हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि सर्वे के दौरान शिवलिंग मिला. जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा था कि ये एक फव्वारा है. इसके बाद हिंदू पक्ष ने विवादित स्थल को सील करने की मांग की थी. सेशन कोर्ट ने इसे सील करने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. 

SC के आदेश के बाद हुई थी जिला कोर्ट में सुनवाई 

सुप्रीम कोर्ट ने केस जिला जज को ट्रांसफर कर इस वाद की पोषणीयता पर नियमित सुनवाई कर फैसला सुनाने का निर्देश दिया था. मुस्लिम पक्ष की ओर से यह दलील दी गई थी कि ये प्रावधान के अनुसार और उपासना स्थल कानून 1991 के परिप्रेक्ष्य में यह वाद पोषणीय नहीं है, इसलिए इस पर सुनवाई नहीं हो सकती है. उपासना स्थल कानून 1991 के तहत धार्मिक स्थलों की 1947 के बाद की स्थिति बरकरार रखने का प्रावधान है.
 

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