
कांग्रेस आलाकमान, जिसे उम्मीद थी कि उसे आगामी लोकसभा चुनावों में कर्नाटक से "कम से कम 20 सीटें" मिल सकती हैं, उसकी उम्मीदों को झटका लगने लगा है. दरअसल मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच एक जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को जारी करने को लेकर मतभेद पैदा हो गए हैं.
यहां तक कि मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री अपने-अपने समर्थकों के साथ "सत्ता साझा करने के फॉर्मूले" को लेकर अक्सर बहस करते रहे हैं, लेकिन दोनों के बीच ताजा तकरारर चुनाव अभियान के दौरान एक साथ काम करने की उनकी क्षमता पर असर डाल सकती है. हालांकि कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने पिछले दो महीनों में दो बार बेंगलुरु का दौरा किया है और पार्टी के लोकसभा उम्मीदवारों की पहले से पहचान करने के लिए स्थानीय नेताओं के साथ बैठकें की हैं. चयन पर बहुत कम प्रगति हुई है क्योंकि वेणुगोपाल शीर्ष नेताओं के बीच सर्वसम्मति बनाने में विफल रहे हैं.
सिद्धारमैया की चाल
दरअसल, जब से सिद्धारमैया ने पिछले महीने सार्वजनिक रूप से दावा किया कि वह अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे तो इसके बाद वेणुगोपाल के सभी पार्टीजनों को "सीएम पद" के बारे में बोलने से परहेज करने के निर्देश दिया था. वहीं डीके शिवकुमार अपने वफादारों के साथ अपनी रणनीति बनाने में व्यस्त हो गए.
अब, बुधवार को एक ट्वीट के माध्यम से सिद्धारमैया की घोषणा कि उनकी सरकार "जातिगत जनगणना रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिए तैयार है और जल्दी ही इसे सबमिट किया जाएगा. रिपोर्ट पार्टी लाइन से इतर वोक्कालिगा नेताओं के लिए एक खुली चुनौती प्रतीत हो रही है जिन्होंने एक ज्ञापन देकर उनसे पूछा था कि "2019 में तैयार की गई कंथाराजू समिति की रिपोर्ट को खारिज कर दें और राज्य में नए सिरे से जातिगत जनगणना करवाने का आदेश दें.
जद (एस) और भाजपा के दिग्गज नेताओं, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा, एचडी कुमारस्वामी, एसएम कृष्णा, सदानंद गौड़ा, आर अशोक और शोभा करंदलाजे के अलावा, कांग्रेस मंत्रियों शिवकुमार, चेलुवरायस्वामी और कृष्णा बायरेगौड़ा ने भी ज्ञापन प्रति पर हस्ताक्षर किए थे.
विवादास्पद जाति रिपोर्ट
मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धारमैया के पिछले कार्यकाल 2013 और 2018 के दौरान गठित कंथाराजू समिति की रिपोर्ट विवादों के घेरे में है. कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष एच कंथाराजू अपनी समिति के काम को तय कार्यक्रम के अनुसार पूरा करने में विफल रहे थे. 2019 में जब सत्ता कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार आई तो उन्होंने कंथाराजू को आयोग को बंद करने के लिए एक पत्र भेजा. इस दौरान कंथाराजून ने जल्दबाजी में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपने की कोशिश की. चूंकि कुमारस्वामी लगातार उन्हें टालते रहे, इसलिए कंथाराजू ने अपनी रिपोर्ट पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य सचिव को दी और चले गए.
बीजेपी सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दी थी रिपोर्ट
कंथाराजू समिति ने "जनगणना" पर 162 करोड़ रुपये खर्च किए थे, लेकिन आरोप लगा कि डेटा संग्रहण लापरवाही से किया गया था और यह वैज्ञानिक पद्धति अपनाने में विफल रही थी. इस बीच, कुछ "लीक" रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि समिति ने लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रमुख समुदायों की आबादी का आकार पहले के अनुमानों और रिपोर्टों की तुलना में बहुत कम पाया है. कंथाराजू रिपोर्ट का तीव्र विरोध तभी शांत हुआ जब कुमारस्वामी की जगह लेने वाले बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था.
तब से, और भी चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं कि समिति की "मूल" रिपोर्ट और उसकी फोटो-कॉपी गायब हो गई है और समिति के सदस्य-सचिव आवश्यकतानुसार रिपोर्ट पर अपने हस्ताक्षर करने में विफल रहे हैं. वर्तमान पिछड़ा वर्ग अध्यक्ष जयप्रकाश हेगड़े ने दावा किया है कि कंथाराजू समिति द्वारा एकत्र किया गया पूरा डेटा सुरक्षित है और वह डेटा का विश्लेषण करने के बाद सरकार को एक नई रिपोर्ट सौंपेंगे. चूंकि अध्यक्ष के रूप में हेगड़े का कार्यकाल इस महीने समाप्त हो रहा है, इसलिए सिद्धारमैया सरकार उन्हें अपनी रिपोर्ट पूरी करने के लिए 3 महीने का विस्तार दे सकती है.
सिद्धा मुकाबले के लिए तैयार?
जिस तरह देश भर में जातिगत जनगणना को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपना समर्थन दिया है उससे सिद्धारमैया का हौसला जरूर बढ़ा है. उन्होंने अपने विरोधियों से कहा है कि उनका कदम पार्टी के रुख के अनुरूप है. लोकसभा चुनाव के बाद कर्नाटक में "नेतृत्व परिवर्तन" को लेकर पार्टी में लगातार आ रही खबरों से नाराज सिद्धारमैया टकराव की स्थिति में अपना खुद का समर्थन आधार जुटाते दिख रहे हैं.
शिवकुमार को "अगले" मुख्यमंत्री के रूप में पेश किए जाने के जवाब में, सिद्धारमैया के करीबियों ने एससी और ओबीसी वर्गों से दो अतिरिक्त उपमुख्यमंत्री रखने का विचार रखा है. केपीसीसी के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ एससी नेता, जी परमेश्वर ने इस विचार का "समर्थन" किया है, और अंतिम निर्णय आलाकमान पर छोड़ दिया है.
कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष, जो वर्तमान में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में प्रचार में व्यस्त हैं, 3 दिसंबर को परिणाम घोषित होने के बाद बेंगलुरु पहुंचने की संभावना है. सिद्धारमैया और कुमारस्वामी दोनों को "चेतावनी" दी जा सकती है कि उन्हें लोकसभा चुनावों पर फिर से ध्यान केंद्रित करना चाहिए और अच्छे नतीजे लेकर आना चाहिए.
रिपोर्ट- रामकृष्ण उपाध्याय