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पाठकों-दर्शकों पर कीमतों का कम बोझ मीडिया के लिए बड़ी समस्याः अरुण पुरी

इंडिया टुडे ग्रुप के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ अरुण पुरी ने प्रिंट मीडिया का उदाहरण देते हुए 'रद्दी के अर्थशास्त्र' का जिक्र किया. उन्होंने कहा, 'भारत में खबर बेहद सस्ते में उपलब्ध है और ये एक बड़ी समस्या है. एक पाठक को अखबार तो लगभग मुफ्त में ही मिलते हैं, इसे मैं 'रद्दी का अर्थशास्त्र' कहता हूं. एक आम पाठक हफ्ते भर के अखबारों को रद्दी वाले को उस कीमत से ज्यादा में बेच देता है, जितना वह पढ़ने के लिए भुगतान करता है.

इंडिया टुडे ग्रुप के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ अरुण पुरी इंडिया टुडे ग्रुप के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ अरुण पुरी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 11:25 PM IST

प्रिंट और ब्रॉडकास्ट मीडिया के पाठकों-दर्शकों पर कीमतों का बोझ कम रखने के लिए दोनों ही माध्यम विज्ञापन पर निर्भर हैं. इससे मीडिया इंडस्ट्री पर काफी दबाव है. इंडिया टुडे ग्रुप के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ अरुण पुरी ने शनिवार को मुंबई में सुभाष घोषाल मेमोरियल लेक्चर 2022 को संबोधित करते हुए ये बात कही. इस लेक्चर का आयोजन एडवरटाइजिंग एजेंसीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया और सुभाष घोषाल फाउंडेशन ने किया था. 

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अपने संबोधन में अरुण पुरी ने सबसे पहले प्रिंट मीडिया का उदाहरण देते हुए 'रद्दी के अर्थशास्त्र' का जिक्र किया. उन्होंने समझाते हुए कहा, 'भारत में खबर बेहद सस्ते में उपलब्ध है और ये एक बड़ी समस्या है. एक पाठक को अखबार तो लगभग मुफ्त में ही मिलते हैं, इसे मैं 'रद्दी का अर्थशास्त्र' कहता हूं. एक आम पाठक हफ्ते भर के अखबारों को रद्दी वाले को उस कीमत से ज्यादा में बेच देता है, जितना उसने पढ़ने के लिए भुगतान किया होता है. मैं इसमें ये बात भी जोड़ सकता हूं कि ये इकलौता मीडिया उत्पाद है जिसका उपभोग करना पाठकों ने बंद कर दिया है, लेकिन इसकी आपूर्ति नहीं रुकी है. यानी लोगों ने अखबार पढ़ना बंद कर दिया है, लेकिन अखबार उनके घर अब भी आ रहा हैं क्योंकि ये उनके घर के बजट पर असर नहीं डालता है.'

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अरुण पुरी ने कहा, 'यही कारण है कि मीडिया की बड़ी निर्भरता विज्ञापनों पर है. उसे सरकार एवं विज्ञापन देने वाले की इच्छाओं के अनुरूप थोड़ा लचीला रुख रखना पड़ता है.'

इसके बाद ब्रॉडकास्ट मीडिया को लेकर अरुण पुरी ने कहा कि इस माध्यम को लेकर नीति के अभाव ने पूरे उद्योग को 'तितर-बितर' करके रख दिया है.

अरुण पुरी ने कहा, '90 के दशक की शुरुआत में सैटेलाइट टीवी की लॉन्चिंग के बाद हमारे पास एक सुसंगठित केबल डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम बनाने का मौका था. सरकार तब जागी जब कॉलोनियों में अवैध तरीके से एक लाख से ज्यादा केबल ऑपरेटर पहुंच गए. सरकार विदेशों में केबल सिस्टम के काम करने के मॉडल को देख सकती थी, वहां किस तरह से शहरों के लिए सही तरीके से फ्रेंचाइजी दी जाती हैं. तकनीकी मानकों के साथ केबल बिछाई जाती हैं. ये अब जाकर हाल ही में हुआ है जब केबल सिस्टम कॉरपोरेट बना है.'
 
मौजूदा परिस्थिति को लेकर उन्होंने कहा कि अब सरकार ट्राई (TRAI) के माध्यम से ग्राहकों को चैनल उपलब्ध कराने की कीमत का नियमन करती है.

अरुण पुरी ने कहा, 'हमारी सरकार को आज भी लगता है कि जनता को सस्ता केबल कनेक्शन मिलना उसका संवैधानिक अधिकार है. ये सिर्फ लोक लुभावन राजनीति का एक स्वरूप है. इस तरह एक बार फिर, दर्शकों को मीडिया का लाभ सस्ते में मिलता है और मीडिया हाउस की सब्सक्रिप्शन से होने वाली इनकम इंटरनेशनल मानकों की तुलना में काफी कम है. ऐसे में चैनल, खासकर के नए चैनल विज्ञापन पर बहुत निर्भर करते हैं और TRP की दौड़ में लगे रहते हैं.

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चार्टर्ड अकाउंटेंट से मीडिया टाइकून तक की अपनी यात्रा की यादों से भरे भाषण में अरुण पुरी ने बताया कि कैसे उनके करियर की शुरुआत अकाउंटिंग से हुई.

अरुण पुरी ने बताया, 'स्कूल के बाद 16 साल की उम्र में, मैं लंदन चला गया, ताकि लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जाने के लिए ए-लेवल कोर्स कर सकूं. क्योंकि इंटर्नशिप के दौरान अकांटेंसी में फाइनल एक्जाम पास करने के बाद ही आप अकाउंटिंग में एक स्पेशलाइज्ड अंडरग्रेजुएट डिग्री हासिल कर सकते थे. मेरा एडमिशन लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में हो गया था, ये वो समय था जब मेरी रुचि करेंट अफेयर्स में होने लगी. ब्रिटेन में अखबारों और मैगजीन की एक वैरायटी मिलती थी, जिनमें मेरी बहुत रुचि थी. लेकिन एक पत्रकार बनने का ख्याल मेरे मन में कभी नहीं आया.'
 
अरुण पुरी ने कहा कि आने वाला कल 'आशा' से भरा है. डिजिटल क्रांति ने मीडिया हाउस के लिए कई अवसर खोले हैं. इसने समाज के अलग-अलग समुदायों तक केन्द्रित समाचार दर्शकों तक पहुंचाने और मीडिया के विस्तार का मार्ग खोला है.

अरुण पुरी ने कहा कि पत्रकारिता के 'पवित्र प्याले' (Holy Grail) में सिर्फ एक दर्शक तक व्यक्तिगत समाचार और कंटेंट पहुंचाने की क्षमता है. सच ही कहा गया है कि मीडिया का काम कहानीकारों से ज्यादा और कुछ नहीं है. पत्रकारिता सही तरीके से कहा गया सच ही है, और अच्छी पत्रकारिता इस सच को यादगार बनाना है.

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अपने संबोधन की शुरुआत में ही अरुण पुरी ने कहा कि 'चार अहम बातों' ने उन्हें पत्रिकारिता और मीडिया के क्षेत्र में सफलता दिलाने में मदद की.

उन्होंने बताया-

1. एक ऑडिटर होने के नाते, मुझे पता था कि किसी मुद्दे के मूल तक पहुंचने के लिए सवाल कैसे पूछे जाएं. इससे स्पष्टता मिली.

2. गैर-पत्रकार पृष्ठभूमि का होने की वजह से मैं किसी भी लेख को एक आम पाठक के नजरिए से देखता था. कई पत्रकार अन्य पत्रकारों के लिए लिखते हैं या लुटियंस सर्किल वाले करीबी लोगों के लिए. एक बॉस के तौर पर इस अप्रोच ने मदद की. 

3. काम के प्रति समर्पण, बारीक जानकारी के लिए पसीना बहाना. न्यूज को जितना संभव हो उतना परफेक्ट बनाने की कोशिश करना.

4. पहले से किसी विचार या एजेंडा का नहीं होना. हर मुद्दे को उसकी मेरिट के आधार पर देखना.

अपने संबोधन के अंत में अरुण पुरी ने इंडिया टुडे ग्रुप और पत्रकारिता के फ्यूचर का जिक्र किया. उनकी पुत्री कली पुरी अब समूह की वाइस-चेयरपर्सन हैं. इस बारे में उन्होंने कहा कि इंडिया टुडे ग्रुप बहुत अच्छे हाथों में है.

उन्होंने अपने श्रोताओं को याद दिलाया कि पत्रकारिता एक नेक पेशा है. भारत की विविधता और लोकतंत्र, उसे काफी जटिल होने बावजूद एक अनोखा और रोचक देश बनाते हैं. उन्होंने कहा, 'मेरा मानना है कि भारत को एक देश के तौर पर बनाए रखने के लिए स्वतंत्र प्रेस होना अनिवार्य है. अगली बार जब आप प्रेस की निंदा करें, तो सोचें कि क्या इसके बिना भारत की स्थिति बेहतर होगी?'

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