
पिछले लगभग 48 घंटे से हमारा देश मोरबी (गुजरात) हादसे पर चर्चा कर रहा है और लोग इस पर अफसोस भी जता रहे हैं, लेकिन आज हम आपको भारत के उन 10 करोड़ लोगों के बारे में बताना चाहते हैं, जो गैस चैंबर बन चुके अपने-अपने शहरों में घुंट-घुंट कर सांस ले रहे हैं. हैरानी की बात ये है कि देश में इस संबंध में कहीं कोई चर्चा नहीं है और सरकारों के साथ शायद लोगों ने भी इस खतरनाक प्रदूषण को न्यू नॉर्मल (New Normal) मान लिया है.
आज दुनिया के कुल 195 देशों में से भारत अकेला ऐसा देश है, जिसकी राजधानी की हवा अब इतनी ज्यादा जहरीली हो चुकी है कि यहां लोग रोजाना 26 सिगरेट (Cigarettes) के बराबर धुएं को ना चाहते हुए भी अपने शरीर में प्रवेश दे रहे हैं. ये स्थिति हर दिन के साथ गंभीर हो रही है. ऐसे सवाल उठता है कि हर मसले पर आए-दिन आंदोलन होने वाले देश में क्या अब साफ हवा में सांस लेने के अधिकार के लिए आंदोलन किया जाएगा?
देश में राष्ट्रीय समस्या बन गया प्रदूषण
इस समय दिल्ली ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत के लगभग सभी बड़े शहरों की हवा खतरनाक श्रेणी में पहुंच चुकी है, इसलिए जो लोग ऐसा सोचते हैं कि प्रदूषण की समस्या सिर्फ दिल्ली की है तो ऐसा नहीं है, बल्कि ये समस्या अब एक राष्ट्रीय समस्या में बदल चुकी है.
दुनिया की पॉल्यूशन कैपिटल बन गया दिल्ली
आज दिल्ली का Air Quality Index यानी हवा की गुणवत्ता 437 के स्तर पर पहुंच गई. जबकि दिल्ली से सटे गाजियाबाद में 362, नोएडा में 430, लखनऊ में 252, गुरुग्राम में 392 और पटना में 145 AQI दर्ज हुआ. यानी अगर आप देखेंगे तो उत्तर भारत के लगभग सभी शहरों की हवा इस समय खतरनाक है और इनमें भी सबसे ज्यादा खराब स्थिति दिल्ली की हवा की है. आज दिल्ली दुनिया की पॉल्यूशन कैपिटल (Pollution Capital) बन चुकी है. दिल्ली की इस जहरीली हवा का सबसे बड़ा कारण है- पराली जलाने की लगातार बढ़ती घटनाएं.
पंजाब में बेहिसाब पराली जा रहे हैं किसान
बता दें कि पराली फसल के उस बचे हुए अवशेष को कहते हैं, जो फसलों की कटाई के दौरान खेतों में ही रह जाता है. चूंकि किसानों को अगली फसल की बुआई करनी होती है, इसलिए वो इस बचे हुए अवशेष को जला देते हैं और इससे जो धुआं निकलता है, वही धुआं, बड़े पैमाने पर दूसरे शहरों की हवा को जहरीला बना देता है. बड़ी बात ये है कि इस समय पंजाब में किसानों द्वारा बेहिसाब पराली जलाई जा रही है.
पंजाब में पराली जलाने के मामलों में 33.5% वृद्धि
इस साल पंजाब में पराली जलाने की 16 हजार से ज्यादा घटनाएं दर्ज हुई हैं, जबकि हरियाणा में ये आंकड़ा लगभग दो हजार है और उत्तर प्रदेश में 1 हजार 181 है. इसके अलावा 15 सितंबर से 28 अक्टूबर के बीच पंजाब में पराली जलाने की 10 हजार से ज्यादा घटनाएं दर्ज हुईं. जबकि पिछले साल इसी समय में ऐसी साढ़े सात हज़ार घटनाएं ही रिपोर्ट हुई थीं. यानी पिछले साल की तुलना में इस साल पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 33.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
हरियाणा और यूपी में पराली जलाने के मामले कम हुए
दूसरी तरफ हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ये घटनाएं पिछले साल के मुकाबले कम हुई हैं. हरियाणा में 15 सितंबर से 28 अक्टूबर के बीच पराली जलाने की 1 हजार 701 घटनाएं दर्ज हुईं जबकि पिछले साल इसी समय में 2 हजार 252 घटनाएं रिपोर्ट हुई थीं. यानी हरियाणा में ऐसी घटनाएं लगभग 25 प्रतिशत तक कम हुई हैं.
AAP ने कहा था- पंजाब में पराली का तिनका नहीं जलेगा
इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी पराली जलाने की घटनाओं पर रोक लगी है. लेकिन पंजाब में ये स्थिति बिल्किुल अलग है. हैरानी की बात ये है कि जब पिछले साल पंजाब में आम आदमी पार्टी चुनाव प्रचार कर रही थी, उस समय दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने ये कहा था कि अगर पंजाब में अरविंद केजरीवाल की पार्टी को जीत मिलती है तो पंजाब में पराली का एक तिनका भी नहीं जलेगा, लेकिन आज स्थिति क्या ये आप सबके सामने है?..
गौरतलब है कि जब पंजाब में AAP की सरकार नहीं थी, तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रदूषण के लिए पंजाब की पराली को जिम्मेदार बताया था. उस समय जब दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ता तो केजरीवाल अक्सर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यही पूछते थे कि पंजाब सरकार (तब कांग्रेस) उन्हें बताए कि वो कब से पराली जलाने की घटनाओं को पूरी तरह से रोकेगी? लेकिन आज जब पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है और मुख्यमंत्री भगवंत मान हैं, तब अरविंद केजरीवाल ऐसा कोई सवाल नहीं पूछ रहे, बल्कि वो इस समय गुजरात चुनाव में पूरी तरह व्यस्त हैं.
पराली के धुएं में वादों की विजिविलिटी जीरो...
ऐसे में सवाल उठता है कि नेताओं की वादाखिलाफी पर लोग आहत नहीं होते हैं? शायद यही वजह है कि जिस तरह आज दिल्ली की झाग वाली यमुना नदी में अरविंद केजरीवाल के वादे डूबे हुए नजर आते हैं. ठीक उसी तरह पराली के इस धुएं में उनके वादों की विजिबिलिटी जीरो हो चुकी है और ये बहुत गम्भीर स्थिति है.
दिल्ली में अभी बढ़ेगा पराली का प्रदूषण
इस समय दिल्ली के प्रदूषण में पराली के धुएं की हिस्सेदारी 18 से 20 प्रतिशत है. जबकि PM 2.5 से होने वाले वायु प्रदूषण में इसकी हिस्सेदारी 26 प्रतिशत है. समस्या ये है कि दिल्ली की हवा में पराली के धुएं का ये स्तर अभी और बढ़ने वाला है. पंजाब में अब तक 45 प्रतिशत खेतों में ही धान की कटाई हुई है और बाकी खेतों में अब भी फसलों को काटा जाना है. यानी जब इन खेतों में फसलों की कटाई होगी तो वहां पर भी पराली को जलाया जाएगा और अगर पराली जलाई जाएगी तो दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की सांसों के टुकड़े टुकड़े होते रहेंगे.
पराली के प्रदूषण का समाधान क्यों नहीं?
बताते चलें कि इस साल पंजाब में धान की फसल की बंपर पैदावार का अनुमान है. वर्ष 2021 में पंजाब में लगभग 29 लाख (29.61 लाख) हेक्टेयर की जमीन पर धान की खेती हुई थी, लेकिन इस बार 31 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर धान की फसल उगाई गई है. यानी ज्यादा फसल है तो पराली भी ज्यादा जलाई जाएगी. अब बड़ा सवाल ये है कि आखिर किसान पराली को जलाते क्यों हैं? और क्या इसका कोई दूसरा समाधान नहीं है?
6 दशक पहले हाथों से फसलें काटी जाती थीं, इसलिए...
बहुत कम लोग जानते हैं कि आज से 6 दशक पहले तक हमारे देश में पराली जलाने का कोई मुद्दा था ही नहीं. क्योंकि उस जमाने में किसान अपनी फसलों की कटाई हाथों से किया करते थे और जब हाथों से फसलों को काटा जाता था तो खेतों में उसके अवशेष बचते ही नहीं थे. लेकिन वर्ष 1970 में भारत में पहली बार Combine Harvester Machine का इस्तेमाल शुरू हुआ, जिसकी मदद से फसलों को मशीन से ही काटा जा सकता था. हालांकि ये Technology वर्ष 2000 के बाद ही ज्यादातर किसानों के पास पहुंच पाई और इससे बड़ी समस्या पैदा हुई.
हार्वेस्टर से फसलें काटे जाने पर खेत में रह जाते अवशेष
दरअसल, Combine Harvester Machine से जब फसलों को काटा जाता है तो इससे खेतों में फसलों का कुछ हिस्सा वहीं रह जाता है, जिसे पराली कहते हैं और क्योंकि किसानों को नई फसल की बुआई करनी होती है और पराली को हटाने के काम में समय और पैसा ज़्यादा लगता है, इसलिए किसान इसे जलाना ही बेहतर समझते हैं. जबकि नोट करने वाली बात ये है कि पराली को बिना जलाए भी खेतों से हटाया जा सकता है.
एक कारण राजनीति भी...
जैसे इसके लिए Bio-D Composer की Technology का इस्तेमाल होता है. इसके अलावा एक और मशीन इस्तेमाल होती है, जिसे Happy Seeder कहते हैं. इस मशीन की खासियत ये है कि इसकी मदद से पराली को काटे या जलाए बिना ही उसके साथ नई फसल की बुआई हो सकती है और पराली को Fertilizer की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन ऐसा किया नहीं जाता और इसके पीछे का कारण है, हमारे देश की राजनीति.
किसानों तक नहीं पहुंचती हैं ये मशीनें
पंजाब के पास 1 लाख 20 हजार मशीनें हैं, जिनकी मदद से पराली को जलाने से रोका जा सकता है लेकिन किसानों का आरोप है कि उन तक ना तो ये मशीनें पहुंचती हैं और ना ही सरकार से उन्हें मुआवजा मिलता है. जैसे पंजाब सरकार को अभी किसानों को ऐसा करने से रोकने के लिए एक तय मुआवजा देना चाहिए लेकिन आम आदमी पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार उसे ऐसा करने दे रही है.
आरोप- केंद्र सरकार ने प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी
पार्टी की तरफ से कहा गया है कि उसने केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा था, जिसके तहत ये मांग की गई थी कि किसानों को इसके लिए प्रति एकड़ 2500 रुपये मुआवजा दिया जाना चाहिए, जिसमें 1500 रुपये केंद्र सरकार दे और 500-500 रुपये दिल्ली और पंजाब की सरकारें दें, लेकिन केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी.
सोचने वाली बात ये है कि चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ये कह रहे थे कि वो पंजाब में किसानों को पराली जलाने की नौबत ही नहीं आने देंगे, लेकिन अब चुनाव के बाद उन्होंने ये मुद्दा केन्द्र सरकार के पाले में डाल दिया. जबकि सच ये है कि इस काम के लिए पिछले पांच साल में भारत सरकार पंजाब की सरकार को 1 हजार 347 करोड़ रुपये की मदद दे चुकी है.
तो साफ हवा भी खरीदनी पड़ सकती है...
आज दिल्ली की जैसी स्थिति है, उससे यही लगता है कि आने वाले जमाने में आपको साफ हवा भी खरीदनी पड़ेगी और चुनावों में सरकारें आपसे साफ हवा देने का वादा नहीं करेंगी बल्कि जो जो साफ हवा आप खरीदेंगे, उस पर सब्सिडी देने के बड़े-बड़े ऐलान किए जाएंगे और ये कोई कल्पना नहीं है. ये सच में हो सकता है और ये गंभीर इसलिए भी है क्योंकि 2019 में वायु प्रदूषण से 17 लाख मौतें हुई थीं. जबकि पिछले ढाई साल में कोरोना से सवा पांच लाख मौते हुई थीं.