
श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे दो दिन के दौरे पर भारत आ रहे हैं. यहां वह पीएम मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलेंगे. इस दौरान द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने और मजबूत करने पर चर्चा होगी. यह विक्रमसिंघे की पहली भारत यात्रा है. श्रीलंका के कंगाल होने के बाद गोटबाया राजपक्षे को पिछले साल राष्ट्रपति पद से हटा दिया गया था. इसके बाद विक्रमसिंघे ने पद संभाला था. उनके शासन काल में श्रीलंका की हालत थोड़ी बेहतर हुई है.
बता दें कि भारत श्रीलंका को 'पड़ोस प्रथम नीति' का महत्वपूर्ण सहयोगी मानता है. विक्रमसिंघे से भी भारत के संबंध ठीक बताए जाते हैं.
विक्रमसिंघे का फोकस किन चीजों पर?
विक्रमसिंघे श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रांत में विकास के लिए भारत का साथ चाहते हैं. यहां अल्पसंख्यक तमिल लोग रहते हैं. इसके अलावा नवीकरणीय ऊर्जा, जल आपूर्ति, बुनियादी ढांचे के विकास, पर्यटन उद्योग में विकास जैसे मुद्दे भी विक्रमसिंघे के एजेंडा में शामिल हैं.
तमिलों के मुद्दे को कैसे सुलझाएंगे विक्रमसिंघे?
भारत की यात्रा विक्रमसिंघे के लिए इतनी आसान भी नहीं है. श्रीलंका में रहने वाले तमिल लोग उनका विरोध कर रहे हैं. मदद के लिए श्रीलंका के तमिल लोगों ने पीएम मोदी को पत्र तक लिख दिया है. इस पत्र को कोलंबो में मौजूद भारतीय उच्चायोग को सौंपा गया है. पत्र में लिखा है कि तमिल लोगों को श्रीलंका के नॉर्थ और ईस्ट में शासन की शक्तियां मिलें. इन लोगों का कहना है कि श्रीलंका की सरकार ऐसा करने में विफल रही है और श्रीलंका के संविधान के 13वें संशोधन को लागू करने से बच रही है.
भारत और श्रीलंका के बीच तमिलों का मुद्दा अहम है. दरअसल, श्रीलंका में सिंहला बौद्ध बहुसंख्यक हैं वहीं तमिल अल्पसंख्यक हैं. दोनों के बीच लंबे वक्त से संघर्ष है. इसे कम करने के लिए 1987 में श्रीलंका के संविधान में 13वें संशोधन किया गया था. इसमें अल्पसंख्यक समुदाय यानी तमिलों को सत्ता में रोल दिया जाना था लेकिन वह पूरी तरह से अब तक नहीं हो पाया है.
हालांकि, भारत आने से पहले विक्रमसिंघे ने तमिल अल्पसंख्यकों से पावर शेयरिंग पर बात की है. उन्होंने भरोसा दिया है कि 13वें संशोधन को पूरी तरह लागू किया जाएगा. ऐसा करके उन्होंने भारत को खुश करने की कोशिश भी की है, क्योंकि भारत भी लंबे वक्त से इसकी मांग करता रहा है. लेकिन विक्रमसिंघे को यहां सिंहला बौद्ध समुदाय से तालमेल बनाना होगा. क्योंकि, बौद्ध पादरियों ने साफ कहा है कि अगर 13वें संशोधन को पूरी तरह लागू किया गया तो इसके बहुत खतरनाक परिणाम होंगे.