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चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार के लिए गाइड लाइन बना सकता है सुप्रीम कोर्ट

संविधान पीठ के समक्ष प्रशांत भूषण ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इस मामले में हमने 2021 में एक और याचिका दाखिल की थी. क्योंकि ECI के तीन आयुक्तों में से एक पद अभी भी खाली है. हम कोर्ट से आग्रह करते है कि कम से कम इस पद पर सदस्य की नियुक्ति एक स्वतंत्र निकाय के जरिए की जाए.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 17 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 5:27 PM IST

चुनाव आयोग के सदस्य आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा कि जब तक संसद इन नियुक्तियों को लेकर कोई कानून नहीं बना लेता, तब तक हम क्यों ना एक गाइडलाइन जारी करें. इस मसले पर केंद्र सरकार को अपना जवाब देना है. संविधान पीठ इस मामले पर 22 नवंबर को अगली सुनवाई करेगी. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ये भी कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया में ग्रे एरिया भी है. इस एरिया को स्पष्ट करने की मंशा से सुप्रीम कोर्ट इसकी न्यायिक समीक्षा कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ये टिप्पणी इस पेचीदा मसले पर सुनवाई के दौरान की. 

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जस्टिस के एम जोसफ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के मामले पर याचिककर्ता प्रशांत भूषण एक संकलित फाइल कोर्ट में पेश किया. जस्टिस केएम जोसफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सी टी रविकुमार की संविधान पीठ के समक्ष प्रशांत भूषण ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इस मामले में हमने 2021 में एक और याचिका दाखिल की थी. क्योंकि ECI के तीन आयुक्तों में से एक पद अभी भी खाली है. हम कोर्ट से आग्रह करते है कि कम से कम इस पद पर सदस्य की नियुक्ति एक स्वतंत्र निकाय के जरिए की जाए.

प्रशांत भूषण ने कहा कि ECI स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने वाली संस्था हो. यह लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण संस्था है. ECI के पास राजनीतिक दलों के पंजीकरण और मान्यता सहित आदर्श आचार संहिता लागू करने की शक्ति भी है. उनके पास चुनाव के संचालन को नियंत्रित करने के लिए पूरी शक्तियां हैं. संविधान का अनुच्छेद 324 कहता है कि CEC और उनके साथी दोनों आयुक्तों की नियुक्ति संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के मुताबिक राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी. संविधान में कहा गया है कि संसद निर्वाचन आयोग में आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र निकाय के लिए कानून बनाएगी. इस प्रावधान के बावजूद आजादी के 75 साल बाद चुनाव आयोग की नियुक्ति को विनियमित करने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है. नियुक्ति का एकाधिकार अभी भी सरकार के हाथ में है.

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उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन की नियुक्ति से पहले तक CEC की स्वतंत्रता, निष्पक्षता संदिग्ध थी. श्री शेषन ने स्वतंत्र रूप से कार्य किया. अब CEC की स्वतंत्रता गंभीर रूप से सवालों के घेरे में है. जस्टिस लोकुर की पीपुल्स कमिशन रिपोर्ट कहती है कि लोगों को विश्वास नहीं है कि ECI स्वतंत्र है. ECI कार्यात्मक रूप से स्वतंत्र है लेकिन नियुक्तियों की स्वतंत्रता के मुद्दे को इस अदालत ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामलों में मान्यता दी थी. वहां यह कहा गया था कि अगर नियुक्ति सरकार के हाथ में रहती है तो यह स्वतंत्र नहीं रह पाएगी.

इस पर कोर्ट ने कहा कि हम जमीनी हकीकत या लोगों की स्वतंत्रता की धारणा की जांच नहीं कर रहे हैं. हम तो यह जांच कर रहे हैं कि क्या अनुच्छेद 324 के तहत तंत्र कानूनी रूप से मान्य है? जस्टिस जोसेफ ने कहा कि इस मामले में एक ग्रे एरिया है. उसमें हम दखल दे सकेंगे. संविधान कहता है कि जब तक CEC और आयोग में सदस्यों की नियुक्ति के लिए संसद कानून नहीं बनाती. तब तक उनकी नियुक्त मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर  राष्ट्रपति को करनी होती है. यह एक छोटा संदिग्ध क्षेत्र है जहां हम कदम रख सकते हैं.

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इसके बाद वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि निर्वाचन आयुक्तों का चयन और नियुक्ति अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं. जस्टिस जोसेफ ने कहा कि हम संसद को कानून बनाने से नहीं रोक सकते. हालांकि हम इस बात पर विचार कर सकते हैं कि नियुक्ति के लिए बनाया गया कानून सही है या नहीं? अगर चयन समिति में बड़ी संख्या में लोग शामिल होंगे तो वैचारिक भिन्नता की भी समस्या होगी. कोर्ट ने कहा टी एन शेषन मामले में भी यही हुआ जहां श्री शेषन के खिलाफ की गई टिप्पणियों पर सरकार को एक आयोग बनाना पड़ा.

भूषण ने सुझाव देते हुए कहा  कि चुनाव आयोग के लिए चयन आयोग में 5 लोगों को शामिल किया जाना चाहिए. जिसमे जज, पूर्व CEC, CAG या NHRC जैसे स्वतंत्र निकाय के लोग शामिल होने चाहिए. याचिकाकर्ता की ओर से गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि निर्वाचन आयोग में बेशक कई बेहतरीन और कुछ लचर आयुक्त आए होंगे. लेकिन सवाल संस्थान की गरिमा का है. इसे राजनीतिक दखलंदाजी से दूर रखा जाए. जस्टिस अजय रस्तोगी ने पूछा कि क्या किसी राज्य के निर्वाचन आयोग ने इस बाबत कोई गाइड लाइन बनाई है या कोई अलग व्यवस्था की है? साथ ही क्या याचिकाकर्ता के पास कोई नजीर है, जिसमें प्रावधानों का दुरुपयोग नियुक्ति प्रक्रिया में किया गया हो. गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि वो इस बाबत अध्ययन कर कोर्ट को जानकारी देंगे. 

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