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50 फीसदी आरक्षण के बैरियर को तोड़ता EWS पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला? एक्सपर्ट ने दिया ये तर्क

सुप्रीम कोर्ट के EWS रिजर्वेशन पर फैसले के बाद अब एक बार फिर इंदिरा साहनी जजमेंट को लेकर चर्चा हो रही है. अब सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इंदिरा साहनी केस पर खुद ही सर्वोच्च न्यायालय का फैसला बेमानी हो रहा है. जानिए- इस पर एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं.

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
मानसी मिश्रा
  • नई दिल्ली ,
  • 07 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 5:16 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सात नवंबर यानी आज EWS आरक्षण को बरकरार रखने का बड़ा फैसला किया है. सर्वोच्च न्यायालय की 5 जजों की बेंच में से 3 जजों ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्त‍ियों को 10 फीसदी आरक्षण के प्रावधान को सही माना है.चर्चा हो रही है.सुप्रीम कोर्ट में ईडब्ल्यूएस के 10 प्रत‍िशत आरक्षण के फैसले के साथ ही ये चर्चा हो रही है कि इस फैसले से आरक्षण का 50 फीसदी बैरियर टूट रहा है. आइए जानते हैं कि क्या सचमुच ईडब्लयूएस पर फैसले से आरक्षण का बैरियर टूट रहा है.   

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आपको बता दें कि इंदिरा साहनी जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में दिए अपने फैसले में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी. हाल फिलहाल ईडब्ल्यूएस को चुनौती देने वाली याचिकाओं में इसका तर्क भी दिया गया था कि इस कोटे से 50 फीसदी की सीमा का उल्लंघन हो रहा है. 

केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आरक्षण के 50 फीसदी बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा. उन्होंने कहा था कि 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50 फीसदी जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे. यह आरक्षण 50 फीसदी में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है. ऐसे में यह बाकी के 50 फीसदी वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है. 

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हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि आरक्षण 50 फीसदी तय सीमा के आधार पर भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा अपरिवर्तनशील नहीं है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण अवैध नहीं है, लेकिन इसमें से एससी-एसटी और ओबीसी को बाहर किया जाना असंवैधानिक है. यह 50 फीसदी आरक्षण के बैरियर को तोड़ता है. 

दलित और आद‍िवासियों पर अध्ययन कर चुके जेएनयू प्रो. गंगा सहाय मीणा कहते हैं कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण को स‍िर्फ इस एक जजमेंट से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले को समय और पारिस्थ‍ितिकी परिवर्तन के सापेक्ष संशोधित किया जा सकता है. लेकिन असल मुद्दा यह है कि ये ईडब्ल्यूएस का आरक्षण शुरुआत से ही राजनीति प्रेरित नजर आ रहा है. इसके लिए इसके पीछे के कई सवाल अनसुलझे छूट जाते हैं. 
 
प्रो मीणा कहते हैं कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के जो आधार बनाए गए, उनमें आठ लाख रुपये सालाना इनकम की सीमा तय की गई थी. मगर इस पर किसी भी वित्त समिति की रिपोर्ट का हवाला नहीं दिया गया था कि देश में किस आय वर्ग के कितने प्रतिशत लोग हैं जो संसाधन विहीन हैं. इसके अलावा संसाधनों के उपभोग के मामले में ये वर्ग किस स्थ‍िति में है. वैसे भी संविधान में आरक्षण की मूल संरचना देखें तो ये समाज में आर्थ‍िक समानता नहीं बल्क‍ि संसाधनों पर बराबरी के हक को लेकर भी था. इसके कई आधार थे. वहीं आरक्षण लागू करते वक्त तक सरकार के पास कोई डेटा नहीं था कि ईडब्ल्यूएस कैटेगरी में देश में कितने लोग हैं, उनकी स्थिति कैसी है,  इसकी भी कोई स्पष्ट गणना नहीं थी. 

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दिल्ली विश्वविद्यालय के फोरम ऑफ एकेडमिक्स फॉर सोशल जस्ट‍िस के प्रोफेसर हंसराज सुमन कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस में जो ऐतिहासिक फैसला लिया था. उसी के बाद कानून बना था कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता. मेरा मानना है कि यह फैसला पूरी तरह उचित था और अभी भी है. दिल्ली विश्वविद्यालय में भी जब सवर्णों के लिए दस फीसदी आरक्षण लागू करने की बात उठी थी तो इसमें सरकार ने 10 प्रत‍िशत अतिर‍िक्त पदों का डेटा मांगा था. इसमें यह स्पष्ट था कि अगर भर्त‍ियों में 10 प्रतिशत अतिर‍िक्त पदों पर यह भर्ती नहीं होगी तो ये 10 फीसदी सामान्य वर्ग से ही कटकर जाएगा. एक तरह से सामान्य वर्ग के 50 फीसदी में से 10 फीसदी आरक्षण देने की बात थी. 

वह कहते हैं कि वाइस चांसलर और कॉलेजों ने इसके आंकड़े दे द‍िए हैं, लेकिन अभी तक लागू नहीं किए गए. इसमें सामान्य वर्ग के ही लोग डिप्लेसमेंट हो रहे हैं. हम लगातार यूजीसी और श‍िक्षा मंत्रालय से मांग इसी आधार पर कर रहे हैं कि इंदिरा साहनी वर्सेज स्टेट ऑफ पंजाब जजमेंट एकदम सही है, कोई भी भर्ती अतिरिक्त पदों का सृजन करके ही होनी चाहिए. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के ईडब्ल्यूएस पर फैसले के बाद 50 फीसदी आरक्षण का बैरियर टूट रहा है, जो इंदिरा साहनी के फैसले के उलट है. 

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दिल्ली विश्वविद्यालय को अस्टिटेंट प्रोफेसर लक्ष्मण यादव कहते हैं कि बालाजी केस और इंदिरा साहनी केस के फैसलों के कारण अब तक आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ नहीं रहा था. इसके चलते राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट और महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के आरक्षण की मांग को रद्द कर दिया जाता था. सुप्रीम कोर्ट ने गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देकर 50 फीसदी की लिमिट को क्रॉस कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट और सरकार भले ही तर्क दे कि सामान्य वर्ग के 50 फीसदी से ही 10 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है, लेकिन ईडब्ल्यूएस में सिर्फ सवर्ण जातियां ही शामिल हैं जबकि सामान्य वर्ग में सभी जातियों के लिए है.

 

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