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सेंट्रल तिब्बतन स्कूल के कर्मचारियों ने समान वेतन स्तर की गुहार लगाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. एकल जज पीठ ने कर्मचारियों के हक में फैसला सुनाया था. इसके बाद केंद्र सरकार ने कोर्ट में अपील तो दाखिल की, लेकिन कई बार सुनवाई की तय तारीख पर कोई वकील पेश नहीं हुआ, जिसके चलते अपील खारिज कर दी गई.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस हृषिकेश रॉय ने लापरवाह बाबुओं पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. साथ ही विधि सचिव और मानव संसाधन यानि शिक्षा सचिव को ताकीद की कि उन जिम्मेदार अधिकारियों के वेतन से ही ये पूरी रकम काट ली जाये. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के इन लापरवाह बाबुओं ने हाईकोर्ट मे अपील दाखिल करने में ही करीब आठ साल यानी 2509 दिनों की देरी की और वहां से हारने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए भी 532 दिन यानी डेढ़ साल से ज्यादा का समय गंवा दिया.
पेश की ये दलील
अपील दाखिल करने के आठ साल बाद मानव संसाधन विभाग के बाबुओं को इस मामले की याद आई. जिसके बाद फिर से विभाग ने सुनवाई के लिये अपील की. साथ ही दलील ये दी गई कि उनके वकील तो जज बन गये थे, लिहाजा पेश नहीं हो सके, लेकिन हाईकोर्ट ने केंद्र की ये लचर दलील नहीं मानी और याचिका इस टिप्पणी के साथ खारिज कर दी कि केंद्र सरकार इतनी अनपढ़ नहीं है. बता दें कि इससे कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे के ऐसे ही लापरवाह अधिकारियों पर 25 हजार रुपये का दंड लगाया था.