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फैसला सुनाने में दो महीने की हुई देरी, सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस गवई ने मांगी माफी, पेश की मिसाल

जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस एम एम सुंदरेश की बेंच चंडीगढ़ में एकल आवासीय घर को अपार्टमेंट में बदलने के चलन के खिलाफ याचिका पर फैसला सुना रहे थे. जस्टिस गवई ने कहा कि हमें विभिन्न कानूनों के सभी प्रावधानों और उसके नियमों पर विचार करना था. इस कारण 3 नवंबर 2022 को फैसला सुरक्षित रखने के बाद इसमें दो महीने से अधिक का समय लग गया.

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बी आर गवई सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बी आर गवई
अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 6:51 AM IST

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बीआर गवई ने मंगलवार को नई मिसाल पेश की है. उन्होंने एक मामले में फैसला सुनाने में हुई देरी को लेकर माफी मांगी है. इतना ही नहीं उन्होंने पक्षकारों को फैसला सुनाने में हुई देरी के पीछे की वजह भी बताई है. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच चंडीगढ़ में एकल आवासीय घर को अपार्टमेंट में बदलने के चलन के खिलाफ याचिका पर फैसला सुना रहे थे.

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जस्टिस गवई ने कहा कि हमें विभिन्न कानूनों के सभी प्रावधानों और उसके नियमों पर विचार करना था. इस कारण 3 नवंबर 2022 को फैसला सुरक्षित रखने के बाद इसमें दो महीने से अधिक का समय लग गया. जस्टिस गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि केंद्र और राज्य स्तर पर विधायिका, कार्यपालिका और नीति निर्माता अव्यवस्थित विकास के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर ध्यान दें. साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं कि विकास से पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे. 

जस्टिस गवई और बीवी नागरत्ना की बेंच ने अपने 131 पेज के फैसले में कहा है कि चंडीगढ़ के कॉर्बूसियर जोन (Corbusier Zone) के फेज 1 में अपार्टमेंट में आवासीय इकाइयों का विखंडन या विभाजन मौजूदा कानून के अनुसार निषिद्ध है. बेंच ने चंडीगढ़ प्रशासन को शहर में विरासत भवनों को संरक्षित करने के लिए हेरिटेज कमेटी की सिफारिश के अनुसार चंडीगढ़ मास्टर प्लान 2031 और 2017 के नियमों में संशोधन करने का भी निर्देश दिया है. इसके अतिरिक्त, खंडपीठ ने चंडीगढ़ प्रशासन को किसी भी भवन योजना को मंजूरी देने से रोक दिया है, जिसका असर एक आवासीय इकाई को तीन अजनबियों के कब्जे वाले तीन अलग-अलग अपार्टमेंट में बदलने का प्रभाव होगा. कोर्ट ने यह भी कहा है कि किसी रेजिडेंशियल यूनिट को फ्लोर वाइज अपार्टमेंट्स में बांटने के लिए कोई एमओयू या एग्रीमेंट रजिस्टर नहीं किया जा सकता है.

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इस मुद्दे को शुरू में 2016 में चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा के हाईकोर्ट के समक्ष उठाया गया था. याचिकाकर्ताओं ने शिकायत की थी कि कुछ डेवलपर्स प्लॉट खरीद रहे थे, जिन्हें 'एकल अधिभोग इकाइयों' के रूप में आवंटित किया गया था, और फिर तीन मंजिला अपार्टमेंट का निर्माण कर रहे थे और उन्हें अलग-अलग व्यक्तियों को बेचना। उन्होंने यह चिंता भी जताई थी कि यह प्रथा "शहर के मूल चरित्र को खतरे में डाल देगी।"

इस मुद्दे को शुरू में 2016 में चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा के हाई कोर्ट के समक्ष उठाया गया था. याचिकाकर्ताओं ने शिकायत की थी कि कुछ डेवलपर्स प्लॉट खरीद रहे थे, जिन्हें सिंगल ऑक्यूपेंसी यूनिट के रूप में आवंटित किया गया था और फिर तीन मंजिला अपार्टमेंट का निर्माण कर रहे थे और अलग-अलग व्यक्ति उन्हें बेच रहे थे. उन्होंने यह भी चिंता जताई थी कि यह प्रथा शहर के मूल चरित्र को खतरे में डाल देगी.

कौन हैं जस्टिस गवई?

जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई मई 2019 से सुप्रीम कोर्ट में जज हैं. तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व में कॉलेजियम ने उनके नाम की सिफारिश की थी. गवई ने 1985 में एक वकील के रूप में रजिस्ट्रेशन कराया था. इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में वकालत की प्रैक्टिस की. बाद में वे सरकारी वकील और फिर महाराष्ट्र सरकार के लिए सरकारी अभियोजक के रूप में काम किया. जस्टिस गवई नवंबर 2003 में हाईकोर्ट के जज बने थे. वे 2019 तक 16 साल हाईकोर्ट में जज रहे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जज बने. 
 

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