
भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट्स में जजों की नियुक्ति और तबादले के लिए तय कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए कुछ प्रमुख न्यायविदों द्वारा की गई आलोचना का जवाब दिया. उन्होंने कहा कि कुछ न्यायविदों और बुद्धिजीवियों ने हाईकोर्ट के जज जस्टिस एस मुरलीधर के नाम की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए नहीं करने के लिए मीडिया में आलेख और बयानों के जरिए आलोचना की थी.
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जज देश की विविधता के प्रतीक है. कॉलेजियम यह सुनिश्चित करने के मिशन से काम करता है कि भारत में विविधता, एकता की समृद्ध परंपरा के प्रतिनिधि भी हैं. CJI ने कहा कि अनेक लोग सुप्रीम कोर्ट के बहुभाषी न्यायालय होने के कारण इसकी आलोचना करते रहे हैं, उन्हें इसका दूसरा पहलू नहीं दिखता. उन्हें देखना चाहिए कि हमारे बहुभाषी होने का कारण यह नहीं है कि 2 जज एक जैसे नहीं हैं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा के एक मामले पर महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के जज बेंच में एक साथ बैठते हैं.
CJI ने आलोचना के मुद्दे तो बताए लेकिन आलोचकों का नाम नहीं लिया. उन्होंने भाषण की व्यंजना शैली में कहा कि भारत के सुप्रीम कोर्ट का उद्देश्य देश की विविधता को प्रतिबिंबित करना है. सुप्रीम कोर्ट में आने वाले हरेक जज के साथ उनका अलग निजी स्थानीय अनुभव भी होता है, उन्होंने कहा कि बहुभाषी कोर्ट होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट लोगों पर केंद्रित कोर्ट है और यही सुप्रीम कोर्ट का मूल तत्व है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि आम नागरिक का न्यायपालिका पर तभी भरोसा होगा जब वो न्याय करने वाले लोगों में अपना अक्स देख पाएंगे.
सीजेआई ने ये बातें सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन SCBA के समारोह में कहीं. SCBA ने तेलंगाना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे जस्टिस उज्जल भुइयां और केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे जस्टिस एस वेंकट रमण भट्टी की सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में नियुक्ति के बाद उनके औपचारिक स्वागत अभिनन्दन के लिए समारोह आयोजित किया था.
पिछले हफ्ते सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर, प्रसिद्ध न्यायविद् फली एस नरीमन और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू ने सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए जस्टिस एस मुरलीधर के नाम की सिफारिश नहीं करने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की खुले तौर पर आलोचना करते हुए खुला पत्र लिखा था. उन्होंने अपने पत्र में आरोप लगाया था कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने बाहरी दबाव में आकर उनके नाम की सिफारिश नहीं की थी. हालांकि वह ओडिशा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे.