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महामारी की तरह बढ़ रहा फेक न्यूज का चलन, सरकारी बयान नहीं हैं अंतिम सच: जस्टिस चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जस्टिस जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने फेक न्यूज पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा है कि फेक न्यूज का चलन महामारी की तरह बढ़ता ही जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट से सीनियर जज, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट से सीनियर जज, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 28 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 4:40 PM IST
  • जस्टिस चंद्रचूड़ ने फेक न्यूज पर जताई चिंता
  • फेक न्यूज को जस्टिस ने बताया इन्फोडेमिक
  • सोशल मीडिया पर है जूठ का बोलबाला

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के सीनियर जज, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandravhud) ने फेक न्यूज (Fake News) पर निशाना साधते हुए कहा कि फेक न्यूज का चलन, महामारी की तरह बढ़ता जा रहा है. बुद्धिजीवियों को इस मामले में गंभीरता से सोचकर समुचित पहल करनी होगी.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इसी खतरे को भांपते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना महामारी के दौरान इसे 'इन्फोडेमिक' कहते हुए आगाह किया था. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ दरअसल 'स्पीकिंग ट्रुथ टू पॉवर, सिटिजंस एंड द लॉ' विषय पर एक कार्यक्रम के दौरान व्याख्यान दे रहे थे. 

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जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इंसानों में सनसनीखेज खबरों की ओर आकर्षित होने की प्रवृत्ति होती है. ऐसी सनसनीखेज खबरें अक्सर झूठ पर आधारित होती हैं. Whatsapp और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर स्टडी की गई तो पता चला कि झूठ का बोलबाला है. सच्चाई के बारे में लोगों का चिंतित न होना सत्य के बाद की दुनिया में एक और घटना है.

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शासन और प्रशासन से सवाल करे जनता!

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'हमारी सच्चाई' बनाम 'आपकी सच्चाई' और सच्चाई की अनदेखी करने की प्रवृत्ति के बीच एक प्रतियोगिता है जो सच्चाई की धारणा के अनुरूप नहीं है. 'सच्चाई की तलाश' नागरिकों के लिए प्रमुख आकांक्षा होनी चाहिए. हमारा आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' है. हमें राज्य यानी शासन और प्रशासन के साथ साथ विशेषज्ञों से सवाल करने के लिए तैयार रहना चाहिए.'

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सरकार झूठ बोलती हैं!

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'झूठ चाहे किसी की ओर से भी प्रचारित हो, राज्य या किसी संगठन, सबके झूठ को बेनकाब करना सार्वजनिक बुद्धिजीवियों का कर्तव्य है. लोकतंत्र में जनता की आस्था की पहली बुनियाद, पहली शर्त भी यही है सत्य का अनुसंधान. ये नहीं कहा जा सकता कि राजनीतिक कारणों से सरकारें झूठ नहीं बोलती या प्रचारित नहीं करतीं.'

सरकारी बयान ही नहीं हैं परम सत्य!

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज ने कहा, 'सिर्फ सरकारी बयान, आंकड़ों या बात को चरम और परम सत्य नहीं माना जा सकता. जनता अपने विवेक से भी अनुसंधान करे. अब मसलन वियतनाम की लड़ाई में अमेरिका की भूमिका दिन के उजाले में भले ना दिखे लेकिन पेंटागन के दस्तावेजों में सच्चाई दर्ज है. वैसे ही कोविड महामारी के दौरान कई देशों ने आंकड़ों में खेल किया है. यानी सरकारी आंकड़े हमेशा बिल्कुल सही ही होते हैं ये विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता. जनता और खासकर बुद्धिजीवियों को अपने विवेक की कसौटी पर उनको कसना चाहिए और जनता को समझाना चाहिए.'
 

 

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