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सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता पर सवाल उठाते हुए एक उदाहरण के साथ सरकार से पूछा कि कभी किसी पीएम पर आरोप लगे तो क्या आयोग ने उनके खिलाफ एक्शन लिया है?
संविधान पीठ ने सरकार से कहा कि आप निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया हमें समझाएं. हाल ही में आपने एक आयुक्त की नियुक्ति की है. अभी तो आपको सब याद होगा. किस प्रक्रिया के तहत आपने उनको नियुक्त किया है?
जस्टिस केएम जोसफ के बाद जस्टिस अजय रस्तोगी ने भी निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि आपने इसकी न्यायपालिका से तुलना की है. न्यायपालिका में भी नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव आए. मौजूदा सिस्टम में अगर खामी हो तो उसमें सुधार और बदलाव लाजिमी है. सरकार जो जज और सीजेआई की नियुक्ति करती थी तब भी महान न्यायाधीश बने, लेकिन प्रक्रिया पर सवालिया निशान थे. प्रक्रिया बदल गई.
जस्टिस रस्तोगी ने सरकार से दो टूक पूछा कि आप निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति करते समय सिर्फ नौकरशाहों तक ही सीमित क्यों रहते हैं? अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ये तो एक अलग बहस हो जाएगी. अगर किसी मामले में कोई घोषणापत्र है तो हम उसका पालन कैसे नहीं करेंगे? इससे पहले अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार पिक एंड चूज यानी मनपसंद अफसर को उठा कर ही नियुक्त कर देती है ऐसा नहीं है.
'पीएम के खिलाफ एक्शन लेने वाला हो CEC'
संविधान पीठ में जस्टिस जोसफ ने टिप्पणी की कि हमें मौजूदा दौर में ऐसे सीईसी की आवश्यकता है जो पीएम के खिलाफ भी शिकायत मिलने पर एक्शन ले सके. मान लीजिए कि किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ कुछ आरोप लगे हों और निर्वाचन आयोग यानी सीईसी को कार्रवाई करनी हो, लेकिन आयोग और सीईसी अगर यस मैन यानी कमजोर घुटने और कंधे वाले हों तो क्या ये मुमकिन होगा? यानी वो उनके खिलाफ एक्शन नहीं लेता है.
'CEC को स्वतंत्र और स्वायत्त होना चाहिए'
कोर्ट ने पूछा कि क्या यह सिस्टम का पूर्ण रूप से ब्रेकडाउन नहीं है? संविधान और जनविश्वास के मुताबिक, सीईसी को राजनीतिक प्रभाव से अछूता माना जाता है. उसे स्वायत्त और स्वतंत्र होना चाहिए. आयुक्तों के चयन के लिए भी एक स्वतंत्र निकाय होना चाहिए. सिर्फ कैबिनेट की मंजूरी ही काफी नहीं है. नियुक्ति कमेटियों का कहना है कि बदलाव की सख्त जरूरत है. राजनेता भी ऊपर से चिल्लाते हैं लेकिन कुछ नहीं होता.