
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राजनीतिक दलों और उनके कॉरपोरेट के बीच लेन-देन के लिए अब बंद हो चुके चुनावी बॉन्ड के दुरुपयोग के आरोपों की एसआईटी द्वारा जांच की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश के तहत जांच का आदेश देना अनुचित और समय से पहले होगा, क्योंकि आपराधिक कानून प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले सामान्य कानून के तहत अन्य उपायों का इस्तेमाल नहीं किया गया है.
पीठ ने कहा, "इसी प्रकार, आयकर निर्धारण को पुनः खोलने के मामले में इस प्रकृति का निर्देश जारी करना ऐसे तथ्यों पर निष्कर्ष निकालने के समान होगा, जो कि अनुचित होगा, क्योंकि यह ध्यान में रखना होगा कि ये सामान्य और घूमती हुई पूछताछ होगी."
बता दें कि फरवरी में अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया था और कहा था कि यह नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.
सुनवाई के दौरान, अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने चुनावी बॉन्ड की खरीद की एसआईटी जांच के पक्ष में तर्क दिया. भूषण ने कहा, "एक प्रारंभिक जांच हो सकती है और उनके सुझाव के अनुसार, एक निरंतर जांच की आवश्यकता हो सकती है. यह अदालत जांच की निगरानी के लिए इस अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त कर सकती है."
दूसरी ओर, वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने कहा, "मूल्यांकन को फिर से खोलना होगा क्योंकि वे योगदान नहीं हैं. कुछ राजनीतिक दल दिखाते हैं कि पूरा अघोषित धन चुनावी बॉन्ड में जाता है."
दलीलों के बाद पीठ ने कहा, "हम संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से इनकार करते हैं. सुप्रीम कोर्ट चुनावी बॉन्ड योजना की खरीद में स्पष्ट रूप से हुए लेन-देन के मामलों की एसआईटी द्वारा अदालत की निगरानी में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार करता है."
गौरतलब है कि केंद्र ने 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना शुरू की थी और इसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान की जगह लेना था, ताकि राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता में सुधार हो सके. हालांकि बाद में विपक्ष के आरोपों और दायर याचिका के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था.