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अविवाहित महिला के गर्भपात कराने के मामले में फैसला सुरक्षित, जल्द गाइडलाइन जारी करेगी सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि याचिकाकर्ता महिला को इसलिए एक्ट के फायदे से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वह अविवाहित है. विधायिका ने जो कानून बनाया है, उसका मकसद वैवाहिक रिलेशनशिप से अनचाही प्रिगनेंसी तक सीमित नहीं है.

गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 23 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 2:44 PM IST

गर्भवती अविवाहित महिला के गर्भपात कराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट अपने फैसले में यह तय करेगी कि अविवाहित महिला का गर्भपात कराने के नियम क्या होंगे. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बकायदा गाइडलाइन जारी की जाएगी. दरअसल, एक अविवाहित महिला ने कोर्ट में 24 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी. जिस पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है.

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बता दें कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिगनेंसी एक्ट 2021 में जो बदलाव किया गया है, उसके तहत एक्ट में महिला और उसके पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया गया है. वहां पार्टनर शब्द का इस्तेमाल है, न कि पति शब्द का. ऐसे में एक्ट के दायरे में अविवाहित महिला भी आती हैं. 

सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड ने कहा था कि याचिकाकर्ता महिला को इसलिए एक्ट के फायदे से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वह अविवाहित है. विधायिका ने जो कानून बनाया है, उसका मकसद वैवाहिक रिलेशनशिप से अनचाही प्रिगनेंसी तक  सीमित नहीं है. साथ ही इसे 20 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करने तक भी सीमित नहीं रखा जा सकता. ऐसा करने से अविवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव होगा. याचिकाकर्ता महिला अनचाहे गर्भधारण से परेशान है और यह कानून की भावना के खिलाफ है.

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अबॉर्शन को लेकर भारत में क्या है नियम

गौतरलब है कि भारत में अबॉर्शन यानी गर्भपात को 'कानूनी मान्यता' है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इसकी छूट मिल गई है. भारत में अबॉर्शन को लेकर 'मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट' है, जो 1971 से लागू है. इसमें 2021 में संशोधन हुआ था. भारत में पहले कुछ मामलों में 20 हफ्ते तक अबॉर्शन कराने की मंजूरी थी, लेकिन 2021 में इस कानून में संशोधन के बाद ये समयसीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते तक कर दी गई. इतना ही नहीं, कुछ खास मामलों में 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्शन कराने की मंजूरी ली जा सकती है. 

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