
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला देते हुए ये तय कर दिया कि दिल्ली में सर्वेसर्वा चुनी हुई सरकार ही है. इस फैसले के आने के बाद आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल की सरकार में जश्न का माहौल है, लेकिन इसी बीच नौकरशाही अमले में खलबली सी मची हुई है. पूरे नौकरशाही तंत्र इस फैसले के बाद चिंता में है और ये सोच-सोच कर उनकी पेशानी पर बल पड़ रहे हैं कि फैसले की प्रतिक्रिया का उन पर क्या असर होगा?
अधिकांश अधिकारियों को सता रहा है डर
शीर्ष नौकरशाही सूत्रों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से अधिकांश अधिकारी बहुत खुश नहीं हैं. उनका डर है कि उन्हें अब कई तरह के नतीजों का सामना करना पड़ सकता है. पिछले कई सालों से एलजी सचिवालय और दिल्ली की एनसीटी की चुनी हुई सरकार के बीच लड़ाई चल रही थी. अब इस फैसले से खींचतान और तेज होगी और नौकरशाहों को लग रहा है कि इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा.
चुनी हुई सरकार के आदेश मानने होंगे
शीर्ष नौकरशाही के सूत्रों ने बताया कि फैसले के तुरंत बाद, उनके वाट्सएप ग्रुप में इस तरह के मैसेज सर्कुलेट हो रहे हैं, साथ ही अलग-अलग परिणामों की कल्पना की जा रही है. कई नौकरशाहों का ऐसा मानना है कि इस आदेश के बाद एक बार जब गृह मंत्रालय दिल्ली सरकार के साथ किसी नौकरशाह को नियुक्त कर देगा तो उन्हें दिल्ली की चुनी हुई सरकार के आदेशों का ही पालन करना होगा. उन्हें अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा रखा जाएगा.
अफसरों को सता रहा कार्रवाई का डर
सूत्रों के मुताबिक, उनके और मौजूदा सरकार के साथ पहले के अनुभव बहुत सुखद नहीं रहे हैं. ऐसे में दिल्ली सरकार, अपने साथ काम करने वाले किसी भी अफसर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती है, हालांकि अंतिम निर्णय गृह मंत्रालय को लेना है क्योंकि केंद्र सरकार अभी भी इस उद्देश्य के लिए कैडर-नियंत्रक प्राधिकरण है.
भर्ती करने की अंतिम शक्ति केंद्र के पास
एजीएमयूटी कैडर के अधिकारियों को अरुणाचल प्रदेश, गोवा और मिजोरम राज्यों में भी तैनात किया जा रहा है और इन राज्यों की सरकारों को उनके अधीन तैनात अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति है. इसके बाद मामला केंद्र सरकार को भेजा जाता है. कुछ अफसरों का विचार है कि गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा कुछ स्पष्टता दिए जाने तक दिल्ली सरकार द्वारा उन शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जाएगा. दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव ओमेश सहगल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा कैबिनेट को सेवाएं देने के बावजूद भर्ती करने की अंतिम शक्ति केंद्र के पास है.
"केंद्र के पास दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एजीएमयूटी कैडर है. ग्रे क्षेत्र अभी भी मौजूद हैं. ऐसे में हो सकता है कि दिल्ली इस आदेश के बाद अपने स्वयं के लोक सेवा आयोग की मांग करे, जिसने अंततः उन्हें सेवाओं पर नियंत्रण दिया था? यदि वे ऐसी मांग उठाते हैं तो दिल्ली में राज्यपाल का क्षेत्र नहीं है, जो कि सिफारिश करेंगे, "
नौकरशाहों में है भ्रम का जाल
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, उनका भविष्य कैसा होगा, इसे लेकर नौकरशाहों के अंदर एक बड़ा भ्रम फैला हुआ है. कई अधिकारी पूछ रहे हैं कि गृह मंत्रालय की वास्तविक भूमिका क्या होगी? अब तक, उनके स्थानांतरण और पोस्टिंग के लिए हस्ताक्षर करने का अधिकार एलजी के पास था और अब वही भूमिका दिल्ली के सीएम द्वारा निभाई जाएगी, जब तक कि वह किसी अन्य मंत्री को यह अथॉरिटी नहीं सौंपते. यहां तक कि पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि के अलावा अन्य मामलों से संबंधित सभी फाइलें दिल्ली एलजी को नहीं भेजी जाएंगी. अब तक किसी भी विभाग से संबंधित सभी फाइलों को अंतिम मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के सचिवालय में भेजा जाता था.
कुछ नौकरशाह भी तीन विषयों के वास्तविक डोमेन के बारे में निश्चित नहीं हैं जो अभी भी दिल्ली एल-जी के पास हैं. जहां तक पुलिस के विषय का संबंध है, इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है. लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि जैसे विषयों के लिए, कई लोग दावा करते हैं कि कई विभाग दोहरी भूमिका निभाते हैं. उदाहरण के लिए, जिला मजिस्ट्रेट (डीएम), उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) भी अपने अधिकार क्षेत्र के क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं, हालांकि उपायुक्त के रूप में राजस्व संग्रह में भी उनकी भूमिका होती है. जमीन के मामले में इन सब रजिस्ट्रार के अलावा एमसीडी के अधिकारियों की भूमिका होती है. ऐसे में तबादलों और नियुक्तियों पर किसका नियंत्रण होगा, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कुछ अन्य असर पड़ने के भी संकेत हैं. पुडुचेरी और जम्मू और कश्मीर जैसे वे केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) जिनके पास विधान सभाएं हैं, एक समान नौकरशाही सेट-अप की मांग कर सकते हैं और यह केंद्र सरकार के लिए समस्याएं पैदा करेगा. नौकरशाहों का विचार है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जैसे संघ शासित प्रदेशों में जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से संवेदनशील माना जाता है. समस्या और बड़ी हो सकती है अगर चुनी हुई सरकारें समान शक्तियों की मांग करेंगी.
'बलि का बकरा' बनने का है डर
चल रही खींचतान के कारण, कई नौकरशाह दिल्ली सरकार में आने के बजाय अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में या केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अधिक समय तक रहना चाहते थे. एक पूर्व नौकरशाह ने भी बताया कि अधिकारी भी अंडमान और लक्षद्वीप जैसी कठिन पोस्टिंग को बुरा नहीं मानेंगे, ताकि दिल्ली सरकार और एलजी के बीच विवाद में बलि का बकरा बनने से बचा जा सके, जो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद और तेज हो सकता है.