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तमिलनाडु सरकार को झटका, SC ने वन्नियार आरक्षण कानून को असंवैधानिक बताया

सुप्रीम कोर्ट ने वन्नियार आरक्षण कानून को लेकर मद्रास हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वन्नियार को दूसरों की तुलना में एक अलग समूह के रूप में मानने का कोई आधार नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
संजय शर्मा/अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 31 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 5:51 PM IST
  • सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को बताया सही
  • समुदाय को ओबीसी श्रेणी में ही दे दिया था 10.5% आरक्षण

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु के वन्नियार समुदाय को ओबीसी श्रेणी में दिए गए 10.5% आरक्षण के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना किसी डेटा के आरक्षण दे दिया गया है. कमेटी ने भी इस वर्ग के पिछडेपन को लेकर कोई ठोस आंकड़ा नहीं दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले पर मुहर लगा दी है, जिसमें हाई कोर्ट ने इस आरक्षण को रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि हाईकोर्ट का फैसला कानून में गलत था और राज्य विधायिका को एक समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए कोटा प्रदान करने का अधिकार है.

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अनुच्छेद 14, 15, 16 का उल्लंघन कानून

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा, फरवरी 2021 में बनाया गया तमिलनाडु सरकार का यह कानून संवैधानिक शक्तियों का गलत इस्तेमाल है. उन्होंने कहा कि इस बात का कोई आधार नहीं बनता है कि वन्नियार समुदाय को अलग श्रेणी में रखा जाए. पीठ ने कहा, ''हमारी राय है कि वन्नियार समुदाय को एमबीसी समूहों के भीतर शेष 115 समुदायों से अलग व्यवहार करने के लिए वर्गीकृत करने का कोई पर्याप्त आधार नहीं है. सरकार का यह कानून अनुच्छेद 14, 15 और 16 संविधान का उल्लंघन है. इसलिए हम हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हैं.''

सरकार ने दे दिया था 10.5% आरक्षण

वन्नियार समुदाय को मोस्ट बैकवर्ड कम्युनिटी घोषित करते हुए तमिलनाडु विधानसभा में 10.5 फीसदी आरक्षण देने का कानून पारित किया गया था. यह कोटा एमबीसी के लिए तय 20 फीसदी आरक्षण में से ही दिया जाना था। इस फैसले के तुरंत बाद इसे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. तब शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया था कि इस बारे में हाई कोर्ट फैसला देगा.

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अन्य अति पिछड़ा जातियां थीं नाराज

मद्रास हाईकोर्ट में दाखिल 50 याचिकाओं में से कई याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि अगर आरक्षण की ऐसी व्यवस्था लागू हुई तो वेन्नियार समुदाय के लोगों को ही सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए आरक्षण का लाभ मिलेगा. जबकि अति पिछड़ा जातियों यानी मोस्ट बैकवर्ड क्लासेस में शामिल अन्य 25 जातियों और 68 पिछड़ी जातियों को बाकी बचा लगभग 17 फीसदी कोटा ही साझा करना होगा. 

फरवरी 2021 में पारित हुआ था विधेयक

तमिलनाडु विधानसभा ने पिछले साल फरवरी में तत्कालीन सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक-पायलट विधेयक पारित किया था, जिसमें वन्नियारों के लिए 10.5 प्रतिशत का आंतरिक आरक्षण प्रदान किया गया था, जिसके बाद डीएमके सरकार ने जुलाई 2021 में इसके कार्यान्वयन के लिए एक आदेश जारी किया था.
 

 

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