
कोरोना की वैक्सीन पहले किसे लगेगी? ये प्रायोरिटी सरकार ने पहले ही तय कर रखी है. लेकिन देश की कुछ हाईकोर्ट्स में प्रायोरिटी ग्रुप्स को तय करने को लेकर याचिकाएं दाखिल हो गईं हैं. इसे लेकर ही भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ने सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किए जाने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों कंपनियां की मांग मान ली है और इन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करने को लेकर नोटिस भी जारी कर दिया है. इसके बाद अब हाईकोर्ट में सुनवाई पर रोक लग गई है.
दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में कुछ वकीलों की तरफ से याचिकाएं दाखिल हुई थीं कि वैक्सीन की प्रायोरिटी लिस्ट में उन्हें भी रखा जाए. जबकि सरकार ने जो प्रायोरिटी लिस्ट तय की है, उसके मुताबिक वैक्सीन सबसे पहले हेल्थ केयर वर्कर्स और फ्रंटलाइन वर्कर्स को लगनी है. उसके बाद 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों या 45 साल से ऊपर के ऐसे लोग जिन्हें कोई गंभीर है, उन्हें वैक्सीन लगाई जाएगी.
सीरम इंस्टीट्यूट की तरफ से हरीश साल्वे और भारत बायोटेक से मुकुल रोहतगी ने रखी दलील
सीरम इंस्टीट्यूट की तरफ से हरीश साल्वे और भारत बायोटेक की ओर से मुकुल रोहतगी ने दलीलें रखीं. मुकुल रोहतगी ने कहा कि देश की अलग-अलग हाईकोर्ट में दाखिल याचिकाओं की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ही करे. क्योंकि ये पूरे देश से जुड़ा मसला है. वहीं वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि ये सरकार का अधिकार है कि वैक्सीन पहले किसे लगानी है.
इस पर केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कई लोगों को लगता है कि उनको पहले वैक्सीन लग जाए. कुछ को लगता है कि उनको वैक्सीन की जरूरत है. लेकिन कई लोगों को वाकई प्रायोरिटी के आधार पर वैक्सीन की जरूरत है. मेहता ने भी याचिकाओं की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में ही किए जाने को सही बताया.
तुषार मेहता ने कहा कि जिन लोगों को वैक्सीन की पहले जरूरत है, उन्हें वैक्सीन दी जा रही है. केंद्र सरकार इसी नीति पर चल रही है कि जिन्हें सबसे पहले वैक्सीन की जरूरत है, उसे ही लगे.
CJI और SG के बीच बहस भी हुई
भारत बायोटेक के मामले में दिल्ली और सीरम इंस्टीट्यूट के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल है. कुछ वकीलों ने ये याचिकाएं लगाई हैं. उनका कहना था कि वो आम जनता के संपर्क में आते हैं, इसलिए उन्हें भी सबसे पहले वैक्सीन लगाई जाए. आज जब सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं के ट्रांसफर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, तब चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा कि यहां सवाल ये है कि याचिकाकर्ताओं को लगता है कि वो लोगों के संपर्क में आने से बीमार हो जाएंगे, वो बस भरोसा चाहते हैं. इस पर तुषार मेहता ने कहा कि 30-35 साल का सब्जीवाला भी अपनी जीविका चलता है. यहां किसी एक वर्ग की बात नहीं है.
तुषार मेहता ने सवाल उठाया कि कल को पत्रकार भी वकीलों की तरह राहत मांगने लगे तो फिर? इस पर CJI ने कहा कि हमें ये नहीं मालूम है कि पत्रकार अपने काम करने के दौरान किसी आम जनता के संपर्क में आते है या नहीं, लेकिन वकील संपर्क में जरूर आते हैं. इसके बाद मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता हमें एक प्रस्ताव दे, हम इसको एक्सपर्ट कमेटी के सामने रखेंगे और दो दिनों में इसका जवाब दे देंगे.