
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में 15वें दिन की सुनवाई नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए खासी मुश्किल साबित हुई. संविधान पीठ ने नेशनल कांफ्रेंस के नेता और याचिकाकर्ताओं में से एक अकबर लोन को हलफनामा दाखिल कर ये स्वीकार करते हुए ऐलान करने के लिए कहा कि उनकी निष्ठा भारत के संविधान और संप्रभुता में है. वह जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हैं.
15वें दिन की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन से हलफनामा दिए जाने की मांग की. CJI ने केंद्र से कहा कि जब आप अपना जवाब देंगे, उस दौरान इस मसले को भी सुनेंगे.
दरअसल, अकबर लोन पर कश्मीरी पीड़ितों के संगठन रूट इन कश्मीर ने आरोप लगाया है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में उन्होंने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए थे. अब लोन अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को कमजोर करने के केंद्र सरकार के कानूनी विधान को चुनौती देने वाले प्रमुख याचिकाकर्ता हैं.
संविधान पीठ में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत हैं. सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से कहा कि अकबर लोन को भारत के संविधान के प्रति निष्ठा रखने को लेकर हलफनामा दाखिल करना चाहिए. उन्हें हलफनामे मे ये भी कहना चाहिए कि जम्मू कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद का विरोध करते हैं. ये कोई आम आदमी नहीं हैं ये सांसद है. अगर अदालत इसपर कुछ नहीं करेगी, तो दूसरों को प्रोत्साहन मिलेगा.
दरअसल पिछले शुक्रवार को कश्मीर के विस्थापित कश्मीरी पंडितों की संस्था पुनुन कश्मीर की तरफ से अदालत में अर्जी दाखिल कर लोन के बारे मे बताया गया था और अदालत से उनके जम्मू कश्मीर को लेकर दिए गए कई विवादित बयानों पर हलफनामा दाखिल करने की मांग की गई थी.
केंद्र की तरफ़ से केएम नटराज ने चार बिंदुओं पर दलील देते हुए CJI की अध्यक्षता वाली बेंच को बताया कि धारा 370 एकमात्र ऐसा प्रावधान है, जिसमें खुद ही खत्म हो जाने की व्यवस्था है. दूसरा, अनुच्छेद 370 किसी भी प्रकार का अधिकार प्रदान नहीं करता. तीसरा, अनुच्छेद 370 का लागू रहना भेदभावपूर्ण है और मूल ढांचे के विपरीत है. जहां तक धारा-370 का सवाल है, तो संघवाद के सिद्धांत के तहत कड़े अर्थों में इसका कोई अनुप्रयोग नहीं है.
वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि मैं हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से कोर्ट में पेश हो रहा हूं. मेरे क्लाइंट जम्मू-कश्मीर में गुज्जर बकरवाल समुदाय के सदस्य हैं. वे एक अनुसूचित जनजाति के सदस्य हैं और वे जम्मू-कश्मीर की कुल एसटी आबादी का 73.25% हैं. इसके बाद महेश जेठमलानी ने दलील दी कि हम केंद्र सरकार के संशोधनों का समर्थन इस कारण से करते हैं, क्योंकि अनुसूचित जनजातियों से संबंधित संविधान के प्रावधान कभी लागू नहीं किए गए थे.