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लव जिहाद पर बने कानून पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट, पहले परखेगा इसकी वैधता

सुप्रीम कोर्ट लव जिहाद और गैरकानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन के खिलाफ बने कानून पर सुनवाई करेगा, लेकिन पहले इनकी वैधता परखेगा. ये कानून उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक में बनाए गए हैं. कोर्ट आगे 30 जनवरी को सुनवाई करेगा.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 16 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 10:38 PM IST

लव जिहाद और गैरकानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन के खिलाफ उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक में बनाए गए कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. लेकिन कोर्ट पहले इन कानूनों की वैधता परखेगा. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान एक पक्षकार के वकील कपिल सिब्बल से कहा कि वो इन कानूनों को चुनौती देने के लिए विभिन्न हाईकोर्ट में लंबित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने के लिए अर्जी दाखिल करें. कोर्ट आगे 30 जनवरी को सुनवाई करेगा.

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सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जनहित याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय से कहा कि उन्होंने धर्म परिवर्तन से संबंधित याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट की अलग अलग पीठ में लगा रखी हैं. यहां से राहत नहीं मिलती तो कुछ दिनों बाद दिल्ली हाईकोर्ट में लगा देते हैं. उपाध्याय ने पिछले साल जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा रखी है. तमिलनाडु सरकार के वकील पी विल्सन ने कहा कि 2021 में उपाध्याय ने ऐसी ही एक याचिका सुप्रीम कोर्ट से वापस ले ली थी. क्योंकि जस्टिस रॉइंटन फली नरीमन की अगुआई वाली पीठ उसे खारिज करने वाली थी. यहां वापस लेकर वही याचिका उपाध्याय ने दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल कर दी थी.
 
इस पर उपाध्याय के वकील गौरव भाटिया को सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि शायद ये जनहित याचिकाकर्ता भूल जाते हैं कि वो भी प्लीडिंग के सिद्धांत से बंधे हैं. क्या यह सही नहीं है कि आपने 9 अप्रैल 2021 को जस्टिस नरीमन की कोर्ट से ये अर्जी वापस ली थी? दुष्यंत दवे ने भी अल्प संख्यकों के बारे में दिए गए उपाध्याय के बयान को गलत अर्थ वाला और शॉकिंग बताया. इस पर उपाध्याय की ओर से सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार ने कहा कि उस बयान पर उपाध्याय ने खेद जताया था और भविष्य में ऐसा न करने की बात की थी.
 
चीफ जस्टिस ने अरविंद पी दातार से कहा कि अपने मुवक्किल से उनकी अर्जी में लिखे वो पैराग्राफ हटवाने के लिए एक अलग अर्जी दीजिए. हालांकि ऐसी ही एक याचिका जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रवि कुमार की पीठ के समक्ष भी लगी है. उसमें पीठ ने जबरन या प्रभाव में धर्म परिवर्तन को गंभीर मसला माना था. पीठ ने इस केस का टाइटल भी याचिकाकर्ता की बजाय कोर्ट का स्वत: संज्ञान मान लिया था.

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