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बुलडोजर एक्शन मामले में सुप्रीम कोर्ट बुधवार को बड़ा फैसला सुना सकता है. बताया जा रहा है कि शीर्ष अदालत देश भर में राज्य सरकारों द्वारा की जा रही बुलडोजर कार्रवाई को लेकर गाइडलाइन तय कर सकता है.
जमीयत उलेमा ए हिंद समेत कई याचिकाकर्ताओं ने देशभर के अलग-अलग राज्यों में हो रहे बुलडोजर एक्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की थीं, जिन पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा. सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच सुबह साढ़े दस बजे अपना फैसला सुनाएगी.
बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने 'बुलडोजर जस्टिस' की कड़ी निंदा की थी. सीजेआई ने कहा कि 'कानून के शासन के तहत बुलडोजर न्याय बिल्कुल अस्वीकार्य है. अगर इसे अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300 ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता एक डेड लेटर बनकर रह जाएगी.'
'किसी सिस्टम के लिए बुलडोजर एक्शन'
सीजेआई ने अपने जजमेंट में कहा, 'बुलडोजर के माध्यम से न्याय न्यायशास्त्र की किसी भी सभ्य सिस्टम के लिए ठीक नहीं है. गंभीर खतरा है कि अगर राज्य के किसी भी विंग या अधिकारी द्वारा गैरकानूनी व्यवहार की अनुमति दी जाती है, तो बाहरी कारणों से नागरिकों की संपत्तियों को चुनिंदा प्रतिशोध के रूप में ध्वस्त कर दिया जाएगा.'
'नहीं दबाई जा सकती की आवाज'
पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि नागरिकों की आवाज को उनकी संपत्तियों और घरों को नष्ट करने की धमकी देकर नहीं दबाया जा सकता. एक इंसान के पास सबसे सुरक्षित जगह के रूप में अगर कुछ होता है तो वह घर है. हम सुरक्षा उपायों की कुछ न्यूनतम सीमाएं निर्धारित करने का प्रस्ताव करते हैं, जिन्हें नागरिकों की संपत्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले पूरा किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि अवैध अतिक्रमणों या अवैध निर्माण को हटाने के लिए कार्रवाई करने से पहले राज्य को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए. कानून के शासन के तहत बुलडोजर न्याय अस्वीकार्य है. यदि इसकी अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300 ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता महज एक डेड लेटर बन जाएगी.'
UP सरकार पर लगाया 25 लाख का जुर्माना
वहीं, शीर्ष अदालत ने साल 2019 में यूपी के महाराजगंज में एक घर पर बुलडोजर एक्शन के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य द्वारा की गई प्रक्रिया क्रूर थी. याचिकाकर्ता का घर एक सड़क प्रोजेक्ट के लिए तोड़ दिया गया था. पीठ ने सरकार को अंतरिम उपाय के रूप में याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया था.